भयावह दौर में
रूस एवं यूक्रेन युद्ध भयावह एवं विनाशकारी दौर में पहुंच गया है। लगभग 33 महीने पहले रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। उस समय यह उम्मीद की जाती थी कि यूक्रेन इस हमले को बर्दाश्त नहीं कर सकेगा एवं शीघ्र ही अपने हथियार डाल देगा परन्तु जिस तरह दृढ़ निश्चय से यूक्रेन ने इस महाशक्ति का मुकाबला किया है, वह बेहद हैरान कर देने वाला है। विगत समय में रूस ने यूक्रेन के साथ लगते दुनेतसक, लुहांसक, ज़िपसोरीजिया एवं खेरसन आदि जिन प्रदेशों के इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया था, वहां अब लगातार यूक्रेन के सैनिकों ने अपना दबाव बनाया हुआ है। इस युद्ध के दौरान अब तक रूस ने यूक्रेन के 62000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है जोकि यूक्रेन के कुल क्षेत्र का 27 प्रतिशत बनता है। फिर भी यूक्रेन युद्ध में डटा हुआ है।
दिसम्बर, 1991 में सोवियत यूनियन के टूटने से दर्जनों देश रूस से अलग हो गए थे, जिनमें उसका नज़दीकी पड़ोसी देश यूक्रेन भी शामिल था, परन्तु रूस शक्ति एवं क्षेत्रफल के पक्ष से आज भी विश्व के बड़े देशों में एक है। यूक्रेन को यह शिकायत रही है कि पुतिन ने उसके समुद्र के साथ लगते महत्त्वपूर्ण क्षेत्र क्रीमिया पर 2014 में कब्ज़ा कर लिया था। इसके साथ ही यूक्रेन का आरोप है कि रूस के साथ लगते कई सीमांत क्षेत्रों में जो ब़गावत उठती रही है, इन ब़ािगयों की रूस हमेशा सहायता करता रहा है। ऐसे हालात में यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की अमरीका एवं पश्चिम यूरोप में ज्यादातर देशों की सैनिक संधि जिसे ‘नाटो’ कहा जाता है, का सदस्य बनने के इच्छुक रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह बात बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं थी, क्योंकि वह अपने निकटवर्ती पड़ोसी देश में ‘नाटो’ के सैनिकों की उपस्थिति नहीं चाहते थे। यूक्रेन इस सैनिक संधि में शामिल होकर ही अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहता था। चाहे अभी तक वह इस सैनिक संधि में शामिल तो नहीं हो सका परन्तु रूस के इस हमले के दौरान अमरीका सहित ज्यादातर ‘नाटो’ देशों ने उसकी हर तरह से सहायता ज़रूर की है। अब तक ये देश अरबों-खरबों के हथियार एवं आर्थिक सहायता दे चुके हैं। इतने व्यापक स्तर पर सहायता मिलने के कारण ही यूक्रेन इस हमले को सहन करने योग्य हो सका है। चाहे उसका भारी मानवीय और आर्थिक नुक्सान हो चुका है। आज भी उस पर रूस के हमले लगातार जारी हैं। यूक्रेन द्वारा भी जवाबी हमले हो रहे हैं।
यूक्रेन के बड़े भाग का मूलभूत ढांचा पूरी तरह तबाह हो चुका है, परन्तु राष्ट्रपति जेलेंस्की को विश्व के ज्यादातर देशों द्वारा अभी भी लगातार सहायता दी जा रही है। इस दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों के मध्य कड़ी जोड़ने का यत्न ज़रूर किया, क्योंकि भारत के दोनों देशों के साथ हमेशा अच्छे संबंध बने रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस युद्ध के लम्बे समय दौरान इन दोनों देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। भारत ने यूक्रेन को भारी मात्रा में मानवीय उपयोग में आने वाली सामग्री भी भेजी थी। अब तक भी विभिन्न स्तरों पर कई देशों की ओर से युद्ध रुकवाने के लिए यत्न किए जा रहे हैं। विगत दिवस ब्राज़ील में हुई जी-20 (20 बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं वाले देशों का समूह) सम्मेलन में मध्य पूर्व के साथ-साथ रूस एवं यूक्रेन में युद्ध खत्म करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते की मांग की गई थी। इसी दौरान अब अमरीका में भी नये राष्ट्रपति के हुये चुनाव से एक बार फिर यह उम्मीद बंधी है कि नये चुने गये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस बेहद गम्भीर मामले को सुलझाने में सहायक हो सकेंगे, परन्तु उनके पद सम्भालने से पहले ही यह युद्ध एक भयावह दौर में दाखिल हो चुका है।
पहले अमरीका ने यूक्रेन को अपनी लम्बी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें रूस के विरुद्ध प्रयोग करने की इजाज़त दी। उसके बाद ब्रिटेन ने भी अपनी ़खतरनाक मिसाइलें रूस के विरुद्ध प्रयोग करने की उसे इजाज़त दे दी है। उधर पुतिन ने भी अपने परमाणु हथियार युद्ध में प्रयोग करने के लिए उसे हरी झंडी दे दी है। इसके बाद अमरीका ने यूक्रेन की राजधानी कीव में अपने दूतावास को बंद कर दिया है। इटली, स्पेन एवं यूनान ने भी अपने दूतावास बंद करने के लिए कह दिया है। इस तरह यह युद्ध ऐसे भयावह दौर में शामिल हो गया है, जिसे समूचे अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे द्वारा अपनी पूरी शक्ति के साथ यदि न रोका गया तो विश्व को एक बेहद विनाशकारी मंज़र से गुज़रना पड़ सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द