झारखंड विधानसभा में चम्पई की जीत ‘इंडिया’ के लिए शुभ संकेत

भाजपा द्वारा विधायकों की खरीद-फरोख्त के प्रयासों की खबरों के बीच 5 फरवरी को झारखंड विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने हेतु हए मतदान में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की जीत देश के वर्तमान राजनीतिक माहौल में ‘इंडिया’ के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है। मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन के लिए अब प्रशासन में भ्रष्टाचार को दूर करते हुए लोगों, विशेषकर आदिवासियों के कल्याण के लिए सरकार चलाना कठिन काम है।
झारखंड 2000 में अपनी स्थापना के बाद से ही राजनीतिक अशांति से गुज़र रहा है। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पिछले कुछ दिनों में इसे एक और संकट और राजनीतिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा है। राज्य का राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है। पिछले दो दशकों में इसने ग्यारह मुख्यमंत्रियों को देखा है। 12वीं नियुक्ति चम्पई सोरेन की है। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनके आधिकारिक आवास पर सात घंटे तक पूछताछ की गई थी और बाद में उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप संकट पैदा हो गया था। भ्रष्टाचार और दल-बदल ने राज्य में अस्थिरता पैदा कर दी है। पिछले दिनों कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भ्रष्टाचार के कारण इस्तीफा दे दिया। जब हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया तो यह आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि उन्हें पता था कि देर-सवेर ऐसा होने वाला है।
दुर्भाग्य से संकट एक महत्वपूर्ण समय पर आया जिसने कई मुद्दे खड़े कर दिये। इनमें नवगठित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को लेकर अनिश्चितता भी शामिल है। यह आगामी लोकसभा चुनावों के नतीजों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जो अप्रैल-मई में होने वाले हैं। साथ ही छोटे राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता क्यों महसूस हो रही है, इस पर भी मंथन होना चाहिए। झारखंड के गठन के बाद से ही यहां राजनीतिक अस्थिरता और माओवादी हिंसा रही है। इसके विपरीत एक साथ बना छत्तीसगढ़ अपेक्षाकृत राजनीतिक रूप से स्थिर रहा है। झारखंड में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। फिर भी सरकार में बार-बार बदलाव के कारण यहां के लोग गरीबी और विकास की कमी से जूझ रहे हैं। इससे समय के साथ राज्य के विकास में बाधाएं पैदा हुई हैं।
2000 के बाद से झारखंड में 11 मुख्यमंत्री हुए हैं जिनमें से अधिकांश का कार्यकाल संक्षिप्त रहा। केवल भाजपा के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 2014 से 2019 तक पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
हेमंत सोरेन द्वारा इस्तीफा देने के बाद राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने चम्पई सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में देरी की, जिससे झारखंड में तनाव पैदा हो गया। राज्य 48 घंटे से अधिक समय तक बिना मुख्यमंत्री के रहा। हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के एक प्रतिबद्ध सदस्य और पूर्व राज्य परिवहन मंत्री चम्पई सोरेन ने आखिरकार पिछले दिनों नये मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली। चम्पई सोरेन हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन के साथ पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। हेमंत ने चम्पई सोरेन को न केवल उनकी वफादारी के लिए बल्कि उनकी योग्यता और पार्टी के प्रति समर्पण के लिए भी अपना उत्तराधिकारी चुना। सिर्फ  छोटे राज्य बनाने से बेहतर जीवन की कोई गारंटी नहीं है, जैसा कि 2000 में बने उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड से पता चलता है। झारखंड विधानसभा में 81 सदस्य हैं। 41 सदस्यों के साथ सरकार बन सकती है। झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन के 47 सदस्य हैं, भाजपा के 25 और आजसू पार्टी के तीन सदस्य हैं। शेष सीटें राकांपा, एक वामपंथी पार्टी और तीन स्वतंत्र सदस्यों द्वारा साझा की गई हैं।झामुमो के नेतृत्व वाला गठबंधन चिंतित था कि भाजपा उनके सदस्यों को लालच देकर उनकी सरकार को अस्थिर कर देगी।
 नये मुख्यमंत्री के शपथ लेने तक एहतियात के तौर पर विधायकों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। दल-बदल की समस्याओं ने राजनीतिक व्यवस्था को त्रस्त कर दिया है। रिज़ॉर्ट राजनीति एक और मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
छोटे राज्यों की स्थिरता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता है। झारखंड में क्षेत्रीय दलों पर निर्भर राष्ट्रीय दलों के साथ बहुदलीय प्रणाली अस्थिरता और दलबदल को जन्म दे सकती है।
चुनावों में जब किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो यह छोटे और बड़े राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकता है। सांसदों को दल बदलने से रोकने के लिए दल-बदल विरोधी कानून बनाया गया। हालांकि, यह कानून अक्सर विफल हो जाता है क्योंकि कुछ विधायक धन और बाहुबल के कारण दल बदल लेते हैं।
दल-बदल की बुराई को रोकने हेतु व्यापक चुनाव सुधारों को लागू किये जाने का ज़रूरत है और चुनावों के लिए राज्य वित्त पोषण प्रदान किया जाना चाहिए। चुनाव प्रणाली की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों को व्यावहारिक समाधान खोजने होंगे। (संवाद)