देश में ही नहीं, विदेश में भी है हिन्दी का अहम स्थान 

हिन्दी दिवस पर विशेष

भारत में हुई पिछली जनगणना के मुताबिक 52.83 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। इस तरह भारत की कुल आबादी में करीब 43.63 प्रतिशत आबादी हिन्दी वाली है। लेकिन यह हिन्दी के ताकत का महज एक आंकड़ा है। हिन्दी की असली ताकत इस बात पर है कि हिंदुस्तान के 1 अरब 40 करोड़ लोगों में से शायद ही 1-2 प्रतिशत लोग ऐसे होंगे, जिनको हिन्दी समझने या टूटी फूटी बोल पाने में कोई दिक्कत होती हो, वर्ना पूरे देश में लोग हिन्दी समझते हैं। सच तो यह है कि सिर्फ  भारत ही नहीं, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, अ़फगानिस्तान और श्रीलंका या दूसरे शब्दों में समूचे उप-महाद्वीप में आप हिंदी के ज़रिये लोगों को अपनी बात समझा सकते हैं और उनसे संवाद कर सकते हैं। देश का कोई कितना ही सुदूर आंचलिक क्षेत्र क्यों न हो, आप हिन्दी के ज़रिये वहां के लोगों से सम्पर्क कर सकते हैं। इस तरह देखें तो संख्या के हिसाब से अंग्रेज़ी के बाद हिन्दी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सम्पर्क भाषा है।
हालांकि सत्ता और नौकरशाही में अंग्रेज़ी का वर्चस्व होने के कारण कारोबार और कॅरियर में भी हिन्दी भले बहुत महत्वपूर्ण न रही हो, लेकिन जहां तक पूरे देश को जोड़ने और पूरे देश से जुड़ने की बात है तो हिन्दी से ज्यादा आसान, सुलभ और चुंबकीय भाषा समूचे उप-महाद्वीप में कोई दूसरी भाषा नहीं है। गांधी जी हमेशा कहा करते थे कि आज़ादी के बाद भारत की सम्पर्क भाषा हिन्दी या हिंदुस्तानी ही होगी। हालांकि वह तो हिंदुस्तानी को भारत की अधिकृत राष्ट्र भाषा भी बनाना चाहते थे, मगर इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह अकेले गांधी जी की इच्छा का सवाल नहीं था। भारत में अंग्रेज़ों के विरुद्ध आज़ादी की लड़ाई के बड़े पैमाने पर शुरुआत 1857 में हो गयी थी और लगभग तभी से अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ाई में हिस्सेदार हर व्यक्ति को इस बात का एहसास था कि भारत में अगर आज़ादी के बाद कोई एक भाषा पूरे देश को आपस में जोड़ सकती है, तो वह हिन्दी ही होगी, क्योंकि हिन्दी की बदौलत ही 1857 और उसके बाद लगातार देश को एकजुट किया गया था। इस तरह देखें तो हिन्दी किसी की दया या मज़र्ी की वजह से महत्वपूर्ण नहीं थी बल्कि इस उप-महाद्वीप में अपने सहज प्रसार की वजह से हिन्दी हमेशा से सबसे महत्वपूर्ण सम्पर्क भाषा रही है।
हिन्दी ने ही आज़ादी की लड़ाई के समय देश को एक सूत्र में पिरोया था और आज भी देश को एक सूत्र में पिरो रही है। क्या आप समझते हैं, इस देश में कोई ऐसा प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति हो सकता है, जिसे हिन्दी बिल्कुल बोलनी न आती हो। बिल्कुल तो छोड़िये, जिस राजनेता को हिन्दी के ज़रिये आम जनता से सम्पर्क साध पाने में विश्वास न हो, उस राजनेता के लिए भारत में प्रधानमंत्री बनना असंभव है, हिन्दी की यह ताकत है। स्व. प्रणव मुखर्जी अपनी कई किताबों में और कई इंटरव्यूज़ में इस बात का शब्दश: खुलासा कर चुके हैं कि वह इसलिए भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि उनका हिन्दी में हाथ तंग था। एच.डी. देवगौड़ा जब प्रधानमंत्री बनें तो उनको हिन्दी में धाराप्रवाह बोल पाने में थोड़ी समस्या थी। इसलिए सबसे पहले उन्होंने पहली प्राथमिकता के तौर पर अपनी हिन्दी को दुरुस्त किया और कुछ महीनों के बाद ही वह प्रधानमंत्री के रूप में हिन्दी धाराप्रवाह बोलने लगे। सोनिया गांधी तब तक कांग्रेस की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण नहीं हुई थीं, जब तक उन्होंने देख कर और पढ़ कर ही सही, लेकिन हिन्दी में सहजता से बोलने न लगी हों। आज वह हिन्दी में बिना कुछ देखे पूरे आत्मविश्वास से बोलती हैं। इसलिए जो लोग अपनी निराशा में यह कहने की कोशिश में रहते हैं कि हिन्दी भाषी होने के कारण उनकी कोई कीमत नहीं है, तो वे न सिर्फ गलत कहते हैं बल्कि एक गैर-ज़रूरी हीनभावना का प्रदर्शन करते हैं।
हिन्दी देश की हर मामले में महत्वपूर्ण भाषा है। भले देश की सरकारों के महत्वपूर्ण कामकाज हिन्दी में न होते हों, भले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में आज भी बहसें ज्यादातर अंग्रेज़ी में होती हों, लेकिन हम यह जानते हैं कि इस देश के 98 फीसदी लोग ज़रूरत पड़ने पर हिन्दी बोल लेते हैं, समझ लेता है और जब वह सामान्य रूप से जीवन जी रहा होता है तो हिंदी के बहुत नज़दीक होता है। हिन्दी सिर्फ भारत में ही महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु दुनिया के 132 देशों में कॉलेजों, विश्वविद्यालयों या विशेष संस्थानों में हिन्दी पढ़ायी जाती है। 
दुनिया के करीब 200 देशों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत से व्यापारिक, आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ता है। ऐसे में इन सब देशों की सरकारों के पास ऐसे हिन्दी के जानकार होने ज़रूरी हैं, जो हिंदुस्तान के समाज की सहज गतिविधियों और दुनिया में उसकी हलचल पर नज़र रख सकें। दुनिया की शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में कम से कम तीन दर्जन विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां न सिर्फ हिन्दी पढ़ायी जाती है बल्कि इन विश्वविद्यालयों में हिन्दी के बाकायदा विभाग भी हैं। दुनिया के एक दर्जन से ज्यादा देशों में हिन्दी न सिर्फ पहली या दूसरी भाषा है बल्कि इन देशों में भी हिन्दी की खूब धूमधाम है। मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद टोबागो, बांग्लादेश, नेपाल ये ऐसे देश हैं जहां न सिर्फ हिन्दी बोली या समझी जाती है, बल्कि हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि और लेखक भी हुए हैं और वर्तमान में भी हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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