परत दर परत

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
‘सर मैं आपको एक भी गलत जानकारी नहीं दूंगा। जब मैं मोहन बाग बस स्टाप पर पहुंचा तो विभा वहीं खड़ी थी। गुस्से में मैं कुछ ऊंचा बोल जाता हूं। बात लोगों को सुनाने की नहीं थी, अत: हम कुछ दूर जाकर खड़े हो गए थे जहां अंधेरा था। जो वह करने जा रही थी, मैंने उसके खतरे उसे फिर बताए, लौट आने को कहा। फिर बस स्टाप तक आकर अपना मोबाईल नंबर पता, एक कागज पर लिखकर उसे दिया कि कोई ज़रूरत हो तो मुझे फोन करे। फिर मैं लौट गया, यही कोई आठ बजे। थोड़ी देर में किसी गाड़ी की हैडलाईट से अंधेरे में पड़ा शव नज़र आया। 9:15 मुझे पुलिस का फोन आया और फिर वे मुझे थाने में ले गए।’
‘अच्छा मनीष यह बताओ कि तुम्हारे कहने से एक तो तुम्हारे द्वारा हत्या करने की बात तो हमने गलत मान ली पर तुम्हें कोई गलती पुलिस के बयान में नज़र आती है जिसके आधार पर हम उन्हें केस पर दुबारा विचार करने के लिए कहें।’
-एक बहुत बड़ी गलती तो साफ नज़र आ रही है सर!
-मधुसूदन के कान चौकन्ने हो गए-क्या?
-सर आपने मोहन बाग का बस स्टाप तो देखा ही है?
-हां, हां, क्यों नहीं।
-सर हमारी बस्ती की ओर से जाओं तो पहले तिराहा आता है। तिराहे को क्रास कर सीधा आगे जाओ तो वह बस स्टाप आता है जहां से होटल पैराडाईज की ओर की बस मिलती है।
-हां, पता है।
-पर यदि तिराहा पार किए बिना बाएं मुड़ जाओं तो वह बस स्टाप आता है जहां से सदर बाज़ार की ओर की बसें मिलती हैं।
-ठीक है।
-अब सर मैं तो विभा को तिराहा क्रास पर सीधा पैराडाईज होटल की तरफ वाले बस स्टाप पर मिला था जबकि लाश सदर बाज़ार की साईड वाले बस स्टाप पर मिली है। फिर भला मैं कैसे हत्यारा हो सकता हूं।
-ओह, ओह!
-इतना ही नहीं सर! पैराडाईज वाली साईड बस स्टाप के पीछे कोई डिफेंस का कार्यालय है, वहां बहुत ऊंची फैंस लगी है। अत: वहां से कोई लाश सदर बाज़ार वाली साईड को तो ले जा नहीं सकता है। यदि वह डैड बॉडी को उधर ले जाना चाहता है तो उसे पहले बस स्टाप के उजाले से, फिर तिराहे की दुकानों के उजाले से, फिर सदर बाज़ार साईड के बस स्टाप के उजाले से गुजरना पड़ेगा जो संभव ही नहीं है। मैं तो सदर बाजार साईड वाले बस स्टाप की ओर गया ही नहीं। मेरा काम ही होटल पैराडाईस वाली साईड के बस स्टाप पर था।
मधुसूदन कुछ देर सोचते रहे। फिर बोले- यह तो तुमने बहुत महत्वपूर्ण बात बताई मनीष, पर इसका प्रमाण पुलिस को कैसे दें। क्या विभा के अतिरिक्त किसी अन्य जानकार व्यक्ति ने तुम्हें बस-स्टाप पर देखा था।
-नहीं सर।
-पुलिस को तुमने क्या बताया?
