उत्तर प्रदेश में भाजपा से मुकाबले के लिए सपा व कांग्रेस की ज़ोरदार तैयारी

लखनऊ में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबला करने के लिए राज्य स्तर से लेकर बूथ स्तर तक समन्वय समितियां गठित करने में व्यस्त हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कांग्रेस के अहम नेताओं के साथ लंबी बैठक हुई है। तैयारियों की नवीनतम स्थिति की समीक्षा की गयी और भाजपा से निपटने के उपायों पर चर्चा की गयी।
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी ने उन 17 लोकसभा क्षेत्रों से पदाधिकारियों को बुलाया जहां से कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें बेहतर समझ के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मिलवाया।
समाजवादी पार्टी 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और 17 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी हैं। एक रणनीति के रूप में समाजवादी पार्टी 2019 में जीती गयी पांच सीटों और अन्य 31 सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी। यहां बताना ज़रूरी होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच गठबंधन हुआ था। अब आरएलडी एनडीए में शामिल हो गयी है। समाजवादी पार्टी को तब भी झटका लगा जब पल्लवी पटेल की अपना दल (के) ने अखिलेश यादव से नाता तोड़ लिया और असदुद्दीन ओवैसी से हाथ मिला लिया और ए.आई.एम.आई.एम. के साथ गठबंधन की घोषणा की। जिन 31 लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी दूसरे स्थान पर रही, उनमें से 11 सीटें पूर्वी यूपीए आठ पश्चिमी यूपीए 10 मध्य क्षेत्र और दो बुंदेलखंड की हैं।
समाजवादी पार्टी ने पार्टी की विचारधारा, महत्वपूर्ण मुद्दों और पिछली सरकारों की उपलब्धियों के बारे में शिक्षित करने के लिए विशेषज्ञों के साथ प्रशिक्षण शिविर, कैडर निर्माण आदि के लिए छोटी बैठकें आयोजित की हैं। हर बूथ पर 10 नये सदस्यों की टीम तैयार की जा रही है। जाति जनगणना की आवश्यकता और दलितों से संबंधित मुद्दों के बारे में पिछड़े समुदायों को संवेदनशील बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए अम्बेडकर समाजवादी टीमें भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा कर रही हैं।
अखिलेश यादव इटावा में भगवान शिव के बड़े मंदिर के निर्माण और विभिन्न मंदिरों के नियमित दौरे के जरिए ऊंची जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए नरम हिंदुत्व कार्ड भी खेल रहे हैं। समाजवादी पार्टी टिकट बंटवारे में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की रणनीति बनाए हुए है। समाजवादी पार्टी ने अब तक घोषित 48 टिकटों में से 24 ओबीसीए 14 दलित, चार मुस्लिम और बाकी ऊंची जातियों को दिये हैं।अखिलेश यादव भी अपने परिवार पर भरोसा कर रहे हैं। जहां यादव और मुस्लिम समुदाय के मतदाता उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हैं। उनकी पत्नी डिंपलमैनपुरी से, चाचा शिवपाल यादव बदायूं से, चचेरे भाई धर्मेंद्र आजमगढ़ से और एक अन्य चचेरे भाई अक्षय फिरोजाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं।
जहां एक ओर सपा सुप्रीमो ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है, वहीं दूसरी ओर गठबंधन सहयोगी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय को तीसरी बार वाराणसी से चुनाव मैदान में उतारा है।
अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवारों को लेकर अभी रहस्य बरकरार है। लोग सोच रहे हैं कि क्या प्रियंका गांधी अपनी मां की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी या नहीं? श्रीमती सोनिया गांधी जिन्होंने कई कार्यकालों तक पारिवारिक सीट का प्रतिनिधित्व किया, स्वास्थ्य समस्याओं के कारण पहले से ही राज्यसभा में चली गयी हैं। कांग्रेस पार्टी अपने क्षेत्रों में चुनाव से पहले जनता के बीच जाने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ विशेषज्ञों की छोटी बैठकों पर भी जोर दे रही है ताकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूक किया जा सके। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के पीछे मुस्लिम समुदाय की बड़ी एकजुटता है। तीन युवा नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव राज्य में भाजपा से मुकाबला करने के लिए प्रभावी ढंग से संवाद कर रहे हैं, जो लोकसभा में 80 सदस्य भेजता है। (संवाद)