सतत् संघर्ष की भरपूर गाथा है श्री कृष्ण का अवतार
जन्माष्टमी पर विशेष
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म होने के कारण इसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर काफी संदेह हैं। कुछ लोग कहते हैं कि जन्माष्टमी 25 अगस्त को है, कुछ लोगों के मुताबिक 26 अगस्त और अगर मथुरा वृंदावन को देखें तो यहां कुछ लोग 27 अगस्त को जन्माष्टमी होने की बात कर रहे हैं। दरअसल श्री कृष्ण जन्माष्टमी में रोहिणी नक्षत्र का बहुत महत्व होता है। पंचांग के मुताबिक रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत 26 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट से होगी और इसकी समाप्ति 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर होगी। इस लिहाज से जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनायी जायेगी। भगवान कृष्ण की यह 5251वीं जयंती है। इतने साल पहले उनका जन्म मथुरा के अत्याचारी राजा कंस की जेल में मां देवकी के कोख से आधी रात को हुआ था। जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, वह दिन भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी और रोहिणी नक्षत्र था।
दुनिया में बहुत से महापुरुष हुए हैं, जिसने समय के हिसाब से उनकी शिक्षाएं और आदर्श अप्रासंगिक हो गये लेकिन श्री कृष्ण इसलिए भी इस 21वीं शताब्दी में दुनिया में सबसे ज्यादा आध्यात्मिक और बेहद सांसारिक लोगों को भी आकर्षित करते हैं; क्योंकि न सिर्फ उनकी शिक्षाएं बल्कि उनका सम्पूर्ण दर्शन और उनकी लीलाएं आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। इसलिए भगवान श्री कृष्ण वर्तमान दुनिया के जीवंत भगवान हैं। अगर धार्मिक दृष्टि से देखें तो कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व इसलिए बहुत है कि भगवान कृष्ण प्रेम और करुणा के देवता हैं, जिसकी आज भी पूरी दुनिया को बहुत ज़रूरत है।
श्री कृष्ण को योगेश्वर भी कहा जाता है और दुनिया जानती है कि आज के इस बेहद तनाव भरे जीवन में योग कितना महत्वपूर्ण है। श्री कृष्ण के जीवन में हमेशा रिश्तों के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने के दृष्टांत मिलते हैं। आज भी रिश्तों से रिक्त होती दुनिया में ईमानदार, भावनात्मक संबंधों की सर्वाधिक ज़रूरत है। श्री कृष्ण बड़ी से बड़ी परेशानी में भी हिम्मत नहीं हारते, मुस्कुराते रहते हैं और हमेशा कर्म करते रहने की सीख देते हैं। आज भी दुनिया के सारे मानसिक गुरु इन्हीं मूल्यों को जीवन की सबसे बड़ी कसौटी मानते हैं।
आज पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक संस्थाएं स्त्रियों को महत्व देने की बात करती हैं। श्री कृष्ण ने पांच हज़ार साल पहले स्त्रियों को वह मान, सम्मान और बराबरी दी थी, जिसकी तब कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज ज्यादातर आध्यात्मिक गुरु धर्म को एक कर्त्तव्य के रूप में पालन करने की बात कहते हैं, मगर भगवान कृष्ण तो यह बात पांच हज़ार साल पहले ही कह गये हैं, इसलिए भारत के कण कण में भगवान कृष्ण के अलग-अलग नामों, रूपों के अनुयायी मौजूद हैं। भगवान कृष्ण को विष्णु का पूर्ण अवतार भी माना जाता है। इसलिए श्री कृष्ण की पूजा हिंदू धर्म की एक प्रमुख परम्परा के साथ वैष्णव मत का अभिन्न हिस्सा है। भगवान कृष्ण ने ऐसा जीवन जीया, जिसकी किसी और से तुलना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने जीवन के हर घड़ी को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके प्रस्तुत किए