-पहली पूछताछ में उन्होंने बस-स्टाप के बारे में पूछा और मैने बस स्टाप के बारे में बताया। उस समय मुझे पता ही नहीं था कि शव सदर बाज़ार साईड के बस स्टाप पर मिला है।
-पर मनीष, इस समय मैं पुलिस को यह सब बता भी दूं तो वे मानेंगे नहीं। वे तो यही कहेंगे कि तुम्हें बचाने के लिए नया शगूफा हमने खोजा है। खैर, तुमने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी, इससे मदद तो ज़रूर मिलेगी। अच्छा अब यह बताओ कि बस स्टाप पर तो कोई जानकार तुम्हें नहीं मिला था?
-रास्ते में रोशनी कम है, अंधेरा ज्यादा फिर भी एक चेहरा तो मुझे याद आ रहा है।
-कौन?
-यह एक लड़की है किरण। उसे भी होटल के एजेंटों के चंगुल से हमने दूर रखा था, पर वह तो पहले ही फंस गई थी। तब से उसे देख कर मैं तो मुंह फेर लेता हूं, फिर भी मैंने उसे देखा ज़रूर था। वह भी शायद वहीं बस लेने जा रही होगी जिसके लिए विभा गई थी।
-सुनीता तो उसे जानती ही होगी?
-अच्छी तरह।
-ठीक है मनीष, फिर मिलते हैं।
जेल से लौटकर मधुसूदन सबसे पहले किरण को ढूंढ लाने को कहा। उससे बात करने का महत्व भी समझाया। सुनीता तुरंत उसकी तलाश में चली गई।
दो घंटे बाद वह एक सकुचाती-सहमी सी लड़की को लेकर लौटी। उसे कुछ दूरी पर बिठाकर उसने मधुसूदन और प्रतिभा को बताया- यही किरण है। यह भी इस हत्या और गिरफ्तारी से हिल गई है और इसे अपनी गलती का अहसास है और इसने होटल जाना छोड़ दिया है।
मधुसूदन ने किरण को दोस्ताना आवाज़ में कहा- सुनीता तुम्हारी सहेली रही है।
-जी सर!
-मनीष को भी तुम जानती थी?
-सर मनीष भैया तो हमारे यहां के सबसे अच्छे व्यक्ति हैं। मैं तो उनकी बात न मान कर बहुत पछता चुकी। सुनीता ने बताया आप उन्हें बचाने की बहुत कोशिश कर रहे हैं। बस किसी तरह बचा लीजिए सर।
-मैं पूरी कोशिश करूंगा, किरण, पर थोड़ी सी मदद आप की भी चाहिए।
-मैं हर मदद के लिए तैयार हूं।
-बस आप अच्छी तरह याद कर बताईए कि जिस रात को हत्या हुई है तब जब आप भी बस पकड़ने को जा रही थी, तब आपने किसी जानकार व्यक्ति को रास्ते में देखा था?
-एक तो अंधेरा इस रास्ते में बहुत होता है, और उस दिन मैं बहुत जल्दी में थी क्योंकि मैं थोड़ा सा लेट हो गई थी। इस हालत में मुझे याद नहीं कि मैंने रास्ते में किसी को देखा था।
-बस स्टाप पहुंचने के बाद?
-हां बस स्टाप पहुंचने पर मैंने देखा कि विभा तिराहे की ओर जा रही है। मुझे तसल्ली हुई कि अभी होटल वाली बस गई नहीं है क्योंकि आज उसको भी इसी में जाना था। तब मैं रिलैक्स हो गई।
(क्रमश:)
विभा को मैंने हैलो कहा तो उसने बताया कि अभी मनीष आया था और उसकी बांतों पर विचार करने के बाद फैसला किया है कि मैं होटल जाकर ज्वाईन नहीं करूंगी।
-तो फिर क्या विभा वापस घर जा रही थी?
