गठबंधन सरकार में भाजपा को करना पड़ सकता है चुनौतियों का सामना

भाजपा को अपने तीसरे कार्यकाल में गठबंधन की सरकार चलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। उसके भागीदार नितीश कुमार के जनता दल (यू) द्वारा सेना में भर्ती के लिए अग्निवीर योजाना की समीक्षा करने की मांग, बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग तथा जाति आधारित जनगणना करवाने की अपनी बात दोहराने के बाद इसके स्पष्ट संकेत मिलने भी शुरू हो चुके हैं। इस दौरान दूसरे अहम भागीदार चन्द्रबाबू नायडू की नज़रें आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के अतिरिक्त लोकसभा स्पीकर पद पर हैं। इस बात की भी चर्चा है कि पार्टी के खराब चुनाव प्रदर्शन के बाद भाजपा के भीतर ही कुछ दरार उभर रही है। एक और सूत्र ने कहा कि गठबंधन की भागीदार पार्टियों, विशेषकर क्षेत्रीय पार्टियां इस बात से अवगत हैं कि वे एक ‘फास्टियन’ सौदेबाज़ी में प्रवेश कर सकते हैं और इससे ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए रास्ते, अवसर तथा सम्भावनाएं खुली रहेंगी। 
 शिंदे सेना की नाराज़गी
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना ने नई बनी मोदी सरकार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में कैबिनेट पद के वितरण पर नाराज़गी तथा निराशा व्यक्त की तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि गुट इसे मंत्री पदों के वितरण में ‘पक्षपात’ के रूप में देखता है। यह तब हुआ जब अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने कहा कि वह राज्य मंत्री का पद स्वीकार करने के बजाय कैबिनेट पद का इन्तज़ार करेगी। हालांकि शिव सेना (शिंदे) ने सरकार को बिना शर्त समर्थन देने के अपने रुख को दोहराया, जिसमें पार्टी ने राष्ट्र निर्माण की कोशिशों को जारी  रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। दूसरी ओर 2004 से राजग के सबसे पुराने भागीदारों में एक आजसू से भी असहमति के स्वर उठने शुरू हो गए थे। आजसू के इकलौते तथा गिरीहीड से सांसद चन्द्र प्रकाश चौधरी को कैबिनेट मेें नज़रअंदाज़ किये जाने पर निराशा व्यक्त की है और संकेत दिया है कि इसका प्रभाव इस वर्ष के अंत में होने वाले झारखंड विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा। 
भाजपा के लिए कार्यकारी अध्यक्ष
भाजपा के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है, क्योंकि मौजूदा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में कैबिनेट में शामिल हो गए हैं। नड्डा को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के साथ-साथ रसायन एवं खाद मंत्री भी नियुक्त किया गया है। पार्टी सूत्रों ने संकेत दिया है कि इस माह के अंत में प्रधानमंत्री मोदी के इटली दौरे से लौटने के बाद पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष चुना जाएगा। कार्यकारी अध्यक्ष का चुनाव पार्टी का संसदीय बोर्ड करता है। बोर्ड नड्डा को अपने पद पर बने रहने तथा कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए भी कह सकता है। भाजपा संविधान के अनुसार 50 प्रतिशत राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। सदस्यता अभियान जुलाई में शुरू होगा तथा लगभग 6 माह तक चलेगा। दिसम्बर-जनवरी में नये अध्यक्ष का चुनाव होगा।    
सी.पी.आई. (एम.एल.) की सक्रियता
महागठबंधन की भागीदार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लैनिनवादी) लिबरेशन या सीपीआई (एम.एल.) लिबरेशन अपने लिए मिलीं तीन लोकसभा सीटों में से दो पर जीत प्राप्त करने के बाद पुन: मैदान में है। पार्टी ने कानू हलवाई ओ.बी.सी. भाईचारे के सुदामा प्रसाद को मैदान में उतारा और आरा में केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह को हराया था। इसी प्रकार काराकाट में  कुशवाहा राजा राम सिंह ने उपेन्द्र कुशवाहा व भाजपा से अलग होकर आज़ाद चुनाव लड़ने वाले लोकप्रिय भोजपुरी गायक पवन सिंह के खिलाफ त्रिकोणीय मुकाबले में जीत प्राप्त की। 2020 के विधानसभा चुनावों में भी सीपीआई (एम.एल.) लिबरेशन का स्ट्राइक रेट 63 प्रतिशत से अधिक था, जिसमें उसने 19 सीटों में से 12 पर जीत प्राप्त की थी। 
अखिलेश की नज़रें दिल्ली पर
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ‘पी.डी.ए.’ के विस्तार के लिए तैयार हो रहे हैं और उन्होंने दूसरे राज्यों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का फैसला किया है। क्या अखिलेश राष्ट्रीय भूमिका की ओर देख रहे हैं? अखिलेश ने कन्नौज लोकसभा सीट जीतने के लिए करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद से भी इस्तीफा दे दिया। पार्टी नेताओं में आम सहमति थी कि उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन की जीत के बाद उन्हें सपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने के लिए केन्द्रीय राजनीतिक क्षेत्र में जाना चाहिए। 2024 के लोकसभा चुनावों में अखिलेश ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोक दिया। 2019 में 62 से 2024 में 33 सीटों पर भाजपा को झटका लगा, जिससे भाजपा को लोकसभा में अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने से रोक दिया गया। उत्तर प्रदेश में सपा 37 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और राष्ट्रीय स्तर पर तीसरी बड़ी पार्टी बन गई। पार्टी का वोट शेयर भी 2019 में 18.11 प्रतिशत से बढ़ कर 33.38 प्रतिशत हो गया। (आई.पी.ए. सेवा)