अग्नि-कांड के सबक

गुजरात के राजकोट शहर में एक भीषण अग्नि-कांड में कम से कम 30 लोगों के जीवित जल मरने की एक अत्यन्त त्रासद एवं वीभत्स घटना ने एक ओर जहां स्थानीय लोगों को गमज़दा किया है, वहीं देश के कई अन्य भागों में भी घटित हुई ऐसी कई घटनाओं की कटु स्मृतियों को भी ताज़ा किया है। इस अग्नि-कांड में अनेक अन्य लोग घायल भी हुए हैं। हताहतों में अधिकतर बच्चे और उनके अभिभावक शामिल हैं। यह दुर्घटना जब घटित हुई, तब इस गेम-ज़ोन में टी.आर.पी. के ज़रिये मनोरंजक खेलों का आयोजन किया गया था। इस गेम ज़ोन का ढांचा कुछ इस प्रकार से है, कि नीचे से ऊपर जाने और फिर ऊपर से नीचे आने का सीढ़ी मार्ग इतना संकरा था कि लोगों को बच निकलने का अवसर ही नहीं मिला। इसके अतिरिक्त इस व्यवसायिक स्थल में बचाव मार्ग और सुरक्षा उपकरण इतने कम थे, कि वे आग बुझाने की अपेक्षा व्यवधान का कारण बनते रहे। यह भी, कि इस व्यवसायिक केन्द्र के इर्द-गिर्द टायरों का कबाड़ और डीज़ल भी हज़ारों लीटर की मात्रा में पड़ा था जिससे आग बड़ी तेज़ी से नीचे से ऊपर की तीन मंज़िलों की ओर फैल गई। आग का कारण अस्थायी रूप में बनाये गये खेल कक्षों के निर्माण हेतु किये जा रहे वैल्ंिडग कार्यों के दौरान हुए विस्फोट को बताया गया है।
इस अग्नि-घटना की भयावहता के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि स्कूलों एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में छुट्टी होने और आयोजकों द्वारा प्रवेश शुल्क को काफी  सीमा तक कम कर देने के कारण भीड़ अपेक्षा से अधिक हो गई थी जिसे नियंत्रित कर पाने की अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गई थी। सम्भवत: इसी कारण कुछ नये कक्ष बनाने हेतु वैल्ंिडग कार्य किये जा रहे थे। अत्यधिक गर्मी के कारण वैल्ंिडग से उपजी कोई चिंगारी किसी गैस सिलेण्डर में जा गिरी होगी जिससे एकाएक भीषण विस्फोट हुआ, और मनोरंजन हेतु वहां पहुंचे सैंकड़ों लोग अग्नि-ज्वालाओं के बीच घिर गये। इस खेल कक्ष को अधिकाधिक आय-अर्जन बनाने के लिए इसमें लकड़ी के भिन्न-भिन्न कक्ष बनाये गये थे। इस कारण आग तेज़ी से भड़की होगी। घायलों में से कइयों की दशा गम्भीर बताई जाती है जिससे मृतकों की संख्या में इज़ाफा हो सकता है। आग से जले अनेक शवों के अंग-भंग हो चुके थे।
हम समझते हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर आग लगने जैसी ऐसी कोई गम्भीर घटना गुजरात अथवा देश में पहली बार तो नहीं हुई, और न ही इससे प्रकट हुई अव्यवस्था और सुरक्षा उपायों की अपर्याप्तता ही पहली बार दिखाई दी है। गुजरात में तक्षशिला में हुए एक अग्निकांड में 22 बच्चों की मृत्यु हुई थी। मोरबी के झूलता पुल की दुर्घटना में भी 135 लोग मारे गये थे। पंजाब-हरियाणा की सीमा पर मंडी डबवाली के एक मैरिज काम्पलैक्स में आज से 27 वर्ष पूर्व देश के एक सबसे बड़े अग्नि-कांड में 442 लोग जीवित जल गये थे जिनमें से 258 स्कूली बच्चे थे। एक स्कूल-कार्यक्रम हेतु इस काम्पलैक्स में भव्य मिलन समारोह का आयोजन किया गया था। मंडी डबवाली अग्नि-कांड में हताहत होने वालों के परिजनों की मानसिक और दैहिक पीड़ा आज भी कभी-कभार इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने पर जाग उठती है। कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित करने की मनोवृत्ति के तहत इस प्रकार के बड़े आयोजनों के दौरान रह गई छोटी-छोटी त्रुटियां अक्सर कितने भीषण कांड का कारण बन जाती हैं, इसका प्रमाण गुजरात और मण्डी डबवाली की घटना से चल जाता है। इस आयोजन की त्रुटियों में प्रशासनिक तंत्र की लोलुपता और कोताही भी सामने आई है। बताया जाता है कि इस आयोजन की सरकारी मंजूरी नहीं ली गई थी। इसी कारण अग्नि-शमन जैसी व्यवस्था भी पर्याप्त ढंग से नहीं की गई थी। हम समझते हैं कि सरकार, प्रशासन तथा संबंधित विभागों की ओर से सार्वजनिक पार्कों, शॉपिंग मॉल्स और अन्य ऐसे स्थानों पर जहां लोग भारी संख्या में इकट्ठा होते हों, वहां इस तरह की घटनाओं को घटित होने से रोकने के लिए पुख्ता प्रबन्धों के संबंध में समय-समय पर निरीक्षण ज़रूर करते रहना चाहिए ताकि इस तरह की किसी भी बड़ी घटना को घटित होने से रोका जा सके। नि:संदेह अब पूर्व परम्पराओं की भांति जांच-कार्य का चक्र चलेगा और कागज़ी खाना-पूर्ति भी होगी, किन्तु धन-बल और राजनीतिक शक्ति के बल पर इन फाईलों पर भी वक्त की धूल जमने की प्रबल आशंका है। तो भी, हम चाहते हैं कि इस मामले की नीचे से ऊपर तक की व्यवस्था की पूर्णतया जांच-पड़ताल की जाए, और दोषी पाये जाने वालों के लिए एक अनुकरणीय एवं पर्याप्त दण्ड व्यवस्था की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने से यथा-सम्भव रोकी जा सके।