-नहीं, पर उसने मुझे बताया कि अब मैं यहां तक आ ही गई हूं तो रात के लिए सदर बाज़ार में मौसी के घर चली जाती हूं क्योंकि वह कई दिनों से बुला रही हैं। फिर उनसे मिलकर कल सुबह मैं अपने घर लौट जाऊंगी।
इसके बाद वह सदर बाज़ार के बस स्टाप की ओर बढ़ गई और मैं होटल पैराडाईज के बस स्टाप की ओर।
-ठीक है किरण। अब अपनी बस में चढ़ने से पहले क्या तुम्हें कोई और जानकार व्यक्ति बस स्टाप पर नज़र आए?
-जैसे ही मैंने तिराहा पार किया वैसे ही बाईं ओर से किसी बस के आने की आवाज़ सुनाई दी, मैंने झांक कर देखने की कोशिश की कि क्या यह मेरे वाली बस है उसी समय एक झलक मुझे गबरू और वीरू की भी मिल गई जो नुक्कड़ की दुकान पर खड़े थे और नशे में लड़खड़ा रहे थे। बस एक ही झलक क्योंकि जैसे ही मुझे पता चला कि मेरी बस ही आ रही है तो मैं लपक कर आगे बढ़ गई ताकि मैं बस को मिस न करूं।
-ये गबरू और वीरू कौन हैं?
-अरे यही तो वे बार व होटल के एजेंट हैं जो लड़कियों को फुसलाते रहते हैं।
-और किसी को तो नहीं देखा?
-फिर तो मैं बस पर चढ़ ही गई सर।
-आते समय तुमने मनीष को लौटते हुए नहीं देखा था?
-नहीं सर।
-बस स्टाप पर कितने बजे आप पहुंची होगी?
-उस दिन बस भी थोड़ी लेट थी तो 8 बजकर 15 मिनट का समय रहा होगा।
सुनीता और किरण के जाने के बाद मधुसूदन ने प्रतिभा से कहा- देखो इतना तो स्पष्ट है कि मनीष के बस-स्टाप से लौटने के बाद तक विभा जीवित थी। मनीष आठ बजकर पांच मिनट पर बस स्टाप से लौट पड़ा। आठ बजकर पंद्रह मिनट पर विभा को किरण ने जीवित? ठीकठाक स्थिति में देखा। उसने मनीष के बारे में गुस्से से नहीं इज्जत की बात की।
अब यदि किरण ने आते हुए मनीष को लौटते देखा होता तो उसका बयान का महत्व हमारे लिए और बढ़ जाता। पर अंधेरे में या जल्दबाजी में उसने नहीं देखा, या शायद मनीष इधर-उधर से या थोड़ा सा पहले निकल गया। अब तो मनीष के परिवार वाले ही यह कह सकते हैं कि वह इतने बजे तक लौट गया था, पर उन्होंने टाईम को ठीक-ठीक नोट किया था उस समय इसकी गुंजाईश कम होगी। वैसे भी पुलिस कहेगी कि परिवार वाले मनीष को बचाने के लिए ऐसा कह रहे हैं।
-तो फिर हम अब क्या करें?
