सदन को हंगामा नहीं, चर्चा चाहिए

पिछले कुछ सालों से ऐसा लगने लगा है कि संसद और विधानसभा सत्र की लगातार बाधित होती कार्यवाही प्रक्रिया का मूलभूत हिस्सा बन चुका है। हालांकि सैद्धांतिक तौर से ऐसा नहीं है, लेकिन व्यवहार में हम ऐसा ही देख रहे हैं। राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही सदनों और राज्यों की विधानसभाओं में सत्र के दौरान हंगामा और अवरोध का ही बोलबाला रहा। हालांकि संसद में ये जो हंगामा हुआ है. इसके पीछे एक पृष्ठभूमि है। दरअसल सरकार की ओर से एक एडवाइज़री जारी की गई कि सदन में कोई भी धरना-प्रदर्शन, नारेबाज़ी या तख्तियां लेकर हंगामा नहीं होगा। दूसरी वजह सरकार की ओर से दिशा-निर्देश की एक पुस्तिका जारी करना है। 
इसमें असंसदीय शब्दों के दायरे में भ्रष्टाचार और तानाशाही जैसे शब्दों को भी शामिल कर लिया गया। विपक्ष ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करता रहा है। कांग्रेस की सरकार में भी ऐसी एडवाइज़री जारी की गई थी लेकिन इसका केवल अनुरोध किया गया था। तथापि मोदी सरकार ने काफी कड़ा रुख लिया है। विपक्ष की नाराज़गी की एक वजह यह भी है। भले ही विपक्ष कमजोर है। लेकिन वह जनता को दिखाना चाहता है कि वह उनके मुद्दों को उठा रहा है।  दूसरी ओर सरकार अपने रुख पर अड़ी दिखती हैं ऐसी स्थिति में फायदा तो सरकार को हो रहा है। सरकार जो बिल पारित कराना चाहती है, करा रही है। उस पर चर्चा नहीं हो रही जबकि बिल संसद की आत्मा होता है। जब बिल पर ही चर्चा नहीं हो रही है तो फिर क्या रह जाता है। ऐसा ही सख्त लहाजा इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान योगी सरकार द्वारा अपनाया जा चुका है। बहरहाल इसका सीधा उदाहरण पिछली अगस्त के मानसून सत्र के दौरान देखा जा चुका है जिसमें सदन में 23 विधेयक पास किए गए और इनमें 20 विधेयक ऐसे थे जिन पर एक घण्टा भी चर्चा नहीं हुई! इसी तरह इसके पूर्व जुलाई में इण्डिया गठबंधन ने बिना सोचे समझे प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास की पैरोकारी कर डाली और वह औंधे मुंह गिर पड़ा। संसद डायलॉग का रास्ता है। आपको बैठ कर बीच का रास्ता निकालना होगा, तभी संसद चल पाएगी और कामकाज हो सकेगा। संसद के कामकाज का इस तरह हंगामे की भेंट चढ़ जाना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता है। हमारे और आपके द्वारा चुने गए नेताओं के संसद में शोर और हल्ला करने से देश की इकोनॉमी पर काफी असर पड़ रहा है। देश में रहने वाले करदाताओं के पैसों का नुकसान हर घंटे केवल संसद में नेताओं के हो-हल्ले के कारण हो रहा है।संसद की प्रत्येक कार्यवाही पर करीब हर मिनट में 2.5 लाख रुपये खर्च का अनुमान है। आसान भाषा में समझें तो एक घंटे में डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हो जाता है। इसी तरह विधानसभाओं का खर्च है अगर मान लो किसी राज्य की विधानसभा का सालाना बजट 100 करोड़ रुपए है, जिसमें से 15 करोड़ रुपए अनुदान, वेतन और खर्चों के रहते हैं। बाकी 85 करोड़ रुपए सदन की कार्रवाई के संचालन पर खर्च होते हैं। यानी सालभर में तकरीबन 45 बैठकें होती हैं। इस हिसाब से एक दिन की बैठक के दौरान पांच घंटे सदन की कार्रवाई चलती है, जिस पर 2 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। एक घंटे की कार्रवाई पर 40 लाख रुपए और 1 मिनट की कार्रवाई पर खर्च 66 हजार रुपए के करीब है। इसके अलावा सत्र के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लगाई जाने वाली पुलिस और अन्य सुरक्षा के साथ सदन के आसपास की यातायात व्यवस्था के ध्वस्तीकरण से कोई अनजान नहीं है। केन्द्र का सदन चलने पर केन्द्रीय मंत्रियों के साथ उनके सहयोगियों एवं विभागों के अफसरों का राजधानी में एकत्रित होने का खमियाजा भी आम आदमी को उठाना पड़ा है। इसी तरह विधानसभा सत्र के दौरान राजधानियों की यातायात व्यवस्था का पटरी से उतरना आम बात है। ऐसे में अगर सत्रों को हंगामे की भेंट चढ़ाया जा सता है तो इसकी नैतिक जिम्मेदारी से पक्ष और विपक्ष भाग नही सकता। 
