परत दर परत

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
विभा को मैंने हैलो कहा तो उसने बताया कि अभी मनीष आया था और उसकी बांतों पर विचार करने के बाद फैसला किया है कि मैं होटल जाकर ज्वाईन नहीं करूंगी।
-तो फिर क्या विभा वापस घर जा रही थी?
-नहीं, पर उसने मुझे बताया कि अब मैं यहां तक आ ही गई हूं तो रात के लिए सदर बाज़ार में मौसी के घर चली जाती हूं क्योंकि वह कई दिनों से बुला रही हैं। फिर उनसे मिलकर कल सुबह मैं अपने घर लौट जाऊंगी।
इसके बाद वह सदर बाज़ार के बस स्टाप की ओर बढ़ गई और मैं होटल पैराडाईज के बस स्टाप की ओर।
-ठीक है किरण। अब अपनी बस में चढ़ने से पहले क्या तुम्हें कोई और जानकार व्यक्ति बस स्टाप पर नज़र आए?
-जैसे ही मैंने तिराहा पार किया वैसे ही बाईं ओर से किसी बस के आने की आवाज़ सुनाई दी, मैंने झांक कर देखने की कोशिश की कि क्या यह मेरे वाली बस है उसी समय एक झलक मुझे गबरू और वीरू की भी मिल गई जो नुक्कड़ की दुकान पर खड़े थे और नशे में लड़खड़ा रहे थे। बस एक ही झलक क्योंकि जैसे ही मुझे पता चला कि मेरी बस ही आ रही है तो मैं लपक कर आगे बढ़ गई ताकि मैं बस को मिस न करूं।
-ये गबरू और वीरू कौन हैं?
-अरे यही तो वे बार व होटल के एजेंट हैं जो लड़कियों को फुसलाते रहते हैं।
-और किसी को तो नहीं देखा?
-फिर तो मैं बस पर चढ़ ही गई सर।
-आते समय तुमने मनीष को लौटते हुए नहीं देखा था?
-नहीं सर।
-बस स्टाप पर कितने बजे आप पहुंची होगी?
-उस दिन बस भी थोड़ी लेट थी तो 8 बजकर 15 मिनट का समय रहा होगा।
सुनीता और किरण के जाने के बाद मधुसूदन ने प्रतिभा से कहा- देखो इतना तो स्पष्ट है कि मनीष के बस-स्टाप से लौटने के बाद तक विभा जीवित थी। मनीष आठ बजकर पांच मिनट पर बस स्टाप से लौट पड़ा। आठ बजकर पंद्रह मिनट पर विभा को किरण ने जीवित? ठीकठाक स्थिति में देखा। उसने मनीष के बारे में गुस्से से नहीं इज्जत की बात की।
अब यदि किरण ने आते हुए मनीष को लौटते देखा होता तो उसका बयान का महत्व हमारे लिए और बढ़ जाता। पर अंधेरे में या जल्दबाजी में उसने नहीं देखा, या शायद मनीष इधर-उधर से या थोड़ा सा पहले निकल गया। अब तो मनीष के परिवार वाले ही यह कह सकते हैं कि वह इतने बजे तक लौट गया था, पर उन्होंने टाईम को ठीक-ठीक नोट किया था उस समय इसकी गुंजाईश कम होगी। वैसे भी पुलिस कहेगी कि परिवार वाले मनीष को बचाने के लिए ऐसा कह रहे हैं।
-तो फिर हम अब क्या करें?
-कई महत्वपूर्ण बातें पता चलीं पर ऐसा प्रमाण नहीं मिला जिसे पुलिस स्वीकार करें व जिससे मनीष निर्दोष सिद्ध हो सके।
कुछ देर सोच कर मधुसूदन ने कहा- आठ बजकर सत्तरह मिनट पर विभा सदर बाज़ार वाले साईड के बस स्टाप की ओर गई। पर राह पर नुक्कड़ की दुकान के आगे गबरू और बीरू खड़े थे। उन्हें हैरानी हुई होगी कि वह होटल के साईड वाले बस स्टाप को छोड़कर सदर बाज़ार वाली साईड के बस स्टाप की ओर क्यों जा रही है। उन्होंने ज़रूर उससे इस बारे में पूछा होगा। दोनों बात करते-करते बस स्टाप पर पहुंच गए होंगे। वे दोनों नशे में थे। उन्होंने बदतमीजी से बात की हो तो कोई हैरानी नहीं। लोगों का ध्यान हटाने के लिए विभा थोड़ा सा बस स्टाप से आगे चली गई होगी। मौका देखकर गबरू और वीरू ने उसे अंधेरे में खींच लिया होगा। वे नशे में थे। उन्हें भले-बुरे की कोई पहचान नहीं थी।
-प्रतिभा! अब मुझे इंस्पैक्टर यनीस के पास जाना चाहिए। मुझे उनकी ईमानदारी पर पूरा यकीन है।
यनीस को अच्छा ही लगा कि गबरू को पकड़ने का एक मौका मिला था। कई दिनों से उसके कई उत्पातों के बारे में छिटपुट जानकारियों मिलती रहती थीं।
बस्ती में सबसे शान-शौकत वाला घर वीरू का ही था। स्लम बस्ती में भी एसी, कार सब मौजूद थे। देर शाम को उसने दारू की बोतल खोली ही थी कि पुलिस दल को दरवाजे पर देखकर उसकी मिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
फिर भी किसी तरह हिम्मत जुटाकर उसने कहा- कहिए इंस्पैक्टर साहब आप की क्या सेवा की जाए?
-सेवा के चाचे, सच-सच बता कि विभा की हत्या तूने क्यों की?
-मैंने? विभा की हत्या? यह आप क्या कह रहे हैं। उसके लिए तो मनीष को आप पकड़ चुके हैं।
-बदमाश मुझसे कुछ मत छिपा नहीं तो ऐसी मार लगाऊंगा कि सात पीढ़ियां याद रखेंगे। हमें पहले ही वीरू ने सबकुछ बता दिया है।
उस कमीने ने सब बता दिया?
-हम तो बस तेरे से भी सब कन्फर्म कर रहे हैं। वीरू तो पहले ही थाने में बैठा रो रहा है।
-उस कमीने ने मेरा नाम बताया?
-और नहीं तो क्या मेरा बताता? अब सच-सच बता दे नहीं तो डंडा मुंह में डालकर भेजे से निकाल लूंगा।
-वीरू घिघिया कर बोला, आप पूछिए।
-सवा आठ बजे तू और वीरू मोहन बाग बस स्टाप तिराहे पर शराब के नशे में लड़खड़ा रहे थे।
-उसके बाद पान-सिगरेट लिया और घर लौट आए।
-चल तूने इतना तो माना कि तू वहां मौजूद था। अब आगे वीरू ने बताया है कि तेरे पास बड़ा सा चाकू था।
-झूठा कमीना, मेरे पास तो छोटा सा चाकू था।
-चल छोटा सा ही सही। वीरू ने बताया कि वह चाकू तूने चुपके से विभा की कमर में चुभा कर उसे अंधेरे की ओर बुलाया।
(क्रमश:)