-कई महत्वपूर्ण बातें पता चलीं पर ऐसा प्रमाण नहीं मिला जिसे पुलिस स्वीकार करें व जिससे मनीष निर्दोष सिद्ध हो सके।
कुछ देर सोच कर मधुसूदन ने कहा- आठ बजकर सत्तरह मिनट पर विभा सदर बाज़ार वाले साईड के बस स्टाप की ओर गई। पर राह पर नुक्कड़ की दुकान के आगे गबरू और बीरू खड़े थे। उन्हें हैरानी हुई होगी कि वह होटल के साईड वाले बस स्टाप को छोड़कर सदर बाज़ार वाली साईड के बस स्टाप की ओर क्यों जा रही है। उन्होंने ज़रूर उससे इस बारे में पूछा होगा। दोनों बात करते-करते बस स्टाप पर पहुंच गए होंगे। वे दोनों नशे में थे। उन्होंने बदतमीजी से बात की हो तो कोई हैरानी नहीं। लोगों का ध्यान हटाने के लिए विभा थोड़ा सा बस स्टाप से आगे चली गई होगी। मौका देखकर गबरू और वीरू ने उसे अंधेरे में खींच लिया होगा। वे नशे में थे। उन्हें भले-बुरे की कोई पहचान नहीं थी।
-प्रतिभा! अब मुझे इंस्पैक्टर यनीस के पास जाना चाहिए। मुझे उनकी ईमानदारी पर पूरा यकीन है।
यनीस को अच्छा ही लगा कि गबरू को पकड़ने का एक मौका मिला था। कई दिनों से उसके कई उत्पातों के बारे में छिटपुट जानकारियों मिलती रहती थीं।
बस्ती में सबसे शान-शौकत वाला घर वीरू का ही था। स्लम बस्ती में भी एसी, कार सब मौजूद थे। देर शाम को उसने दारू की बोतल खोली ही थी कि पुलिस दल को दरवाजे पर देखकर उसकी मिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।
फिर भी किसी तरह हिम्मत जुटाकर उसने कहा- कहिए इंस्पैक्टर साहब आप की क्या सेवा की जाए?
-सेवा के चाचे, सच-सच बता कि विभा की हत्या तूने क्यों की?
-मैंने? विभा की हत्या? यह आप क्या कह रहे हैं। उसके लिए तो मनीष को आप पकड़ चुके हैं।
-बदमाश मुझसे कुछ मत छिपा नहीं तो ऐसी मार लगाऊंगा कि सात पीढ़ियां याद रखेंगे। हमें पहले ही वीरू ने सबकुछ बता दिया है।
उस कमीने ने सब बता दिया?
-हम तो बस तेरे से भी सब कन्फर्म कर रहे हैं। वीरू तो पहले ही थाने में बैठा रो रहा है।
-उस कमीने ने मेरा नाम बताया?
-और नहीं तो क्या मेरा बताता? अब सच-सच बता दे नहीं तो डंडा मुंह में डालकर भेजे से निकाल लूंगा।
-वीरू घिघिया कर बोला, आप पूछिए।
-सवा आठ बजे तू और वीरू मोहन बाग बस स्टाप तिराहे पर शराब के नशे में लड़खड़ा रहे थे।
-उसके बाद पान-सिगरेट लिया और घर लौट आए।
-चल तूने इतना तो माना कि तू वहां मौजूद था। अब आगे वीरू ने बताया है कि तेरे पास बड़ा सा चाकू था।
-झूठा कमीना, मेरे पास तो छोटा सा चाकू था।
-चल छोटा सा ही सही। वीरू ने बताया कि वह चाकू तूने चुपके से विभा की कमर में चुभा कर उसे अंधेरे की ओर बुलाया।
-झूठा है वो। चाकू तो उसने चुभाया था।
-खैर, जब वह अंधेरे में आ गई तो बदतमीजी उसने की या तूने?
-उसने साहब। उसने।
-और गला किसने दबाया।
-उसने। मैं तो पीछे खड़ा रहा।
-पर तुमने विभा को बचाने की कोशिश नहीं की?
