जेलों में बंद बेबस और बेकसूरों की आवाज़ बने कोई! 

यूनान के महान दार्शनिक सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु प्लेटो थे। इन तीनों ही विद्वानों ने जो लिखा, जो कहा, वह आज तक पढ़ा और सुना जाता है। उनका समय ईसा पूर्व 2400 के लगभग माना जाता है और वे यूनान में पैदा हुए थे। जो कुछ प्लेटो ने उस समय लिखा, वह आज भी बहुत ही ज्यादा प्रासंगिक है और शत-प्रतिशत सही है। प्लेटो ने लिखा था कि दुनिया में सबसे बड़ा झूठ यह है कि कानून के सामने सब बराबर हैं। भारत में भी नेताओं के मुख से विश्वविद्यालयों के विद्वतजनों की सभाओं में इसी सत्य को दोहराया जाता है कि कानून के समक्ष सब बराबर हैं। हमारा संविधान भी इसी की पुष्टि करता है, परन्तु वास्तव में वही सत्य दिखाई देता है जो प्लेटो ने कहा था। अपने ही देश में देखें तो धनी और राजनीतिक दृष्टि से विशिष्ट व्यक्ति वीआईपी के नाम से उन सभी सुविधाओं को सहज प्राप्त कर लेते हैं जो गरीब के लिए या राजनीतिक, आर्थिक अथवा सामाजिक दृष्टि से कमज़ोर व्यक्ति के लिए दिवा-स्वप्न जैसा होता है। हम हर रोज़ संविधान द्वारा दिए समानता के अधिकार की चर्चा करते हैं। समानता मिलती कहां है? न पुलिस थानों में, न राजनेताओं के दरबार में, न परिवारों में। समाज में तो मिलती ही नहीं। इसीलिए नीतिशास्त्र में लिखा है कि जो समाज धन को मान्यता देता है, वह हर तरह के पाप और अपराध को मान्यता दे देता है।
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, परन्तु लोकतंत्र के जो आज के मुखिया हैं, वे लोगों तक कभी नहीं जाते। केवल वोट लेने के लिए वे गली-गली जाते हैं। उसके बाद आकाश में उड़ते हैं। छठ पूजा पर अपने घर गांव तक जाने वाले गरीबों की क्या दुर्दशा होती है, पुलिस स्टेशनों से न्याय पाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं? अगर किसी पर झूठा केस बना दिया जाए तो जांच की राहत पाने के लिए सत्तापतियों को चांदी का जूता पहनाना ही पड़ता है। सभी जगह भेदभाव है। यह ठीक है कि अब सरकारें प्रयास कर रही हैं कि शिक्षा और चिकित्सा सबको एक जैसी मिले, परन्तु यह साफ दिखाई दे रहा है कि ऐसा सुखद स्वप्न साकार होने में शायद एक अमृत महोत्सव और मनाना पड़ जाए, परन्तु शिकायत तो उन सत्तापतियों से है जो बड़ी अलंकृत भाषा में जनहित में भाषण देते हैं, मंचों पर भावुक होने का नाटक करते हुए कभी-कभी आंखों में आंसू भी ले आते हैं। प्रत्यक्ष ऐसा दिखाई देता है कि वंचित और पीड़ित की दशा से बहुत ही दुखी हैं, परन्तु ये सब कुछ मंचीय दृश्य हैं। पंजाब और भारत की जेलों में कैदियों की स्थिति कभी अच्छी नहीं रही। 
कुछ समय पूर्व देश के एक प्रदेश की जेल से एक कैदी की आवाज़ सुनाई दी थी। वह अपनी बहन से बार-बार आग्रह कर रहा था कि जितना रुपया जेल अधिकारी ने मांगा है, उसका प्रबंध करो अन्यथा उसके साथ क्या हो जाएगा इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। जेल के अंदर रस्म निभाने के लिए न्यायपालिका या राजनेताओं द्वारा बंदियों की शिकायतें सुनने के लिए जो आयोजन किए जाते हैं, उनका कोई लाभ नहीं। जेलों में बंदी व्यक्तियों से उनके परिवार जब मुलाकात करने जाते हैं तो उनके साथ क्या बीतती है, अगर सहृदय अधिकारी और राजनेता यह जान लें तो उन्हें सच्चाई का पता चल जाएगा। जेल में सार्वजनिक तौर पर कौन कैदी यह बताने का साहस करेगा कि उनके साथ क्या बीतती है। जल में रह कर मगरमच्छ से बैर कौन करेगा। क्या यह सच नहीं कि जेल में सभी को बीमार होने पर इलाज नहीं मिलता? क्या यह सच नहीं कि जेल में लोगों की पिटाई भी होती है? क्या यह सच नहीं कि कैदियों के परिजन जो उनके लिए खाने-पीने का तथा अन्य सामान लेकर जाते हैं, वह कितने प्रतिशत उनके पास पहुंचता है? यह तो वही बता सकते हैं जिन्होंने यह सब सहा है। जेल में बहुत बड़ी संख्या में वे लोग भी बंदी हैं जो अभी विचाराधीन हैं। उनके परिवार में मृत्यु जैसा दुख भी आ जाए तो वे घर में जाकर रो कर अपने प्रियजन के अंतिम दर्शन करके दुख भी नहीं बांट सकते। जब उन्हें इस दुखद अवसर पर भी छुट्टी पर भेजना होता है तो जो सुरक्षा उन्हें दी जाती है उसके लिए भी इन कैदियों के परिवारों को खर्च देना पड़ता है। 
यह एक सच है कि जेलों में ऐसे लोग भी बंद हैं जिन्होंने कोई अपराध किया ही नहीं। सच यह भी है कि जो गरीब हैं वे तो जिला अदालत में भी अपना केस नहीं ले जा सकते। सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर न्याय पाना तो उनके परिजनों के लिए असंभव ही होता है। जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए सरकार के बनाए एक कानून की चर्चा तो सुनी थी, परन्तु अभी तक दिखाई नहीं दिया। जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए, तब तक आरोपी जमानत पर रहेंगे, यह भी सना था ताकि जेलों में संख्या बहुत ज्यादा न हो। जो काम एक दम सरकारें कर सकती हैं और करना भी चाहिए, वह यह है कि जो एलएलबी, एलएलएम के विद्यार्थी हैं, उन्हें डिग्री देने से पहले कम से कम अंतिम सेमेस्टर में जेलों में बंदियों के केस जानने, उनके प्रार्थना पत्र अदालतों में पहुंचाने, उनके लिए वकील बनकर खड़े होने का नियम बना दिया जाए। 
फिर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं रहेगा जो हवालाती के रूप में जेलों में बंद रहे। कारण यह कि आज न उनकी कोई ज़मानत देने वाला है, न उनका प्रार्थना पत्र कहीं आगे जा सकता है। भारत के कानून मंत्री को यह भी नियम बनाना चाहिए कि जेल में बंद कैदियों की वर्षों से उच्च अदालतों में विचारार्थ पड़ी अपीलों का निपटारा शीघ्र किया जाए। कई बार ऐसा भी होता है कि अपील का निपटारा होने तक उनकी सज़ा पूरी हो जाती है।