सब्र के इम्तिहान का ईनाम है ईद

ईद उल फितर पर विशेष

रमजान सब्र, प्रेम और भाईचारे के साथ-साथ अल्लाह की खिदमत का एक खास महीना है। तभी तो इस्लाम धर्म को मानने वाला हर मुसलमान रमजान का बेसब्री से इंतजार करता है। रमजान का महीना शुरू होता है तो हर रोजेदार की दिनचर्या बदल जाती है। बड़े सवेरे उठना और अल्लाह को याद करने के साथ ही पांचों वक्त की नमाज रोजेदार को अल्लाह की इबादत का मौका दिलाती है। रमजान की शुरुआत भी चांद से ही होती है और रमजान पूरे होने पर ईद का जब चांद निकलता है तो सबके चेहरे पर खुशी छा जाती है। दरअसल रमजान के सकुशल बीतने की खुशी में अल्लाह को शुक्रिया अदा करने के लिए ही ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है। अल्लाह के नेक बन्दों की खिदमत का मुबारक मौका है ईद।
ईद पर कोई भूखा न रहे, पड़ोसी के घर में भी ईद की खुशियां मनें और आपसी मोहब्बत व भाईचारे की नई शुरुआत हो, यही कोशिश हर किसी की रहती है। तभी तो ईद की सवेरे से ही ईद की खुशियां सब पर हावी हो जाती हैं। बड़े सवेरे से घर में सेवइयां बननी शुरू हो जाती हैं। एक माह तक रोज़ा रख चुके लोग नये-नये कपड़े पहनकर ईद की नमाज़ अदा करने के लिए ईदगाह जाते हैं। ईदगाह में नमाज़ के बाद एक दूसरे के गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी जाती है। बच्चे नये-नये खिलौने खरीदते हैं। सेवइयां और तरह तरह के पकवान खाये जाते हैं। ईद पर गरीबों को दान देने, उनकी सहायता करने की खास परम्परा है ताकि हर किसी के चेहरे पर ईद की खुशियां बरकरार रहें।
इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने की पहली तारीख को चांद दिखने व तीस रोजे निर्विघ्न खुदा की इबादत के साथ पूरे होने की खुशी में ईद उल फितर मनाया जाता है। ईद उल फितर की शुरुआत जंग-ए-बदर के बाद सन् 624 ईस्वी को पैगम्बर मोहम्मद साहब द्वारा ईद उल फितर मनाने से हुई थी। रमजान साल का एक अनूठा महीना होता है। इस महीने में हर मुसलमान जहां ज्यादा से ज्यादा समय अल्लाह की रहमत में गुजारना चाहता है। वहीं वह स्वयं को सुधारने व खुदा के बन्दों के चेहरों पर रौनक लाने के लिए उनके हर गम में शरीक होता है। जो खुदा के बन्दे पैसों से मोहताज हैं, भूखे हैं, लाचार है, उनकी हर हाल में मदद कर उन्हें बराबरी पर लाने की कौशिश की जाती है। इस्लाम में हर शख्स को रोज़ाना ही शरीर और दिमाग से पाक साफ रहने की हिदायत है लेकिन रमजान के महीने में हर दिन विशेष तौर पर पाक साफ रहने की बात कही गई है ताकि रोजेदार हर तरह के गुनाहों से दूर रहें। आपसी भाईचारे से रहना सीखें। खुदा की इबादत करें। नेकी करें लेकिन ईद उल फितर की खुशी के मौके पर कैसे हो दिन की शुरुआत यह भी इस्लाम में बताया गया है। 
इस्लाम धर्म के विद्वान कुंवर जावेद इकबाल बताते है कि ईद उल फितर के दिन की शुरुआत फर्ज की नमाज के साथ होती है। रमजान में तीस दिनों तक रोज़ा रख चुके रोजेदारों एवं उनको भी जो बीमारी या फिर किसी अन्य वजह से रोज़ा नहीं रख पाए, को मिस्वाक दातुन करने के बाद गुसल करके नहाना करना चाहिए। फिर साफ कपड़े पहन कर कपड़ों पर इत्र की खुशबू के साथ कुछ खाकर ईदगाह जाना चाहिए। ध्यान रहे ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात की ज़रूरी रस्म नहीं भूलनी चाहिए। यही वह रस्म है जो गरीब और मोहताज पड़ोसी के चेहरे पर सहायता की रौनक लाती है। इस्लाम मानता है कि मनुष्य में वासनाएं, इच्छाएं और भावनाएं प्राकृतिक रूप से समाहित हैं। इसी कारण उसके स्वभाव में तेजी, उत्तेजना और जोश होता है जिसे जड़ से तो समाप्त नहीं किया जा सकता लेकिन नियंत्रित ज़रूर किया जा सकता है। इस नियन्त्रण के लिए ही रमजान में रोज़ों की व्यवस्था की गई है ताकि मनुष्य अल्लाह को याद करने के साथ-साथ अपने अन्दर की बुराइयों को दूर करते हुए आत्म नियंत्रण करना सीखे और एक अच्छे भले इन्सान के रूप में अपने जीवन का यापन करे। वैसे तो इस्लाम में हर रोज पांच वक्त की नमाज पढ़ने की हिदायत दी गई है, लेकिन रमजान के दिनों में चूंकि हर रोजेदार अल्लाह के करीब होता है इसलिए पांचों वक्त की नमाज पढ़ना वह अपना समझता है।  रोजा रखने से जहां पेट बिल्कुल ठीक रहता है और शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है, वहीं पांचों वक्त की नमाज पढ़ने से उसकी यौगिक क्रियाएं भी हो जाती हैं। नमाज की शरीरिक स्थिति इस तरह की होती है कि सभी तरह के आसन और प्राणायाम अल्लाह की इबादत में पूरे हो जाते हैं। 
यह वह त्योहार है जो हमें इन्सानियत की सीख देता है, जो दूसरों की भलाई का जज्बा देता है और मुल्क की तरक्की व हिफाजत का जुनून देता है। ईद की खुशी रोजेदारों को तभी से मिलनी शुरू हो जाती है जब रमजान में रोजेदार अन्य मुसलमानों के साथ-साथ दूसरे धर्मो से जुडे लोग भी रोज़ा इ़फ्तार की रस्म में शरीक होकर आपसी भाईचारे व एकता का पैगाम देते हैं। रोज़ा इफतार कार्यक्रमों का सिलसिला रमजान में लगातार चलता है। राजनीतिक पार्टियों से लेकर स्वयंसेवी 
संस्थाएं भी रोज़ा इ़फ्तार के कार्यक्रम आयोजित करती हैं। आज प्रधानमंत्री से लेकर छोटे से छोटे राजनेता भी रोजा इ़फ्तार का कार्यक्त्रम कराने लगे हैं। कुछ लोग इसका नाजायज़ रूप में राजनीतिक इस्तेमाल भी कर रहे है। जिससे इसकी पवित्रता प्रभावित होती है। इसलिए हमें केवल और केवल धार्मिक भावना के तहत ही रोज़ा इ़फ्तार कराकर रोजेदारों की खिदमत करनी चाहिए और ईद पर भी उन्हें तहेदिल से गले लगाना चाहिए। तभी ईद का मजा दोगुना हो सकता है और ईद से नई उम्मीदों, नई रोशनी व नये रिश्तों की शुरुआत हो सकती है। 
मो-9997809955