गबरू ने सिर नीचे झुका लिया। उसे पहली बार अहसास हुआ कि उसने पुलिसकर्मियों के सामने बहुत कुछ कबूल लिया था।
पुलिस गबरू को हथकड़ी लगाकर ले गई। अभी वीरू को तो उन्हें खोजना था।
मनीष जब जेल से छूटकर आया तो अपने घर जाने से भी पहले प्रतिभा और मधुसूदन के पास आया। उनके चरण स्पर्श किए।
-सर, मुझे पता नहीं कि किन शब्दों में आपको धन्यवाद करूं। मैं आपका अहसान निंदगी भर नहीं भूलूंगा।
-अरे इसमें अहसान क्या है, मनीष। दरअसल एक वकील को इससे अधिक संतोष कभी नहीं मिलता जब वह किसी दोषी व्यक्ति को सजा दिलवा सके और तुम्हारे जैसे नेक इंसान को बचाने पर यह संतोष और भी बढ़ जाता है।
इतने में खबर मिलते ही सुनीता दौड़ी चली आई और सब संकोच त्यागकर मनीष से लिपट गई। प्रतिभा ने मधुसूदन को इशारा किया कि अब इन दोनों को कुछ समय अकेले ही छोड़ दिया जाए।
कई दिन बीत गए। सामान्य जीवन बीत रहा था। तभी एक दिन टीवी पर खबरें देखते हुए मधुसूदन अचानक चौकन्ने हो गए। टीवी पर बताया जा रहा था कि पैराडाईज होटल के मैनेजर की हत्या हो गई है।
-अरे यह कही वही होटल तो नहीं जहां के बार में गबरू बस्ती की लड़कियों को भेजता था।
-हां वही है, तभी तुम्हें बताया, वही लोकेशन है।
इसके कुछ समय बाद यह खबर भी आई कि इसी होटल की एक मुख्य डांसर को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया है।
खैर, अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच मधुसूदन और प्रतिभा के पास इन खबरों के लिए अधिक समय नहीं था। पर उस समय स्थिति बदल गई जब शाम को आसिफ अली मधुसूदन को मिलने आए।
-सर मैं होटल पैराडाईस का डिप्टी जनरल मैनेजर आसिफ अली हूँ। आपने हमारे होटल के मैनेजर के मर्डर के बारे में सुना होगा। इस मामले में होटल की मुख्य डांसर बबीना गिरफ्तार भी हो चुकी है व उसके खिलाफ  आरोपों को पुलिस बहुत पक्का बता रही है।
-सर! मुझे होटल के स्टाफ  एसोसिएशन की ओर से आपके पास भेजा गया है। सारे स्टाफ  को पूरा विश्वास है कि बबीना निर्दोष है। मैं यह कह नहीं सकता हूँ कि हमारे होटल में कोई गलत काम नहीं होते हैं, पर बबीना होटल व मैनेजर के प्रति बहुत लॉयल थी। उसके द्वारा हत्या करने की बात कोई सोच भी नहीं सकता है।
-पर पुलिस ने कहा है कि मैनेजर से अंतिम मुलाकात बबीना की ही थी। वह उन्हें काफी नशे की हालत में ऊपर लेकर गयी जिससे हत्या करना सरल भी होता। उसके बाद कोई और मैनेजर से मिला इसका कोई रिकार्ड नहीं है। हर रात को अंतिम बार वेटर वेंकट उनसे उनकी ज़रूरत पूछने जाता था। उस दिन वह गया तो उसने मैनेजर को मृत पाया व जांच से पता चला कि गला घोट कर हत्या की गई है।
-यह सब ठीक है सर। फिर भी बबीना को हत्यारा मानने के लिए होटल में कोई तैयार नहीं है।
-तो आप मुझसे क्या मदद चाहते हैं?
-हम चाहते हैं, हम से मतलब स्टाफ  एसोसिएशन के लोग चाहते हैं कि आप बबीना का डिफेंस करें। हमने आपकी बहुत ख्याति सुनी है। विभा मर्डर केस में भी आपने निर्दोष को कितनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद बचाया था।
मधुसूदन को याद आया कि मनीष के निर्दोष सिद्ध होने पर उन्हें कितना अच्छा लगा था, उन्होंने यह केस लेना भी मंजूर कर लिया।
बबीना जेल में बहुत तनाव में थी, पर भी उसका सौंदर्य छलक पड़ता था। मधुसूदन ने अपने को संतुलित करते हुए कहा, ‘बबीना आप मुझे हत्या के दिन की घटनाओं को बिल्कुल ठीक-ठीक बताना। मुझसे कुछ न छिपाना तभी मैं तुम्हारी मदद भली-भांति ठीक से करूंगा। प्लीज बुरा मत मानिएगा, पर पहले तो आपको यह बताना होगा कि मैनेजर साहब से आपका क्या रिश्ता था।
बबीना ने सिर नीचे कर लिया- आप कह सकते हैं कि मैं उनकी सबसे चहेती डांसर थी। उन्हें पीने की आदत तो थी ही तो रात के समय ठीक समय पर मैं होटल के कमरे में पहुंचाती थी। कभी मैं भी वहां रुक जाती थी, कभी घर लौट जाती थी।
-अब बताईए कि हत्या वाले दिन क्या हुआ?
