कज़र् के जाल में फंस सकता है पंजाब
मुफ्त बिजली और बिजली सब्सिडी पर बढ़ता खर्च
पंजाब में पिछले लम्बे समय से सरकारों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव जीतकर सत्ता हासिल करने के उद्देश्यों को पूरा करने, राज्य में समाज के अलग-अलग वर्गों को मुफ्त बिजली की सुविधाएं या कम मूल्य पर बिजली सब्सिडी की सुविधाएं दी गई हैं। प्रदेश के बड़े वोट बैंक यानि किसानों को 1996 में कांग्रेस की सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम माह में छोटी किसानी को ट्यूबवैलों के लिए मुफ्त बिजली और बड़ी किसानी को 50 रुपये प्रति हार्स पावर के रेट पर बिजली दी थी। 1997 में अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार बनने पर सभी किसानों के लिए ट्यूबवैलों के लिए मुफ्त बिजली की सुविधा दी गई। 2002 में कांग्रेस सरकार आने पर 2003-2006 तक इस सुविधा को बंद कर दिया गया और जल्द ही 2006 में इसको दोबारा लागू कर दिया गया। 2007 में एक बार फिर से अकाली-भाजपा की संयुक्त सरकार बनने पर इस सुविधा को बरकरार रखा गया और साथ ही अन्य वर्गों, जैसे कि दलितों को घरों के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली की सुविधा, उद्योगों के कुछ वर्गों आदि को भी सस्ती बिजली दी गई। 2017 में एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने पर ये सभी सुविधाएं जारी रखी गईं। 2022 में आम आदमी पार्टी की मौजूदा सरकार बनने पर भी यह सुविधा/सब्सिडी जारी ही नहीं रहीं, बल्कि जुलाई 2022 से प्रदेश के सभी उपभोक्ताओं को माह में 300 यूनिट मुफ्त बिजली की सुविधा भी शुरू कर दी गई। आजकल प्रदेश में लगभग 6 किस्मों की बिजली सब्सिडी दी जा रही है, जैसे कि कृषि सैक्टर की सब्सिडी, घरेलू 300 यूनिट प्रति माह सब्सिडी, 7 किलोवाट तक 2.50 रुपये प्रति यूनिट सब्सिडी, छोटे पावर उद्योगों के लिए सब्सिडी, मध्यम पावर उद्योगों के लिए सब्सिडी और बड़े पावर उद्योगों के लिए सब्सिडी, इन सभी सब्सिडियों पर सरकार आजकल तकरीबन 20000-21000 करोड़ रुपये वार्षिक खर्च कर रही है, जोकि सरकार की वार्षिक आय का लगभग 18-19 प्रतिशत बनता है।
चुनावों पर प्रभाव
आम तौर पर कहा जाता है कि यह मुफ्त सुविधा और सब्सिडी राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने और सत्ता प्राप्त करने के लिए देती हैं। अब जब देखते हैं कि यह सब्सिडी शुरू करने वाली कांग्रेस पार्टी 1997 के विधानसभा चुनाव हार गई थी। अगली अकाली-भाजपा सरकार ने मुफ्त बिजली सुविधाओं और बिजली सब्सिडी को अन्य वर्गों तक बढ़ाया लेकिन वह भी 2002 के विधानसभा चुनाव हार गई थी। इसके अलावा कांग्रेस की सरकार ने कम समय के लिए मुफ्त बिजली सुविधा और बिजली सब्सिडी को खत्म किया और जल्द ही पुन: शुरू कर दिया और वह भी 2007 में विधानसभा चुनाव हार गई। 2007 से 2017 की अकाली-भाजपा सरकार ने मुफ्त बिजली सुविधाएं और बिजली सब्सिडी अन्य वर्गों को भी दी लेकिन अकाली-भाजपा भी 2017 के विधानसभा चुनाव हार गये। 2017 की कांग्रेस की सरकार ने बिजली सब्सिडी को वैसे ही जारी रखा और वह भी 2022 के चुनाव हार गई। 2022 में बनी मौजूदा सरकार ने प्रदेश में 300 यूनिट प्रति माह घरेलू बिजली मुफ्त कर दी और अब आए लोकसभा चुनावों के परिणाम सबके सामने हैं। इससे एक बात काफी हद कर स्पष्ट हो जाती है कि मुफ्त बिजली सुविधा और बिजली सब्सिडी का चुनाव जीतने के साथ कोई बहुत सीधा-सीधा संबंध नहीं लगता है।
