मंडीकरण की दुर्दशा

सरकारी एजेंसियों द्वारा एक अक्तूबर से धान की खरीद की घोषणा की गई थी। इस बार प्रदेश में लगभग 32 लाख एकड़ रकबे में धान की बुवाई हुई है। सरकार की ओर से लगभग 185 लाख मीट्रिक टन धान खरीदे जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, परन्तु पिछले मास से इस मुहाज़ पर लगातार जो चर्चा चलती रही है, उससे इस बार इस खरीद में बड़े अवरोध पैदा होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव प्रदेश के किसानों पर पड़ेगा। नि:संदेह पैदा हुए इन हालात के लिए पंजाब सरकार की ढीली-ढाली नीति ही ज़िम्मेदार कही जा सकती है। सबसे पहली बात, इसके सम्बद्ध मंत्रियों तक ने संबंधित केन्द्रीय मंत्रियों के साथ पूरा सम्पर्क नहीं किया। मुख्यमंत्री साहिब के पास तो इस बात के लिए समय ही नहीं था और न ही उन्होंने इसके प्रति कोई बड़ी उत्सुकता ही दिखाई। आज हालत यह है कि पहले ही दिन मंडियों में धान की खरीद नहीं हुई। इसका मुख्य कारण प्रदेश के आढ़तियों की ओर से  अनिश्चित काल के लिए हड़ताल किये जाने की घोषणा करना भी था। उनके साथ ही गल्ला मज़दूर भी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर उतर आये हैं। आढ़ती पुराने प्रबन्ध के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत कमीशन की मांग करते रहे हैं, जबकि नई नीति के तहत अब प्रति क्ंिवटल उन्हें 45 रुपए ही मिल रहे हैं, जो राशि पहले वाली कमशीन से कहीं कम है। 
इससे पहले शैलर मालिक लगातार यह आवाज़ उठाते रहे हैं कि उनके गोदाम पहले से पड़े चावल के भण्डार से भरे पड़े हैं। यदि इस भण्डार को उठाया नहीं जाता तो वे नई ़फसल को किस स्थान पर रखेंगे? उनकी यह भी शिकायत है कि लम्बी अवधि तक चावल गोदामों में पड़े रहने के कारण उनकी गुणवत्ता भी कम हो जाती है तथा क्षति भी बढ़ जाती है, जिसकी ज़िम्मेदारी उन पर नहीं पड़नी चाहिए। इसी कारण शैलर मालिकों ने नया धान लेकर उसकी मिलिंग न करने का फैसला किया है। गल्ला मज़दूर भी मज़दूरी की दर हरियाणा की तज़र् पर करने की मांग कर रहे हैं। यह स्पष्ट होता दिखाई दे रहा है कि यदि हालात ऐसे ही बने रहते हैं तो धान की नई फसल के मंडीकरण में बड़ी बाधा आ जाएगी। पंजाब में लगभग 45000 आढ़ती हैं। वे सरकार से 192 करोड़ की पहले से रुकी हुई राशि की मांग भी कर रहे हैं। उनका यह भी दावा है कि यदि पिछली बार खरीद किया गया भण्डार समय पर नहीं उठाया गया तो नई फसल गोदामों में रखने के लिए स्थान भी नहीं बनेगा।
चाहिए तो यह था कि पंजाब सरकार समय पर केन्द्र सरकार के साथ सम्पर्क बना कर इस बात के लिए यत्न करती कि पहले से पड़े गेहूं और चावलों को समय पर स्टोरों तथा गोदामों से उठा लिया जाता ताकि आगामी ़फसल को सम्भालने के लिए जगह मिल सकती। अब जब नई ़फसल सिर पर है तो इसकी सार-सम्भाल संबंधी समूचा प्रबन्ध ही डावांडोल हो गया प्रतीत होता है। ऐसे पैदा हुए हालात प्रदेश के लिए जहां भारी हानिकारक साबित हो सकते हैं,  वहीं एक नई समस्या को भी जन्म दे सकते हैं। अब देखना यह होगा कि, क्या आगामी दिनों में सरकार अपनी इस बड़ी ज़िम्मेदारी को उचित ढंग से निभा सकने के समर्थ हो सकेगी? यदि ऐसा न हो सका तो इससे पैदा हुए हालात की ज़िम्मेदारी सरकार की ही होगी।

 —बरजिन्दर सिंह हमदर्द