परत दर परत
रविवार का दिन था। अखबार पढ़ते हुए नाश्ते में कुछ बढ़िया सा खाने की इच्छा थी, पर इसके लिए रसोई संभालने वाली सुनीता का कोई अता-पता ही नहीं था। खैर बहुत देर से ही सही उसने प्रवेश किया तो प्रतिभा ने कहा- आओ भाई, आज तो साहब नाश्ते का बहुत इंतजार कर रहे हैं।
पर सुनीता रोज की तरह हंस-मुस्करा नहीं रही थी। अब ध्यान से देखा तो शायद बहुत रोने के कारण उसका चेहरा फूला हुआ था। उसने बहुत संजीदगी से कहा- नाश्ता तो मैं बना दूंगी मैम पर इससे पहले मुझे आपसे और सर से कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है।
उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था कि मधुसूदन और प्रतिभा दोनों अखबार छोड़कर उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगे।
सुनीता ने अखबारों की ओर इशारा किया- आपने बहुत दर्दनाक हत्या की खबर तो पढ़ ही ली होगी।
-हां सुनीता हम अभी इसकी चर्चा कर ही रहे थे कि महिलाओं की असुरक्षा कितनी बढ़ गई है, बस स्टाप के पास ही खून कर दिया गया व वह भी तब जब अभी रात में बहुत देर नहीं हुई थी।
-जी सर, ‘यह लड़की हमारी बस्ती के पास ही रहती है और जिस लड़के मनीष को इस कत्ल में गिरफ्तार किया गया है, वह हमारी बस्ती का सबसे भला लड़का है। हमेशा सबकी मदद ही करता रहता था। सर, मैं कभी बस्ती वासियों की ओर से आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ आप मनीष को बचा लीजिए।’ और भावावेश में सुनीता ने आगे बढ़कर मधुसूदन के पैर ही पकड़ लिए।
‘अरे यह क्या करती हो’- कहते हुए मधुसूदन और प्रतिभा ने सांत्वना देते हुए उसे बिठाया। मधुसूदन ने उसे पानी का गिलास लाकर दिया।
वह एक-दो घूंट पानी पी रही थी कि मधुसूदन ने आवाज़ मधुर करते हुए पूछा- मनीष का तुम्हारे परिवार से कोई संबंध है क्या?
सुनीता ने सर नीचा कर लिया। कुछ क्षण देर चुप रह कर बोली- हम एक-दूसरे को गहरा प्यार करते हैं। यदि सब ठीक रहता तो अगले साल हमारी शादी होनी थी। दोनों परिवारों की इसमें रजामंदी है।
‘ओ हो, तब तो कोई बात नहीं है। मनीष का केस मुझे संभालना ही पड़ेगा।’
पहली बार सुनीता के चेहरे पर खुशी नज़र आई। उसने दोनों हाथ कृतज्ञता से जोड़ दिए। फिर प्रतिभा को भी चरण स्पर्श किया।
‘अब तुम कुछ संयत हो सुनीता। अब भावनाओं को छोड़ कर सही-सही बताओ कि इस केस के बारे में तुम्हारा अपना क्या ख्याल है।’
‘सर, जिस तरह यह सच है कि धरती पर सूरज-चांद उगते हैं, आप मेरी इस बात को इतना ही पक्का मान लीजिए कि मनीष कभी हत्या नहीं कर सकता। यदि मुझे कोई कहे उसने कोई चिड़िया मारी है तो भी मुझे विश्वास नहीं होगा।’
‘ठीक है, चलो हम तुम्हारी बात मान लेते हैं। पर इस अखबार में जो पुलिस का बयान है उससे तो लगता है पुलिस पूरी तरह हत्या के लिए उसे जिम्मेदार मान बैठी है। पुलिस को दिए अपने बयान में मनीष ने स्वयं कहा है कि लगभग आठ बजे वह मोहन बाग बस स्टाप पर विभा से मिला था। बात करने के लिए वह बस स्टाप से कुछ दूरी पर वह अंधेरे में चले गए थे, उसने यह भी माना है कि उसने कुछ कहा-सुनी की, ऊंचा बोला।’
इसके बाद वह अपने घर लौट गया, पर एक घंटे बाद ही विभा का शव पाया गया। उसका गला दबा कर हत्या की गई थी, इससे पहले यौन छेड़छाड़ के प्रयास के निशान भी नज़र आए हैं। इतना ही नहीं, उसके कोट की जेब से एक कागज़ मिला जिस पर मनीष का मोबाईल नंबर था।
इसी से ट्रेस करते हुए पुलिस मनीष के घर गई तो उसने तुरंत मान लिया कि वह बस स्टाप पर विभा को मिला था और उससे कहा-सुनी भी हुई थी। पुलिस की नज़र में विभा को मिलने वाला वही अंतिम व्यक्ति था और उसी पर पूरा शक केंद्रित है।
रुंआसी होकर सुनीता ने कहा- तो मैं कौन सा कह रही हूं कि मनीष बस स्टाप नहीं गया। बल्कि उसे तो वहां एक तरह से मैंने ही भेजा था।
‘यह कैसे?’
‘दरअसल हमारी बस्ती में कुछ एजेंट आकर लड़कियों को होटल, बार, डांस के लिए फुसलाते रहते हैं। मनीष और कुछ अन्य लड़काें-लड़कियों ने एक सांस्कृतिक मंच बनाया है। वे इसके विरुद्ध बोलते हैं। विभा को भी उसने समझाया था। पर कल शाम को मुझे पता चला कि वह एजेंट के झांसे में आकर पहली रात होटल के लिए गई है। मनीष उस समय मुझे मिल गया तो मैंने उसे बता दिया। बस तभी वह बस-स्टाप की ओर दौड़ गया और हम उसे रोक नहीं सके।’
मधुसूदन कुछ देर तक सोचते रहे। फिर दो अखबार टटोलकर इस खबर को नए सिरे से पढ़ा।
‘देखो सुनीता, तुम हमारे परिवार से इतने समय से जुड़ी रही। मैम भी तुम्हारी बहुत तारीफ करती रहती हैं कि ऐसी मेहनती व ईमानदार लड़की मैंने अब तक नहीं देखी। इसलिए मैं मनीष का केस ज़रूर लडूंगा और यह कहने की तो शायद ज़रूरत ही नहीं कि बिना कोई पैसे दिए लडूंगा। लेकिन कोई झूठी दिलासा भी नहीं देना चाहता हूं। मैं और तुम भावना और विश्वास से चल सकते हैं, पर कानून केवल प्रमाण से चलते है व अधिकांश प्रमाण इस समय मनीष के विरुद्ध है।’
सुनीता फिर भी गदगद होकर बोली- अरे पर आपने केस ले लिया तो मेरी आधी चिंताएं तो अभी दूर हो गई। बस्ती वाले हमारे पड़ौसी भी आपको बहुत मानते हैं, मनीष भी बहुत मानता है।
जेल की बैरक में मनीष सिमट कर बैठा हुआ था। मधुसूदन को देखकर उठा, नमस्ते की। ‘देखो मनीष, सुनीता ने मुझे कुछ बता दिया है। पर अभी पुलिस ने जो आरोप लगाए है, वे बहुत मजबूत माने जा रहे हैं। मैं तुम्हारी मदद तभी कर सकूंगा यदि कम से कम मुझे तुम सब कुछ सच्चाई से बता दोगे।’ (क्रमश:)