नौ बजे के करीब डांस वगैरह से फ्री हुए, फिर खाना-पीना चला। हम तीन जने थे - मैनेजर साहब, मैं और मोंटू उस्ताद।
फिर 10 बजे करीब हम खा-पीकर कैबिन से बाहर आए। मोंटू उस्ताद होटल से अपने घर चला गया और गेट से हमने उसे बॉय कहा।
-यह मोंटू उस्ताद है कौन?
-अब सर आप से क्या छिपाना। होटल में बार डांसर आदि की उपलब्धि की व्यवस्था वही करना है।
 कहां से?
-इस शहर से भी। दूर-दूर के गांवों से भी। विभा मर्डर केस में जो गबरू और वीरू पकड़े गए वे उसके छोटे एजेंट थे।
-ओह!
-उसके बाद मैं मैनेजर साहब को उनके कमरे में ले गई जहां मैंने उनके सोने का इंतजाम किया, जैसा कि मैं प्राय: करती थी। मैंने पहले ही उन्हें समझा दिया कि आज मुझे घर जाता है। अत: एक बार वे सैटल हो गए तो मैं बॉय कहकर होटल से अपने घर की ओर चल पड़ी, करीब साढ़े दस बजे।
-फिर?
-मैं तो घर पंहुचकर सो चुकी थी पर रात के एक बजे एक पुलिस दल आया और मुझे गिरफ्तार कर लिया और वह भी हत्या के जुर्म में।
बबीना रोने लगी।
मधुसूदन ने पानी का इंतजाम किया। फिर थोड़ा रुककर कहा- बबीना, थोड़ा सोचकर बताना। क्या हाल के समय में तुम्हें होटल में कोई ऐसी बात नजर आई थी, जो सामान्य से अलग थी।
    बबीना कुछ देर सोचती रही।
-वहां पर एक नई डेवैलपमेंट हो तो रही थी पर वह पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी।
- क्या?
-एक तो मैनेजर साहब वृद्ध हो रहे थे। दूसरे विभा वाले केस के बाद उन्हें लग रहा था कि अनेक बार डांसर को एकत्र करना व व इसे होटल का मुख्य अट्रैक्शन बनाना उचित नहीं है। वे कई बार कहते थे- अन्य तरह से होटल को अच्छा बनाना चाहिए। यह हाल में आया नया बदलाव था।
-ओह!
-जनरली होटल का स्टाफ उनके इस बदलाव से खुश ही था। हम कुछ मुख्य डांसरों की नौकरी तो बनी ही रहनी थी पर आगे होटल में बहुत सी बार डांसर को बुलाने को रोका जाने वाला था, ऐसी कुछ सोच चल रही थी।
-क्या किसी ने इसका विरोध भी किया था?
-ऐसा तो कुछ सुनने में नहीं आया क्योंकि अभी यह बात खुल कर सामने नहीं आई थी। पर चूंकि मैं मैनेजर साहब के नजदीक थी, अत: मुझे पता था कि उनके मन में यह हलचल चल रही है। इतना ही नहीं अपने मित्र एक दो अन्य होटल मालिकों से भी वे इसका जिक्र कर चुके थे कि यार अब यह धन्धा रोक दिया जाए, होटल का काम शराफत से चलाया जाए।
जेल से मधुसूदन सीधा होटल में आसिफ  अली के कमरे में पहुंचे।
-आसिफ साहब, मुझे आपसे कुछ मदद चाहिए।
-हुक्म कीजिए।
-वेटर ने मैनेजर साहब की डैड बॉडी कब देखी?
