भारत सहित अनेक देशों को प्रभावित करेंगे ट्रम्प के फैसले

पत्थर के सनम पत्थर के ़खुदा,
पत्थर के ही इंसां पाये हैं।
तुम शहर-ए-मुहब्बत कहते हो,
हम जान बचा कर आए हैं।
सुदर्शन ़फारिक का यह शे’यर पहली बार मैंने उस समय एक कहानी में इस्तेमाल किया था, जब अवैध तरीके से विदेश जा रहे बहुत-से पंजाबियों तथा भारतीयों की रूस के साइबेरिया की बर्फ के क्षेत्रों में मौत का समाचार आया था। आज यह शे’अर फिर उस समय दोबारा याद आ गया, जब यह पता चला कि हज़ारों मुश्किलें झेल कर अमरीका पहुंचे लगभग 18000 भारतीय, जिनमें अधिकतर पंजाबी, गुजराती तथा हरियाणवी हैं, पर ‘डिपोर्ट’ (मूल वतन भेजा जाना) किए जाने का खतरा मंडरा रहा है। वैसे यह संख्या फिलहाल 18 हज़ार है, परन्तु अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि अमरीका के दोबारा बने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी नीति पूरी सख्ती से लागू की तो लगभग 2 लाख भारतीयों को अमरीका से ‘डिपोर्ट’ किया जा सकता है। यह भी पता चला है कि अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो तथा भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की आपसी बातचीत में यह सहमति बनी है कि अमरीका में अवैध रूप में रह रहे उन भारतीयों को भारत स्वीकार कर लेगा, जिनके भारतीय नागरिक होने संबंधी दस्तावेज़ सही होंगे। 
ट्रम्प की जीत का भारत पर प्रभाव
सारी दुनिया जो भी बोले सब कुछ शोर-शराबा है,
सब का कहना एक तरफ है, उस का कहना एक तऱफ।
वरुण आनन्द का यह शे’अर इस समय अमरीका के डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दिए जा रहे बयानों पर उसके प्रभावों संबंधी उचित बैठता है। इस समय विश्व भर में सिर्फ ट्रम्प के बयानों तथा उनके द्वारा उठाए जा रहे कदमों की ही चर्चा हो रही है, परन्तु हमारे लिए उनके सभी फैसले तो विचार करने के योग्य नहीं हैं, परन्तु उनके वे फैसले अवश्य हमारी तवज्जो का केन्द्र हैं, जिनका प्रभाव भारत, पंजाब तथा सिखों पर पड़ता है। सबसे पहली बात का ज़िक्र हम ऊपर करके आए हैं कि अवैध ढंग से अमरीका में रह रहे लाखों भारतीयों पर ट्रम्प की डिपोर्ट नीति कैसे प्रभावी हो सकती है। प्रत्येक दौर में हर ‘बादशाह’ स्वयं को ़खुदा नहीं, तो उसका प्रतिनिधि अवश्य समझने लग जाता है। डोनाल्ड ट्रम्प भी शायद यही सोच रहे हैं, जब वह यह कहते हैं कि परमात्मा ने मुझे गोली से इसलिए ही बचाया है ताकि मैं अमरीका को दोबारा ‘महान’ बना सकूं।
ट्रम्प का भारत के प्रति पहला रवैया यह स्पष्ट करता है कि वह निजी रंजिश को बहुत महत्व देते हैं। विगत कुछ वर्षों से चीन से अमरीका के रिश्ते किसी तरह भी दोस्ताना नहीं हैं और इसी कारण अमरीका चीन को नियंत्रित करने या घेरने की रणनीति के तहत भारत के साथ संबंध बढ़ा रहा था, परन्तु अब भारत संबंधी भी उसका दृष्टिकोण बदलता प्रतीत हो रहा है। इस बार ट्रम्प ने अपने चुनाव अभियान के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका दौरे से पहले यह घोषणा कर दी थी कि मेरा मित्र मोदी अमरीका आ रहा है और वह मुझसे मिलेगा, परन्तु प्रधानमंत्री मोदी ट्रम्प से नहीं मिले, अपितु उनकी विरोधी पार्टी के नेताओं से मुलाकात करके ही लौट आए। बहुत-से अन्य कारणों के साथ-साथ ट्रम्प की इस मामले पर निजी रंजिश भी भारत के साथ उनके संबंधों को प्रभावित करती प्रतीत होती है। अमरीका चीन के साथ सीधा टकराव एवं मुकाबलेबाज़ी होने के बावजूद चीन को भारत से अधिक प्राथमिकता दे रहा है। 