आदर्श आज भी पूर्णत: प्रासंगिक हैं। यह अकारण नहीं है कि आज पश्चिमी देशों में सबसे ज्यादा लोग कृष्ण भक्ति पर फिदा हैं। सबसे ज्यादा भगवान कृष्ण की बातें होती हैं, क्योंकि महाभारत के युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में उन्होंने अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वह आजतक का दुनिया का श्रेष्ठतम ज्ञान है। धरती में इतने बदलाव आये, दुनिया में इतने ज्यादा उथल पुथल हुए, लेकिन कृष्ण का गीता ज्ञान जरा भी फीका नहीं पड़ा, जरा भी अप्रासंगिक नहीं हुआ।
आज विज्ञान से लेकर समस्त सांसारिक दर्शन कहते हैं, इन्सान का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की एक परम्परा है। अगर भगवान कृष्ण के समूचे जीवन को एक नज़र में देखें तो कारागार में जन्मे श्री कृष्ण से लेकर बहेलिये की भूलवश उसके तीर का शिकार होने तक भगवान कृष्ण के जीवन में हर पल एक सचेत और हिम्मत से भरपूर संघर्ष की ही गाथा है। श्री कृष्ण के पैदा होते ही उन्हें मूसलाधार बारिश और भयानक रूप से उमड़ी यमुना को पार करके उनके पिता वासुदेव ने गोकुल पहुंचाया था। जीवन के हर पल चुनौतियों से घिरे रहने के बाद भी श्री कृष्ण हमेशा हंसते मुस्कुराते रहते हैं। वह हमेशा जीवन को खुशी-खुशी जीने की सीख देते हैं। जो बात 18वीं, 19वीं शताब्दी में आकर साम्यवादी दार्शनिकों ने कही कि दुनिया से भागो नहीं बल्कि उससे मुकाबला करो और परिस्थितियों को अपने पक्ष में बदल डालो, वही बात कृष्ण पांच हज़ार साल पहले कह गये हैं।
श्री कृष्ण बहुत निष्पृह भाव से कहते हैं, कर्म करना तुम्हारा कर्त्तव्य है। इसलिए तुम बिना फल की चिंता किए अपना कर्म करने का धर्म निभाओ, जीवन की यही सबसे बड़ी धार्मिकता है, यही सबसे बड़ी ईमानदारी है। कृष्ण हमेशा जम कर काम करने और जम कर मस्ती करने के भी पक्ष में रहते थे। वह जहां श्रम करने के लिए जानवरों को चराने जैसा कठिन श्रम करते थे, वहीं मस्ती करने के लिए बांसुरी बजाने, गोपियों के साथ नृत्य करने से लेकर रास लीला तक में पीछे नहीं हटते थे। स्वस्थ रहने और अच्छा खाना पीना भी उनके जीवन की बड़ी सीख है। वो दही और मक्खन के दीवाने थे और हम सब जानते हैं कि दही और मक्खन हमारे स्वस्थ रहने में अहम भूमिका निभाता है।
श्री कृष्ण शिक्षा को सर्वाधिक महत्व देते हैं, वह सभी वेदों के ज्ञाता हैं लेकिन शिक्षा से ज्यादा वह विभिन्न रचनात्मक कलाओं को महत्व देते हैं। श्री कृष्ण अब तक धरती के अकेले ऐसे पुरुष हैं जो 64 कलाओं में परिपूर्ण थे। श्री कृष्ण का व्यक्तित्व इसलिए भी इतना रहस्यमयी, आश्चर्य चकित करने वाला और योग्यताओं से भरपूर है, क्योंकि वो हर तरह की कला में माहिर थे। रचनात्मकता उनके रोम-रोम में कूट कूट कर भरी थी। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा रचनात्मक गतिविधियों को महत्व दिया। श्री कृष्ण धरती के सबसे बड़े ज्ञानी और सबसे बड़े विमोही थे लेकिन उन्होंने अपने जीवन के पल पल में रिश्तों को कुछ इस तरह जिया कि जैसे उनसे ज्यादा कोई रिश्तों में रचा बसा न हो। वह अर्जुन से युवास्था में मिलते हैं और उम्र भर के लिए उनके सखा, मेंटर और सहयोगी बन जाते हैं।
नारी समाज के प्रति कृष्ण के मन में इतना सम्मान था कि जब दुष्ट राक्षस नरकासुर को मारकर उन्होंने 16,100 महिलाओं को उनके बहंदीगृह से मुक्त कराया। उन्हें समाज में इज्ज्ज़त और सम्मान दिलवाया कृष्ण महज कर्मकांडों के देवता नहीं बल्कि आज भी वास्तविक जीवन के आदर्श पुरुष हैं।
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