-कोई 11 बजे।
- मुझे सीसीटीवी कैमरे के रिकार्ड चाहिए कि 10:15 से 11 बजे के बीच क्या कोई ऐसे व्यक्ति रेस्त्रां या लॉबी में देखे गए, जो पहले इस होटल में कभी नहीं देखे गए।
अगले दिन आसिफ  ने रिकार्ड प्रस्तुत कर दिया। इनमें से एक-दो आदमी तो ठिगने कद के थे। इनमें तो मधुसूदन ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। तीरसा आदमी हट्टा-कट्टा, गोरा, दाढ़ी-मूंछ वाला था। मधुसूदन ने उसका चित्र अपने पास रख लिया।
इसके बाद मधुसूदन पहुंचे अपने एक होटल मैनेजर के पास जो संभ्रांत व्यक्तियों में गिने जाते थे। चर्चा चली तो होटल पैराडाईज की हत्या का भी जिक्र हुआ।
-अरे साहब वे तो बहुत गलत वक्त पर चले गए।
-कैसे?
-पहले तो उन्होंने शहर की होटल इंडस्ट्री को कुछ गलत पहचान ही दी। पर हाल ही के समय वे कहने लगे थे, और अन्य होटल मालिकों को भी समझाते थे कि यार यह जो गंदगी आ गई है, उसे बंद करो। होटल व्यवसाय को शराफत से चलाओ।
घर में बहुत थकी हालत में पहुंचने के बाद पहले तो गर्म चाय पी। फिर प्रतिभा से बतियाने लगे - देखो हत्या के दिन रात 10:30 बजे बबीना अपने घर चली जाती है। 10:25 से 10:35 तक रेस्त्रां में एक ऐसा हट्टा-कट्टा, गोरा-चिट्टा, दाढ़ी-मूंछ वाला आदमी नज़र आता है जो होटल में पहले कभी नहीं देखा गया। वह रेस्त्रां में ऐसी जगह बैठता है जहां से होटल में आने-जाने वाले नज़र आएं। जब वह देख लेता है कि बबीना चली गई है तो 10:35 बजे वह वहां से उठता है और टहलते हुए होटल के कमरों की ओर चला जाता है। उसके दस मिनट बाद वह होटल से बाहर जाता नज़र आता है।
इस होटल व अन्य होटलों में वुमैन्स ट्रैफिकिंग एक क्रिमिनल करता है जिसका नाम मोंटू उस्ताद है। विभा की हत्या के बाद पैराडाईज होटल के मैनेजर व मालिक यह कहने लगे थे कि अब होटल को शराफत से चलाना है और गलत धंधों से नहीं। वे अन्य होटल मालिकों को भी इसके लिए तैयार कर रहे थे।
मोंटू उस्ताद को डर लगा कि इस तरह उसका बिजनेस तो एकदम खत्म हो जाएगा। पैराडाईज होटल के मालिक को उसके बहुत डर्टी सीक्रेट्स भी पता थे, कहीं शराफत की राह तलाश करते हुए उसने कुछ लीक कर दिया तो....