अब अमरीकी दबाव की रणनीति या तो भारत को अमरीका की शर्तों पर उसके साथ चलने के लिए मजबूर करेगा या फिर भारत को सीधा रूसी कैम्प की ओर धकेल देगी। वैसे भारत के लिए एक बड़ी मुश्किल है कि भारत जो व्यापार चीन के साथ करता है, उसमें भारत चीन को अपने द्वारा निर्यात किए सामान से 85 बिलियन डालर अधिक का सामान आयात करता है, अर्थात् भारत को 85 बिलियन डालर का व्यापार घाटा है। परन्तु दूसरी ओर भारत अमरीका के साथ जो व्यापार करता है, उसमें भारत अमरीका से आयात किए सामान के मुकाबले उससे 46 बिलियन डालर का सामान अधिक भेजता है। अब यदि अमरीका भारतीय सामान पर टैरिफ अर्थात् कस्टम या आयात कर बढ़ाता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नई मुश्किल खड़ी कर देगा।  
रूसी तेल की स्थिति
यह ठीक है कि ट्रम्प की पहली कोशिश यह होगी कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध बंद करवाए। यदि वह इसमें सफल रहे तो अमरीका रूस पर लगी पाबंदियां भी हटा लेगा। परिणामस्वरूप जो तेल भारत रूस से सस्ता लेकर यहां रिफाइन करके यूरोपीय देशों को बेच रहा है। वह धंधा लगभग खत्म हो जाएगा, क्योंकि जब रूस से यूरोपीय देश सीधा पूरे दाम पर तेल खरीदेंगे तो वह भारत को सस्ता तेल क्यों देगा? परन्तु इसके विपरीत यदि ट्रम्प युद्ध को बंद नहीं करवा सकते तो वह युद्ध और तेज़ करवाएगा। परिणामस्वरूप वह भारत को मजबूर करेगा कि वह रूस से तेल आदि न खरीदे, क्योंकि ट्रम्प तथा अमरीका के पहले राष्ट्रपति जो बाइडन की सोच तथा नीतियों में ज़मीन-आसमान का फर्क है। यदि इस स्थिति में भारत यह तेल नहीं खरीदता और आगे नहीं बेचता तो भी भारत जो विदेशी करंसी तथा लाभ इस तेल के माध्यम से कमा रहा है, उससे वंचित हो जाएगा और भारत का व्यापार घाटा फिर एक नये शीर्ष पर पहुंच जाएगा। हालांकि यहां नोट करने वाली बात यह भी है कि रूस से तेल भारत की सरकारी कम्पनियां कम तथा निजी कार्पोरेट कम्पनियां अधिक खरीद रही हैं और लाभ भी उनका ही अधिक हो रहा है, परन्तु समूचे भारत के व्यापर घाटे में तो भारत का ही नुकसान होगा।   
डालर बनाम रुपया
डालर के मुकाबले भारतीय रुपया पहले ही निचला स्तर छू रहा है, परन्तु इस समय अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही रुपया 88-90 रुपये की दर तक गिर सकता है। नोट करने वाली बात है कि आम तौर पर यह समझा जाता है कि जब किसी देश की करंसी डालर के मुकाबले गिरती है तो उस देश का निर्यात बढ़ता है, परन्तु इस समय यह स्थिति भी नहीं है, अपितु इस कारण विदेशी निवेशक लगातार भारतीय शे’अर बाज़ार में से पैसे निकालते जा रहे हैं। फिर भारत मुख्य रूप में निर्यातक देश नहीं अपितु आयात करने वाला देश ही है। इसलिए जब महंगे डालर से आयात होगा तो भारतीय रुपये की कीमत और कम होगी तथा महंगाई दर भी ऊंची होती जाएगी।  
ब्रिक्स के कारण तनाव
