किस्मत के हाथों कठपुतली बनीं कामिनी कौशल

उनके जीवन की पटकथा शायद उनकी फिल्मों से भी अधिक नाटकीय रही। उन्होंने मात्र 10 वर्ष की आयु में अपना कठपुतली थिएटर बना लिया था, लेकिन कामिनी कौशल स्वयं किस्मत के हाथों कठपुतली बन गईं। वह अपने जीवन के 20वें बसंत में थीं और स्टारडम हासिल करने के कगार पर थीं कि उनकी बहन का निधन हो गया। उनसे कहा गया कि वह अपनी भांजियों की खातिर अपने जीजा से विवाह कर लें। युवा कामिनी कौशल ने यह ज़िम्मेदारी स्वीकार कर ली और इस तरह अपने परिवार की भलाई के लिए उन्होंने अपने सपनों पर विराम लगा दिया। अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह उन्होंने अपने जीवन के धुंधले चरणों में भी किया। क्योंकि वह अपने दिल की आवाज़ सुनने के लिए अपने पति व परिवार को नहीं छोड़ सकती थीं। कामिनी ने एक बार कहा था, ‘मैंने अपनी भांजियों की ज़िम्मेदारी ली थी। मैं अपनी बहन को अपना मुंह नहीं दिखा पाती। मेरे पति अच्छे इंसान हैं, जो कुछ हुआ था, वह उसे समझ गये। हर किसी को प्यार हो सकता है। मुझे भी दिलीप कुमार से प्यार हो गया था, शादीशुदा होते हुए भी।’
लेकिन दिल टूटने के बावजूद कामिनी ने अपने जीवन को सीमित नहीं किया। वह मां बनीं, फिल्में कीं, बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, टीवी शोज़ का संचालन किया और निर्माता भी बनीं। उन्होंने कहा था, ‘अगर बदलाव न आये तो जीवन ही नहीं है।’ इसलिए उन्होंने जीने की इच्छा कभी नहीं छोड़ी। वह 97 साल की हैं, फिल्मी दुनिया में 79 साल पूरे कर चुकी हैं। चार वर्ष पहले भी वह ‘कबीर सिंह’ में दादी की भूमिका में नज़र आयी थीं। विख्यात वनस्पति वैज्ञानिक प्रोफेसर एस.आर. कश्यप की बेटी कामिनी कौशल का जन्म उमा कश्यप के रूप में 24 फरवरी 1927 को हुआ था। वह दो भाई व तीन बहनों में सबसे छोटी थीं। लाहौर के किन्नैर्ड कॉलेज की प्रतिभाशाली छात्रा उमा आकाशवाणी पर रेडियो नाटक किया करती थीं। फिल्मकार चेतन आनंद ने रेडियो पर उनकी शहद जैसी मीठी आवाज़ सुनी और उन्हें ‘नीचा नगर’ (1948) में लीड भूमिका दी। चेतन आनंद ने ही उमा को कामिनी नाम दिया क्योंकि उनकी पत्नी का नाम भी उमा (आनंद) था और वह भी ‘नीचा नगर’ में काम कर रही थीं। ‘नीचा नगर’ पहली भारतीय फिल्म थी जिसे कांस फेस्टिवल में भेजा गया था। फिल्म ने ग्रांड प्री अवार्ड भी जीता, जबकि कामिनी ने अपने डेब्यू परफॉरमेंस के लिए मोंट्रियल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीता।
लेकिन 1948 में ही कामिनी को अपने जीजा बीएस सूद (बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में चीफ इंजीनियर) से अपने परिवार के दबाव में विवाह करना पड़ा क्योंकि उनकी बहन उषा का एक कार दुर्घटना में निधन हो गया था और वह अपने पीछे अपनी दो बेटियों कुमकुम व कविता को छोड़ गईं थीं। उस समय तक कामिनी ने राज कपूर की ‘आग’ और गजानन जागीरदार की ‘जेल यात्रा’ साइन कर ली थीं। यह 1947 की बात है। कामिनी ने अशोक कुमार के साथ भी फिल्में कीं, जैसे ‘नाईट क्लब’ व ‘पूनम’, जिसकी वह निर्माता भी थीं।
 देवानंद के साथ उन्होंने ‘जिद्दी’ व ‘शायर’ में काम किया और इन फिल्मों की शूटिंग के दौरान वह सुरैय्या के प्रेम पत्र देवानंद तक पहुंचाया करती थीं। दिलीप कुमार के साथ कामिनी ने ‘शहीद’, ‘पगड़ी’, ‘नदिया के पार’ ‘शबनम’ व ‘आरजू’ जैसी हिट फिल्में दीं। कामिनी ने जब फिल्मिस्तान की ‘दो भाई’ में ‘मेरा सुंदर सपना’ (जिसे गीता रॉय ने गाया था) पर अदाकारी की तो उनकी शुहरत आसमान पर पहुंच गई। बिमल रॉय की ‘बिराज बहू’ ने उन्हें एक कुशल अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस फिल्म ने कांस में गोल्डन पाम भी जीता था। इस फिल्म में अपनी भूमिका के बारे में उन्होंने बताया था, ‘मेरी भूमिका एक समर्पित पत्नी की थी, जिसे अदा करते हुए मैं कई बार रोयी। मेरे किरदार में सही होने का बोध था, जो यह मानती थी कि उसका पति उसे कभी बेवफा समझकर दुत्कारेगा नहीं।’ 
सोहराब मोदी की ‘जेलर’ में कामिनी की भूमिका एक ऐसी पत्नी की थी जो अपने पति की असंवेदनशीलता के कारण एडल्टरी की तरफ चली जाती है। एक अभिनेत्री के रूप में कामिनी का इतना सम्मान था कि अशोक कुमार वाली फिल्में छोड़कर क्रेडिट्स में उनका नाम हीरो से पहले आता था। एक बार जब वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थीं तो उनके कम्पार्टमेंट में उनका एक फैन चुपके से घुस गया और उनका तकिया चुरा कर ले गया, साथ ही यह नोट छोड़ गया, ‘अगर आपको तकिये की चोरी में कोई रोमांस दिखाई देता है तो मैं आपका चोर प्रेमी हूं।’ कामिनी को शायद यह अंदाज़ा नहीं था कि फिल्मों में वह जिस प्रकार के किरदार निभा रही थीं, वैसा ही कुछ उनके असल जीवन में भी घटित हो रहा था। वह शादीशुदा थीं, लेकिन दिलीप कुमार से प्रेम कर बैठीं। फिर भी उन्होंने अपने परिवार की खातिर दिलीप कुमार से ब्रेकअप किया। दिलीप कुमार का भी दिल टूटा, जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है। वर्षों बाद दोनों की मुलाकात एक पार्टी में हुई और उस समय तक आयु अपना रंग दिखा चुकी थी। कामिनी ने इस बारे में बताया था, ‘दिलीप ने मुझे पहचाना नहीं। जब उन्होंने मुझे ब्लेंक लुक दी तो मेरा दिल टूट गया। उन्होंने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा। वह मुझे पहचान नहीं पा रहे थे। उस समय तक उनके लिए (बीमारी की वजह से) किसी को भी पहचानना मुश्किल हो गया था। मैं बहुत उदास हुई। हम किस-किस दौर से गुज़र चुके थे।’ अब कामिनी मालाबार हिल के अपने पेंटहाउस में खामोश समय गुजारती हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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