कैल का पेड़ जिसके कोयले से लोहा तक पिघल जाता है

भारत में जिन पेड़ों की लकड़ियों से अच्छा फर्नीचर बनता है, उसमें कैल भी एक महत्वपूर्ण पेड़ है। इसे कहीं-कहीं केलिक या केलिय भी कहते हैं। यह पेड़ आमतौर पर हिमालय पर 6000 से 11000 फुट तक की ऊंचाई पर पाया जाता है और बहुत विशाल वृक्ष होता है। वैसे अपने देश में कैल के पेड़ दो तरह के पाये जाते है। एक देसी कैल जिसकी लकड़ी में चीड़ के तेल की तरह तेल निकलता है और इसका कोयला इतना अच्छा होता है कि इससे लोहा तक पिघल जाता है। दूसरा विलायती कैल जिसकी लकड़ी आमतौर पर जलाने के काम में नहीं आती, लेकिन फर्नीचर के लिए शानदार होती है। जलाने के काम में यह इसलिए नहीं आती, क्योंकि इसे जलाने पर जगह-जगह गांठे होने के कारण यह बार-बार बुझ जाती है। लेकिन दोनों ही किस्म के कैल के पेड़ों की छाल बहुत मजबूत होती है। यह पहाड़ों में घरों की छत बनाने के काम में आती थी।
कैल के पेड़ वैसे तो कुदरती तौर पर हिमालय के ऊंचाई वाली जगहों पर पाये जाते हैं, लेकिन इन्हें हिंदुस्तान में कहीं भी लगाया जा सकता है। विलायती कैल के पेड़ देखने में बहुत सुंदर होते हैं, क्योंकि ये भारी भरकम और बिल्कुल सीधे होते हैं, इसलिए सड़कों के किनारे आमतौर पर इन्हें खूब लगाया जाता है। लेकिन देसी कैल का पेड़ इमारती लकड़ी के लिहाज से ज्यादा महत्व का होता है। चूंकि कैल के पेड़ की लकड़ी में जगह-जगह गांठें होती हैं और ये गांठें बहुत ज्यादा होती हैं। इसलिए कैल के पेड़ का कोयला बहुत अच्छा माना जाता है। कैल के पेड़ का कोयला बाकी कोयले से महंगा बिकता है। इसकी वजह यह है कि कैल की लकड़ी का कोयला देर तक जलता है और ऊर्जा देता है। कैल की लकड़ी बारीक दाने वाली और मीडियम दर्जे की कठोर होती है। अपने इन दोनों गुणों के कारण यह टिकाऊ और फर्नीचर के लिए उपयुक्त होती है। हालांकि फर्नीचर बनाने में इसे जो प्राथमिकता मिलती है, वह इसलिए नहीं कि यह बहुत मजबूत होती है बल्कि इसलिए इसे प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि अपने खुरदुरे तल के कारण इसे रंगना बहुत आसान होता है। साथ ही इसमें पेंट बहुत उभरकर आता है और अच्छा लगता है।
कैल की लकड़ी के मुख्यत: दरवाजे और पैकिंग बॉक्स बनाये जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में एक जमाने में इस लकड़ी का उपयोग बड़े पैमाने पर घर बनाने में होता था। लेकिन अब चूंकि कच्चे या लकड़ी के घर कम बनते हैं, इसलिए घर बनाने से ज्यादा इसका उपयोग फर्नीचर बनाने में होता है। यह साखू, सागौन और शीशम की तरह फर्नीचर के लिए उतने मजबूत नहीं होती, लेकिन इसका फर्नीचर दिखने में बहुत खूबसूरत लगता है, क्योंकि इसमें पॉलिश और पेंटिंग बहुत उभरकर आती है। कैल लकड़ी का कुदरती रंग हल्का पीला या हल्का सफेद होता है। भले यह साखू या सागौन जैसी मजबूत न हो, लेकिन इसमें और भी बहुत सारे गुण पाये जाते हैं। 
कैल की लकड़ी का फर्नीचर इसलिए भी लोगों के बीच पसंद किया जाता है, क्योंकि इसमें बदलते मौसम का असर कम होता है। इसकी लकड़ी मौसम प्रतिरोधी होती है, साथ ही इसमें दीमक भी नहीं लगती और यह आमतौर पर दूसरी लकड़ियों की तरह सड़ती भी नहीं है। हाथ से काम करने वाले बढ़ईयों की यह पसंदीदा लकड़ी होती है, क्योंकि इसे किसी भी तरह से तराशा जा सकता है। घर के कई टुकड़ों में बनने वाले फर्नीचर में खास तौर पर यह इस्तेमाल होती है और बड़ी बात यह है कि साखू और सागौन के मुकाबले यह लगभग आधी कीमत में मिल जाती है। फिर भी आज की तारीख में कैल की लकड़ी भी काफी महंगी हो गई है। इसकी लकड़ी का एक घन फीट का टुकड़ा करीब 17 किलो का होता है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह भारी और गांठों से भरपूर लकड़ी है। आम तौर पर यह 50 से 70 रुपये स्क्वॉयर फीट में उपलब्ध होती है, लेकिन कहीं-कहीं इसकी कीमत 100 रुपये स्क्वॉयर फीट तक जाती है। 

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