ट्रम्प का रवैया ब्रिक्स के प्रति भी बहुत आक्रामक है। भारत इसका एक संस्थापक सदस्य है। अब यदि भारत ब्रिक्स के फैसले के अनुसार अलग करंसी की ओर बढ़ेगा तो भारत अमरीका के मित्र नहीं दुश्मन देशों की कतार में खड़ा दिखाई देगा। 
अमरीका में एच-1 बी वीज़ा पर सख्त होती शर्तों के सवाल पर मुझे नहीं लगता कि भारतीय हितों को कोई नुकसान होगा, क्योंकि साफ्टवेयर विशेषज्ञ अमरीका की ज़रूरत है और वह इसके लिए चीन या पाकिस्तान से अधिक भारतीय विशेषज्ञों को प्राथमिकता देने के लिए वह अपनी तकनीकी सुरक्षा के कारण मजबूर होगा। हां, पढ़ाई के लिए जाने वाले विद्यार्थियों को पी.आर. तथा काम मिलने के मामले में कानून सख्त बनाए जा सकते हैं, परन्तु भारतीयों को पढ़ाई के लिए बुलाने की आकर्षक शर्तें रखना अमरीका के शिक्षा व्यापार को लाभदायक बनाए रखना ज़रूरी भी है। इस बीच अमरीका का जलवायु परिवर्तन संबंधी पैरिस समझौते से निकल जाना भी भारत के ग्रीन एनर्जी में हुए बड़े निवेश के लिए दीर्घकालिक विपरीत प्रभाव पड़ेगा। 
बांग्लादेश-पाकिस्तान निकटता
दोस्ती उससे निभह जाये बहुत मुश्किल है,
मेरा तो वायदा है, उसका तो इरादा भी नहीं। 
(क्लीम आजिज़)
हालांकि बांग्लादेश का अस्तित्व ही भारत की मेहरबानी का नतीजा है, परन्तु वक्त बदलता है तो दोस्त और दुश्मन भी बदलते हैं। बांग्लादेश आजकल भारत में बैठी उसकी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी के लिए भारत को धमकियां तक देने पर उतर आया है कि भारत ऐसा नहीं करता तो वह मामला अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास ले जाएगा और दूसरे देशों को हस्तक्षेप करने के लिए कहेगा। यह सबको पता है कि बांग्लादेश की मौजूदा सरकार अमरीका पक्षीय है। खैर, बात इतनी ही नहीं, बांग्लादेश ने पाकिस्तान के साथ सिर्फ व्यापारिक संबंध ही बढ़ाने शुरू नहीं किए अपितु सैन्य संबंधों में भी भारी वृद्धि हो रही है। 
अभी बांग्लादेश का कोई राजनीतिक नेता तो पाकिस्तान नहीं गया, परन्तु बांग्लादेश की सेना का दूसरा सबसे बड़े जनरल, लैफ्टिनैंट जनरल कमरुल हसन पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर अहमद शाह तथा जनरल शाहिद शमशाद मिज़र्ा से मुलाकात करके आए हैं। चर्चा है कि बांग्लादेश पाकिस्तान से जे-17 युद्धक विमान तथा अन्य हथियार भारी मात्रा में खरीद रहा है। उल्लेखनीय है कि जे-17 युद्धक विमान बहुत ही उन्नत किस्म के चीनी-पाकिस्तानी विमान हैं। फिर पाकिस्तान के 4 जनरल मेजर जनरल शाहिद के नेतृत्व में पहले बांग्लादेश पहुंचे थे और वहीं वह यू.ए.ई. के लिए रवाना हुए थे। अब यू.ए.ई. की अमरीका के साथ निकटता भी किसी से छिपी हुई नहीं। इस प्रकार प्रतीत होता है कि जैसे यह अमरीका की ही कोई रणनीति हो, जिससे पाकिस्तान को चीन से दूर किया जा सके और भारत को घेर कर मनमज़र्ी करने की कोई रणनीतिक चाल हो, क्योंकि भारत तथा चीन के संबंध बड़े स्तर पर व्यापार होने के बावजूद कोई बहुत अच्छे नहीं हैं। अर्श मलसियानी के शब्दों में :
अर्श किस दोस्त को अपना मसझूं,
सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तऱफ।

-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, 
समराला रोड, खन्ना-141401
-मो. 92168-60000   

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