अत: मोंटू उस्ताद ने उसे मारने का निश्चिय किया। हत्या के दिन रात के 10 बजे वह पैराडाईज होटल से ला गया, यह कहकर कि घर जा रहा हूं। पर वह घर नहीं गया। वह पास के एक अन्य रेस्त्रां में गया। वहां के बाथरूम में कपड़े बदले, दाढ़ी-मूंछ लगाई और सूट-बूट में पैराडाईज लौट आया। यहां उसने जैसे ही कन्फर्म कर लिया कि बबीना जा चुकी है उसने मैनेजर के कमरे में जाकर उसका गला घोट दिया व स्वयं चुपचाप होटल से चला गया जैसे बस कॉफी पीकर जा रहा हो।
अब आगे मुझे इंस्पेक्टर सोनकर के पास जाना होगा।
रात को जब मोंटू उस्ताद के घर पर इंस्पैक्टर एक सहयोगी पुलिसकर्मी के साथ पंहुचे तो मोंटू ने अपने को संयत रखने का पूरा प्रयास किया।
-अरे इंस्पैक्टर साहब इतनी रात गए आपने क्यों तकलीफ  की। मुझे फोन कर देते तो मैं स्वयं हाज़िर हो जाता।
-मुझे तो तुमसे बस इतना पूछना है मोटू कि तुमने पैराडाईज के मैनेजर की हत्या क्यों की?
क्षितिज ने नोट किया कि मोंटू का चेहरा एकाएक सफेद हो गया। फिर भी उसने स्थिति संभालते हुए, मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा -अरे आप मुझसे मजाक तो नहीं कर रहे हैं। इस केस में कभी की बबीना की गिरफ्तारी हो चुकी है।
-नहीं मोंटू मैं बिल्कुल सीरियस हूं। यह देखो सीसीटीवी से प्राप्त हत्यारे का फोटो। अब इतना ही आलीशान सूट-बूट पहन कर, दाढ़ी-मूंछ लगाकर तुम्हें हमारे सामने आना है। ताकि सारी स्थिति और क्लीयर हो जाए। अब छिपाए हुए यह सूट-बूट, दाढ़ी-मूंछ खुद निकालते हो या मैं तलाशी शुरू करूं।
मोंटू छलांग लगाकर उठा और उसने सिरहाने के नीचे पड़ी रिवाल्वर उठा ली। फिर दोनों पुलिसकर्मियों पर तानते हुए बोला - इतना आसान नहीं है मोंटू उस्ताद को पकड़ना। दोनों हाथ ऊपर कर ऐसे ही बैठे रहो नहीं तो गोलियों से भून दूंगा।
यह कहकर वह दरवाजे की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही उसने दरवाजा खोला उस पर चार पुलिसकर्मी झपट पड़े जो उसके इंतजार में घात लगाए बैठे थे।
आज मधुसूदन का जन्मदिन है। उसने घर में एक छोटी सी पार्टी में केवल चार मित्रों को ही बुलाया - मनीष, सुनीता, बबीना और आसिफ।
-आप यह सोच रहे होंगे कि कि आज मैंने केवल आपको ही क्यों बुलाया है। एक तो यह है कि मुझे इतनी खुशी कभी नहीं होती है जब मैं किसी निर्दोष को सजा से बचाने का माध्यम बनता हूं। तो आप को मिलकर मैं अपने जन्मदिन की इस खुशी को और तरोताजा करना चाहता था, पर इसके साथ मुझे आप लोगों का अन्य जानकारियां भी देनी हैं।
-क्या? सुनीता ने बहुत उत्सुकता से पूछा।
-वह यह है कि इन दो केसों के सुलझने के बाद सरकारी तंत्र में ट्रैफिकिंग रोकने के लिए अधिक सक्रियता हुई है और एक्शन प्लान तैयार हो रहा है।
-वाह! मनीष ने बहुत उत्साह से कहा।
-दूसरी बात जो आपको बतानी जरूरी है वह यह है कि जब हम अपनी छानबीन कर रहे थे, उस समय वास्तविक हत्यारों ने निर्दोष कैदियों को और गहरा फंसाने का काफी कुप्रयास किया। यह गबरू और वीरू ने भी किया पर उससे कहीं अधिक मोंटू उस्ताद ने किया। यह सब मुझे कुछ  बाद में पता चला और इससे मेरा यह विश्वास और दृढ़ हुआ कि सभी विचाराधीन कैदियों को अपने बचाव पक्ष को रखने का भरपूर अवसर अवश्य मिलना चाहिए।