चुनाव प्रभाव

एक बार फिर विगत कई महीनों से चल रही चुनाव गतिविधि मतदान होने से खत्म हो गई है। महाराष्ट्र एवं झारखंड राज्यों के अतिरिक्त कुछ राज्यों की विधानसभाओं की सीटें जो विभिन्न कारणों के कारण रिक्त हुई थीं, पर भी उप-चुनाव हुए हैं। इसलिए इन चुनावों का दायरा काफी विशाल था, परन्तु सन्तोषजनक बात यह भी कही जा सकती है कि विभिन्न पार्टियों की ओर से बेहद सख्त एवं कई बार कड़वा प्रचार करने के बावजूद भी इन चुनावों में कोई बड़ी गड़बड़ या आपसी झगड़ों के समाचार नहीं मिले। पंजाब में भी 4 विधानसभा क्षेत्रों में इस लिए उप-चुनाव करवाये गये, क्योंकि इन क्षेत्रों के विधायक पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान लोकसभा सांसद चुने गए थे। पंजाब के ये उप-चुनाव कई पक्षों से महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं। यहां आम आदमी पार्टी की सरकार को बने अढ़ाई वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। 
पिछले लोकसभा चुनावों में ‘आप’ को 13 में से 3 सीटें ही मिली थीं, जबकि पिछले विधानसभा चुनावों में इसके 117 में से 92 विधायक चुने गए थे। कांग्रेस को 15 सीटों पर ही जीत प्राप्त हुई थी तथा शिरोमणि अकाली को मात्र 3 सीटें ही मिली थीं। भाजपा भी 2 सीटों पर सिकुड़ कर रह गई थी, परन्तु इस वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा का अपना मत प्रतिशत दोगुना, अभिप्राय वर्ष 2019 में मिले 9.63 प्रतिशत मतों से बढ़ कर 2024 में 18.56 हो गया था, जबकि अकाली दल का मत प्रतिशत और भी सिकुड़ गया था। पंजाब के ये उप-चुनाव राजनीतिक पार्टियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण माने गए थे, क्योंकि आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद शासन करती आम आदमी पार्टी के राजनीतिक प्रभाव संबंधी इन चुनावों से पता चलेगा। कांग्रेस भी लगभग अढ़ाई वर्ष की अवधि के बाद पंजाब में अपने पर तौलते हुए दिखाई दे रही है। इन उप-चुनावों में उसे मिले समर्थन से भी आगामी समय में उसकी राजनीतिक चाल को मापा जा सकेगा। भाजपा के समक्ष पंजाब में आज भी अनेक चुनौतियां खड़ी दिखाई दे रही हैं। प्रदेश में उसकी अपनी सीमाएं भी हैं परन्तु इसके बावजूद जिस दृढ़ता से प्रदेश के राजनीतिक मैदान में वह उतर रही है, उससे आगामी समय में इसे अनदेखा किया जाना मुश्किल होगा।
प्रदेश की सबसे पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल में इस समय अनेक कारणों के दृष्टिगत अवसान की स्थिति है। पिछले कई चुनावों में यह स्पष्ट भी हो चुका था, परन्तु बड़ी सीमा तक ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित इन चारों उप-चुनावों में अकाली दल की ओर से अपने उम्मीदवार खड़े न करने के फैसले ने बड़ी संख्या में अकाली कार्यकर्ताओं एवं पार्टी समर्थकों में निराशा पैदा की है। जिस तरह के हालात में से यह पार्टी गुज़र रही है, उसे देखते हुए प्रतीत होता है कि आगामी समय में इसे उभरने के लिए अभी बहुत समय लगेगा। जहां महाराष्ट्र एवं झारखंड के चुनावों का केन्द्र सरकार पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जाएगा, वहीं पंजाब के उप-चुनावों के परिणाम भी बड़े संकेत वाले सिद्ध हो सकते हैं, क्योंकि इन्हें आधार बना कर ही प्रदेश की सभी पार्टियों को पुन: से अपनी नीतियों पर दृष्टिपात करने की ज़रूरत पड़ेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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