कुदरत को समझें, नहीं तो विनाश होगा

आप सुबह सैर के लिए निकलें तो थोड़ी-थोड़ी दूर पर कूड़ा इकट्ठा कर उसको आग लगाने का दृश्य नज़र आ जाएगा। उसका धुआं स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है। यह आप किसी भी डाक्टर से पूछ सकते हैं। यह दृश्य इतना आम है कि अमृतसर से लेकर दिल्ली तक कहीं भी देखा जा सकता है। पराली जलाने की घटनाएं तो इतनी अधिक हैं कि न्यायपालिका को भी इस पर सख्त बयान जारी करना पड़ा। यदि आप नहर की पटरी पर पैदल चलें तो नहर में साफ पानी की कल्पना तो दूर आप उसमें कूड़े के ढेर, प्लास्टिक के लिफाफे, पूजा की सामग्री, न जाने क्या-क्या देखेंगे, साफ पानी के सिवाय।
उपभोक्तावादी और बाज़ारवादी सोच ने आदमी को कुदरती जीवन, कुदरत के सन्देश, सभी कुछ से इतना दूर कर दिया है कि आदमी अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने से संकोच नहीं करता। यरूशलम पोस्ट के माध्यम से नासा की एक चेतावनी के बारे में पता चला है कि अगले 600 वर्षों में दुनिया खत्म होने वाली है। यह चेतावनी बहुत गम्भीर है। कुछ लोग बेशक इस दावे को भ्रामक बता रहे हैं लेकिन इस चेतावनी की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती क्योंकि जिस गति से संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। इस पृथ्वी की उम्र अप्रभावित नहीं रह सकती। इसका आधार जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के सतत बिगड़ते हालात में देखा जा सकता है। सभी वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, पर्यावरण संरक्षक, पत्रकार इस विषय पर बार-बार अपने ढंग से चेतावनी पेश करते रहे हैं। स्टीफन हॉकिंग भी चेतावनी के शब्दों में कह चुके हैं कि पृथ्वी पर आने वाला समय काफी चुनौतीपूर्ण होगा। जिस तरह का हम व्यवहार कर रहे हैं उसके कभी भी गम्भीर परिणाम सामने आ सकते हैं। इस वर्ष के आरम्भ में ही हमें बढ़ती गर्मी, जंगल की आग जैसी मुसीबतों ने चेतावनी पेश की थी। अत्यधिक गर्मी ने पिछले वर्षों के कई रिकार्ड तोड़ दिए थे। मानसून के दौरान भारी वर्षा, और अनेक हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। समाचारों में पेरिस और नाइजीरिया की बाढ़ के अतिरिक्त अमरीका में मिल्टन और भारत में ‘दाना’ नामक तूफानों पर विशेष टिप्पणियां होती रहीं। पहले लोग मौसम विभाग की चेतावनी को लापरवाही से लेते थे, परन्तु अब विनाशकारी परिणाम हमारे सामने हैं। अक्तूबर के महीने में पहले गर्मी नहीं होती थी परन्तु इस बार अक्तूबर माह में बिजली गुल हो जाने पर हाहाकार मच रहा था, क्योंकि गर्मी बहुत  अधिक थी। मौसम पहले जैसे नहीं हैं। सर्दियां अधिक सर्द होने का अनुमान है। पहले भी जलवायु परिवर्तन हुए हैं, परन्तु उन परिवर्तनों को वैज्ञानिक एक स्वाभाविक परिवर्तन क्रम के रूप में देखते रहे हैं, परन्तु जो अब बदलाव आ रहे हैं इसे मनुष्यता की देन ही समझा जा रहा है। नहरों में कूड़ा मनुष्य ही फेंक रहे हैं, पराली जलाने का काम भी मनुष्य ही कर रहे हैं। अपना घर साफ करने के लिए आस-पास कूड़ा फैलाना बुद्धिमता नहीं है। अस्पताल जहां मरीज रोगमुक्त होने के लिए आते हैं, वहां भी साफ-सफाई का अभाव देख कर दु:ख होता है। मनुष्य के संकीर्ण व्यवहार के कारण पृथ्वी का व्यवहार भी बदल रहा है।
अब यही वक्त है जब हमें वैज्ञानिकों की चेतावनी को काफी गम्भीरता से लेना होगा, नहीं तो भारी विनाश हमारे दरवाज़े के बाहर ही होगा। यही सम्भलने का वक्त है। अभी न सम्भले तो फिर सम्भलने का अवसर नहीं मिलेगा।

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