बिजली सब्सिडी और भूजल
प्रदेश के ज्यादातर ब्लाकों में भूजल का स्तर बहुत तेज़ी से कम होकर खतरनाक स्तर तक नीचे हो गया और हो रहा है। बहुत से लोगों को यह कहते सुना जा सकता है कि प्रदेश बहुत जल्द ही भूजल से वंचित हो सकता है और रेगिस्तान में बदल सकता है। तकरीबन प्रदेश में 1980 से बाद धान की कृषि बहुत बड़े स्तर पर शुरू हो गई थी और आज बहुत बड़ा क्षेत्र धान की कृषि करता है। धान की फसल को बहुत अधिक पानी की ज़रूरत होती है और आजकल नहरी पानी के साथ-साथ 14-15 लाख बिजली आधारित ट्यूबवैलों के साथ पानी की सप्लाई की जा रही है। इस फसली चक्र के साथ भूजल का स्तर बहुत नीचे चला गया है, जिसके कारण किसानों को समय-समय पर अपने ट्यूबवैलों की गहराई बढ़ानी पड़ रही है और मोटरों का बिजली लोड भी बढ़ाना पड़ रहा है, जिससे बिजली की खपत भी बढ़ती है। धान ने न सिर्फ भूजल का ही संकट खड़ा किया है, बल्कि पंजाब के जलवायु को भी गंदला और दूषित किया है। कृषि विशेषज्ञों, आर्थिक विशेषज्ञों और अन्य संबंधित लोगों का एक बड़ा खेमा पिछले काफी लम्बे समय से दुहाई दे रहा है कि प्रदेश में धान की फसल का विकल्प ढूंढा जाए लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिल सकी। बहुत से विशेषज्ञ कृषि के लिए मुफ्त बिजली की सप्लाई को भी भूजल के स्तर को नीचे पहुंचाने के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं, क्योंकि उनके मुताबिक किसान मुफ्त बिजली की सुविधा होने के कारण बिना ज़रूरत से या ज़रूरत से अधिक भूजल का प्रयोग करते हैं। इसलिए यह खेमा बिजली मोटरों के लिए मुफ्त बिजली की सुविधा को बंद करने की वकालत भी कर रहा है।
बिजली सब्सिडी एवं वित्तीय स्थिति
अलग-अलग सरकारों की ओर से शुरू की मुफ्त सुविधाओं तथा सब्सिडियों ने प्रदेश की वित्तीय स्थिति को बहुत ही कमज़ोर तथा डावांडोल बना दिया है। 1996 में शुरू की मुफ्त बिजली की सुविधा तथा बिजली सब्सिडी पर वार्षिक खर्च 900 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2025 तक लगभग 21000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा, जोकि प्रदेश की अपनी वार्षिक आय का 19-20 प्रतिशत हो जाएगा। पंजाब सरकार ने 1996-97 से 2014-15 तक मुफ्त बिजली तथा बिजली सब्सिडी पर 43600 करोड़ रुपये तथा 2020-21 तक, 1,18,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं तथा अनुमान के अनुसार 1996 से 2025 तक लगभग 1,75,000 करोड़ रुपये से अधिक मुफ्त बिजली तथा बिजली सब्सिडी पर खर्च हो जाएंगे। यदि इस खर्च में इसी समय दौरान दी गईं अनावश्यक मुफ्त सुविधाओं तथा सब्सिडियों पर किये खर्च को भी जोड़ लें तो यह राशि बहुत बड़ी बन जाएगी। अब जब हम पंजाब के सिर चढ़े ऋण पर दृष्टिपात करते हैं तो पता चलता है कि मार्च 2024 