इस बार मोदी सरकार पर दिख रहा है राहुल का प्रभाव
मोदी के पिछले दस साल के कार्यकाल को देखकर कहा जा सकता है कि वह अपने निर्णय बहुत सोच समझकर लेते हैं और उन्हें अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है। किसी दबाव में आकर अपने फैसले नहीं बदलते हैं और अपने फैसले से पीछे नहीं हटते हैं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने कृषि कानून वापिस ले लिए थे, इसके अलावा कोई बड़ा फैसला वापिस नहीं लिया था, सिर्फ अपने फैसलों में कुछ बदलाव किए थे। इस सरकार के गठन के बाद मोदी सरकार कुछ बदली हुई दिखाई दे रही है। मोदी सरकार ने विपक्ष और अपने सहयोगी दलों के दबाव के बाद वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन का विधेयक जेपीसी को भेज दिया है। इसके अलावा सरकार ने लेटरल एंट्री के लिए यूपीएससी को 43 अफसरों की भर्ती के लिए कहा था जिसका यूपीएससी ने विज्ञापन भी दे दिया था, लेकिन अचानक सरकार पीछे हट गई है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करने की बात कही थी, लेकिन सरकार को कोई निर्देश नहीं दिया था। देखा जाये तो वो सिर्फ अदालत की एक टिप्पणी थी, लेकिन सरकार ने कैबिनेट की बैठक करके घोषणा कर दी कि उसका एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने का कोई इरादा नहीं है ।
अपने पिछले कार्यकाल में सरकार पुरानी पेंशन योजना लाने को कई बार नकार चुकी थी और कई बार दोहराया कि नई पेंशन योजना ही सही है, इसमें कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है। सरकार ने अपने गठन के सौ दिन के अंदर यूपीएस लागू करने की घोषणा कर दी है जिसमें अंतिम वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन देने की गारंटी दी गई है। इसके अलावा इस योजना में पारिवारिक पेंशन देने का भी वादा किया गया है। विपक्षी दल और विशेष रूप से कांग्रेस यह आरोप लगा रही है कि मोदी सरकार राहुल गांधी से डर कर फैसले ले रही है। लेटरल एंट्री के फैसले को वापिस लेने को विशेष रूप से राहुल गांधी के दबाव के रूप में देखा जा रहा है।
मोदी सरकार को बने अभी सौ दिन भी नहीं हुए हैं और उस पर कई फैसलों को वापिस लेने का आरोप लग चुका है और विपक्ष इसे यू-टर्न सरकार कह रहा है। सवाल उठता है कि क्या सच में यह सरकार राहुल गांधी के दबाव में आ गई है और उनसे डर कर फैसले ले रही है। एक बात तो हमें माननी होगी कि इस बार सरकार राहुल गांधी की अनदेखी करने को तैयार नहीं है। वह जिस तरह से जाति का कार्ड खेल रहे हैं, उससे सरकार चौकन्नी हो गई है। लेटरल एंट्री के फैसले को वापिस लेने के पीछे राहुल गांधी का दबाव दिखाई देता है लेकिन वह वैसा नहीं है जैसा कि विपक्ष शोर मचा रहा है। इस मामले पर बड़ा दबाव तो भाजपा के सहयोगी दलों का ही था। एलजेपी नेता चिराग पासवान इस फैसले के खिलाफ खुलकर आ गए थे। दूसरी तरफ भाजपा के ही दलित-आदिवासी और पिछड़े समुदाय से आने वाले सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर यह प्रार्थना की थी कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
वास्तव में 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए नुकसान से भाजपा सतर्क हो गई है। भाजपा नहीं चाहती कि विपक्ष को आरक्षण खत्म करने का विमर्श चलाने का मौका दोबारा मिल जाए क्योंकि उसे अहसास है कि पिछले चुनाव में विपक्ष ने इस विमर्श से उसे नुकसान पहुंचाया है। भाजपा की गलती यह थी कि पहले की गई लेटरल एंट्री में कोई विज्ञापन जारी नहीं किए गए थे और यूपीएससी के माध्यम से कोई भर्ती नहीं की गई थी। लेटरल एंट्री आज़ादी के बाद से ही की जा रही है, नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह की सरकार ने इस तरीके से विभिन्न क्षेत्रों से विशेषज्ञों को सरकार में लाकर उंचे पद दिए हैं और मोदी सरकार ने भी ऐसा किया है। विज्ञापन देकर कभी भी लेटरल एंट्री के माध्यम से इस पैमाने पर किसी सरकार ने भर्ती नहीं की है ।
मोदी सरकार पारदर्शिता के साथ लेटरल एंट्री में भर्ती करना चाह रही थी। इन भर्तियों में आरक्षण का कोई ध्यान नहीं रखा गया था, इसलिए सरकार को अहसास हो गया कि इससे आरक्षित वर्ग नाराज़ हो सकता है। वास्तव में सरकार ने विपक्ष से मुद्दा छीनने के लिए अपने फैसले को वापिस लिया है। सरकार समझ चुकी है कि राहुल गांधी आरक्षण को मुद्दा बनाना चाहते हैं, इसलिए सरकार ने बात बढ़ने से पहले ही खत्म कर दी। अब जो लेटरल एंट्री की जाएगी, इसमें आरक्षण का भी प्रावधान करने की बात कही गई है ।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में जब क्रीमी लेयर लागू करने के बारे में अपनी टिप्पणी दी थी तो दलित संगठनों ने इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया प्रदर्शित कर दी थी और 21 अगस्त को इसके खिलाफ भारत बंद की घोषणा भी कर दी गई थी। सरकार नहीं चाहती थी कि दलित संगठन अपने विरोध प्रदर्शन में उसको घसीटे, इसलिए सरकार ने सामने आकर यह घोषणा कर दी कि दलित आरक्षण में उसका क्रीमी लेयर की नीति लाने का कोई इरादा नहीं है। केंद्रीय कर्मचारियों के लिए एनपीएस के साथ यूपीएस का भी विकल्प सरकार ने दिया है। इसे लेकर भी कांग्रेस कह रही है कि मोदी सरकार यह योजना राहुल गांधी के दबाव में लाई है क्योंकि उनके नेतृत्व में कांग्रेस कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रही थी।
देखा जाए तो ये पूरी तरह सच नहीं है कि यह सरकार राहुल गांधी के दबाव में आ गई है, लेकिन पूरी तरह से झूठ भी नहीं है। वास्तव में राहुल गांधी ऐसी राजनीति कर रहे हैं जिससे भाजपा पर दबाव दिखाई दे रहा है। पिछले दो कार्यकाल में मोदी सरकार ने राहुल गांधी की पूरी तरह से अनदेखी की है और उसका नुकसान लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा है। भाजपा समझ चुकी है कि राहुल गांधी उसके खिलाफ मुद्दे बना रहे हैं। इसलिए भाजपा की कोशिश है कि वह मुद्दों को बड़ा बनने से पहले ही रोक दे। (युवराज)