संसद का शीतकालीन सत्र चार दिसंबर से शुरू होकर 22 दिसम्बर तक चलेगा। 19 दिनों की अवधि में 15 बैठकें होंगी। सरकार की तरफ से विपक्षी दलों के साथ बैठक में कहा जा चुका है कि वह सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है लेकिन विपक्ष को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि सदन में चर्चा के लिए पूरा माहौल बने और कहीं कोई व्यवधान न हो। विपक्षी नेताओं ने पुराने आपराधिक कानूनों के स्थान पर लाए जा रहे तीन विधेयकों के अंग्रेजी में नाम, मंहगाई, जांच एजेंसियों के ‘दुरुपयोग’ और मणिपुर पर चर्चा की मांग रखर रखी है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि 19 विधेयक और दो वित्तीय विषय विचाराधीन हैं। राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि विपक्ष ने कुछ मुद्दों पर चिंता व्यक्त की है जिसमें चीन द्वारा ‘हमारी जमीन हड़पना’, मणिपुर, महंगाई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का ‘दुरुपयोग’ शामिल है। प्रह्लाद जोशी के अनुसार सरकार दो वित्तीय सहित कुल 21 विधेयकों को पेश करेगी। तीन विधेयक गृह मंत्रालय के हैं। जिनमें से एक विधेयक सेंट्रल यूनिवर्सिटी, संवैधानिक आदेश पर आधारित होगी। इसके अलावा निरसन एवं संशोधन विधेयक (लोकसभा द्वारा पारित रूप में), अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक (राज्यसभा द्वारा पारित रूप में) और प्रेस एवं आवधिक पंजीकरण विधेयक (राज्यसभा द्वारा पारित रूप में) पर सत्र के दौरान चर्चा होगी। संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक, संविधान (जम्मू-कश्मीर), अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पर भी चर्चा होगी। डाकघर विधेयक और मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल अवधि) विधेयक भी विचाराधीन है। बायलर विधेयक, करों का अनंतिम संग्रह विधेयक, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (दूसरा संशोधन) विधेयक, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) द्वितीय (संशोधन) विधेयक और केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023 पर भी चर्चा हो सकती है। सत्र में वित्तीय कार्यों के अलावा, वर्ष 2023-24 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के पहले बैच पर प्रस्तुति, चर्चा और मतदान होगा और संबंधित विनियोग विधेयक को पेश किया जाएगा, विचार किया जाएगा और पारित किया जाएगा। वर्ष 2020-21 के लिए अतिरिक्त अनुदान मांगों पर प्रस्तुति, चर्चा और मतदान और संबंधित विनियोग विधेयक को पेश करने, विचार करने और पारित करने पर भी चर्चा की जाएगी। 
बहरहाल सदन में नोंकझोक होना एक स्वस्थ लोकतंत्री की ज़रूरत है, लेकिन पिछले कुछ अरसे से जो कुछ सदनों में हो रहा है वह सत्ता के अहंकार को प्रदर्शित करता है। कमजोर विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों का जवाब अहंकार की भाषा में दिए जाने का प्रचलन बढ़ा है। ऐसी स्थिति में विपक्ष द्वारा गैरवाजिब स्तर पर हंगामा होना आम बात है। जनता से जुड़े मुद्दों पर सरकारों द्वारा घुमा फिराकर जबाब देना भी आम बात है। बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा एवं स्वस्थ्य सुविधा, बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर सरकार के स्पष्ट जबाब न आने भी इस बात का प्रमाण है कि सदन को चलाने के लिए सरकार अपना नियम चलाना चाहती है तो विपक्ष अपनी बात रखकर उससे स्पष्ट जवाब मांगता है। चार दिसम्बर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा और आप सांसद राधव का मामला जरूर शोर मचायेगा। इसके अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलगांना के विधानसभा चुनाव परिणाम का सीधा असर दिखाई पड़ेगा।