के अंत में प्रदेश पर 343626.39 करोड़ रुपए का ऋण था, जोकि प्रदेश की कुल घरेलू पैदावार का 43.88 प्रतिशत है। ऐसे ही प्रदेश के, 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार ऋण बढ़ कर मार्च 2025 में 374091.31 करोड़ रुपए हो जाएगा, जो प्रदेश की कुल घरेलू पैदावार का 44.05 प्रतिशत होगा। यदि आगामी कुछ वर्षों में ही ऐसी स्थिति तथा हालत बनी रहती है तो पंजाब ऋण के जंजाल/जाल (स्रद्गड्ढह्ल ह्लह्म्ड्डश्च) बहुत गहरा फंस जाएगा। यदि यह मान लिया जाए कि मुफ्त बिजली की सुविधा तथा बिजली सब्सिडियां न दी होती तथा और मुफ्त सुविधाएं तथा सब्सिडियां को तर्कसंगत ढंग से दिया होता तो प्रदेश के सिर चढ़े 3.74 लाख करोड़ रुपये के ऋण में मुफ्त बिजली, बिजली की अन्य सब्सिडियां तथा अन्य मुफ्त सुविधाएं तथा सब्सिडियों पर खर्च को कम कर दें तो प्रदेश के सिर अब ऋण कम होकर नाममात्र ही होना था। यदि मुफ्त बिजली सुविधा, बिजली सब्सिडियों पर खर्च की गईं भारी राशियां तथा ऋण के ब्याज के रूप में अदायगी की जाती भारी राशि को प्रदेश में निवेश किया होता तो प्रदेश की आय में भारी वृद्धि होना निर्धारित था, इस हिसाब से पंजाब आज ऋण मुक्त भी होता और पंजाब आर्थिक विकास तथा अन्य आर्थिक तथा सामाजिक मापदंडों के मामले में आज भी देश का अग्रणी प्रदेश होता तथा पंजाब अभी भी सोने की चिड़िया होता।
भविष्य की सम्भावनाएं
उपरोक्त विश्लेषण स्पष्ट करता है कि बिजली सब्सिडियां एवं मुफ्त बिजली की सुविधाओं ने प्रदेश को कोई अधिक लाभ नहीं पहुंचाया, अपितु नुक्सान ही किया है। प्रदेश में भूमिगत पानी का स्तर गिरा कर पानी का संकट खड़ा कर दिया है तथा पर्यावरण को भी दूषित किया है। राजनीतिक पार्टियां इसके सहारे चुनाव जीतने में भी ज्यादा सफल नहीं हुईं। मुफ्त बिजली तथा सब्सिडियों ने प्रदेश की वित्तीय स्थिति को बहुत दयनीय बना दिया है तथा अन्य विकास के कार्यों में यह स्थिति अवरोधक बन रही है। यहां यह कहना उचित रहेगा कि यदि प्रदेश में राजनीति कर रहीं राजनीतिक पार्टियां तथा नेता प्रदेश के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के प्रति सुहृदय तथा ईमानदार होतीं तो पंजाब आज ऋण मुक्त होने के साथ-साथ और बुरी आदतों जैसे युवाओं में नशों का रूझान, बेरोज़गारी, पलायन का रूझान, कृषि संकट, ग्रामीण क्षेत्रों का संकट आदि से भी बचा होना था। परन्तु नेताओं तथा पार्टियों ने हर हाल में सत्ता हासिल करने के उद्देश्यों को प्राथमिकता देकर प्रदेश के हितों को दर-किनार करके रखा है। यह घटनाक्रम बिना किसी रोक-टोक के अभी भी लगातार जारी है। इसलिए शीघ्र ही बिजली सब्सिडियां, मुफ्त बिजली सुविधाएं तथा अन्य मुफ्त सुविधाएं तथा सब्सिडियां को सभी संबंधित पक्षों की ओर से मिल बैठ कर तुरंत बंद करने या तर्क-संगत बनाना चाहिए ताकि प्रदेश को और अवसान तथा नुक्सान से बचाया जा सके। यदि ऐसा न किया गया तो प्रदेश में वित्तीय आपात्काल जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
-पूर्व डीन तथा प्रोफैसर
पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला।
मो. 98154-27127