चिंताजनक है हर साल नौ भाषाओं का लुप्त होना
पंजाब में जहां जन्म देने वाली मां के बाद मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली धरती को भी मां का दर्जा दिया गया है, वहीं मातृ भाषा को भी ‘मां बोली’ कह कर मां का ही दर्जा दिया गया है, जिस का उल्लेख पंजाब के धार्मिक ग्रंथों सहित इतिहास व साहित्य में भी किया गया है । यह सम्मान अन्य भाषाओं के लिए भी होना स्वाभाविक है। महान रणनीतिकार चाणक्य ने तो शिक्षिका को भी मां का दर्जा दिया है, क्योंकि हर बच्चे के छात्र जीवन की शुरुआत उसकी प्राथमिक अध्यापिका ने मां भाषा से ही करवानी होती है, लेकिन इस आधुनिक युग में भाषाओं का लुप्त होना न केवल हमारी संस्कृति और परम्परा का नुकसान है, बल्कि यह मानव सभ्यता की विविधता के लिए भी एक बड़ा झटका है।
दुनिया की लगभग 7,000 भाषाओं में से हर साल करीब नौ भाषाएं लुप्त हो रही हैं। दस साल पहले हर तीन महीने में एक भाषा समाप्त हो रही थी, लेकिन 2019 में हर 40 दिन में एक भाषा लुप्त होने लगी। यदि यह रुझान जारी रहा, तो इस सदी के अंत तक दुनिया की आधी भाषाएं समाप्त हो जाएंगी। यह आकलन यूनेस्को के सांस्कृतिक विभाग ने भी किया है।
भारत में लुप्त होती भाषाएं
भारत, जो भाषाई विविधता का केंद्र है, यहां भी कई भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं।
* कर्नाटक की कोरगा भाषा केवल 16,000 लोग बोलते हैं।
* हिमाचल प्रदेश की सिरमौरी भाषा को बोलने वाले केवल 31,000 लोग बचे हैं।
* छत्तीसगढ़ की पारजी भाषा को केवल 50,000 लोग बोलते हैं।
* दक्षिण भारत की टोडा भाषा गंभीर संकट का सामना कर रही है।
भाषाओं के लुप्त होने के कारण
* मातृभाषा से दूरी : माता-पिता अब बच्चों से मातृ भाषा में संवाद करना छोड़ रहे हैं।
* स्कूल और कार्यस्थलों पर उपेक्षा : ये भाषाएं न तो स्कूलों में बोली जाती हैं और न ही कार्यस्थलों पर।
* मुख्य भाषाओं का प्रभाव : अंग्रेज़ी और हिंदी जैसी भाषाओं के बढ़ते प्रभाव ने क्षेत्रीय बोलियों को पीछे धकेल दिया है।
* सामुदायिक उपेक्षा : कई भाषाई समुदाय अपने लिखित अधिकारों को संरक्षित करने में असमर्थ हैं।
भाषाओं को संरक्षित करने के प्रयास
* डिजिटल माध्यमों का उपयोग : नाइजीरिया के तोची प्रीशियस अपनी भाषा इगोबो को बचाने के लिए ऑनलाइन टूल ‘विक्ंिटग’ का सहारा ले रहे हैं।
* वीडियो रिकॉर्डिंग और अनुवाद : भारत में अंगिका भाषा को संरक्षित करने के लिए अमृत सूफी ने वीडियो रिकॉर्डिंग और ट्रांसक्रिप्शन का सहारा लिया है।
* पुस्तकों के माध्यम से संरक्षण : म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी हनीफी भाषा को पुस्तकों में संरक्षित कर रहे हैं और इन्हें शरणार्थी शिविरों में वितरित कर रहे हैं।
भाषा का महत्व और संस्कृति
भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि किसी समाज की परम्परा, संस्कृति और पहचान का प्रतीक होती है। किसी भाषा के लुप्त होने का मतलब सांस्कृतिक विरासत को खो देना है।
भाषाओं को बचाने के सुझाव
भाषाओं को बचाने के लिए सामुदायिक जागरूकता और सरकारी प्रयास बेहद ज़रूरी हैं। जहां स्कूलों और कार्यस्थलों पर क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिलना चाहिए, वहां पर अभिभावकों को भी अपने बच्चों के साथ मातृ भाषा में बातचीत को बढ़ावा देना होगा। नई तकनीक और डिजिटल मीडिया के उपयोग से भाषाओं को संरक्षित किया जा सकता है ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रह सकें। -मो. 90412-95900