भारत-चीन संबंध - सकारात्मक पहलकदमी की ज़रूरत

भारत और चीन के संबंध बेहद जटिल हैं। एक तरफ सीमा पर दोनों देशों के मध्य समय-समय पर कड़ा टकराव देखने को मिलता है तथा दूसरी ओर दोनों देशों के मध्य व्यापार भी निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इस समय अमरीका के बाद चीन भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों बड़ी जनसंख्या वाले देश हैं। चीन सैनिक शक्ति के साथ-साथ आर्थिक पक्ष से भी विश्व की एक बड़ी शक्ति के रूप में तेज़ी से उभर रहा है। इसी तरह भारत भी दरपेश बहुत-सी चुनौतियों के बावजूद आर्थिक तौर पर तेज़ी से विकास कर रहा है। दोनों देशों को अपनी विकास यात्रा को आगे जारी रखने के लिए अनेक पक्षों से आपसी संबंधों को बेहतर रखने की ज़रूरत है। चीन भारत का बड़ा पड़ोसी होने के कारण भी भारत के लिए विशेष महत्त्व रखता है तथा दोनों देशों को अपने सीमांत विवाद सुलझाने के लिए एक-दूसरे के सहयोग की ज़रूरत है, परन्तु भारत का प्रभाव यह है कि चीन भारत के साथ व्यापार तो बढ़ाना चाहता है परन्तु सीमांत विवाद को सुलझाने के लिए तर्कशील और न्यायसंगत दृष्टिकोण नहीं अपनाता। वह निरन्तर पूर्वी लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश आदि भारतीय क्षेत्रों पर अपने दावे जताता रहता है जिस कारण दोनों देशों के मध्य कई बार सैनिक टकराव होने तक की सम्भावनाएं बन जाती हैं। इसके बावजूद दोनों देशों की ओर से आपसी व्यापार बढ़ाने और सीमांत विवादों को सुलझाने के लिए बातचीत का सिलसिला जारी रखा जा रहा है।
विगत वर्ष 21 अक्तूबर, 2024 को पूर्वी लद्दाख के दीपसांग तथा डैमचौक दो विवादित क्षेत्रों से दोनों देशों ने अपनी-अपनी सेना को पीछे हटाने संबंधी समझौता किया था। इस समझौते में इस क्षेत्र में 2020 वाली स्थिति बहाल करने की सहमति बनी थी, अभिप्राय दोनों देशों के सैनिक बल वहां तक गश्त कर सकेंगे, जहां वह 2020 में करते रहे थे। इस समझौते के बाद दोनों देशों के सैनिक दल क्रियात्मक रूप में भी पीछे हट गए थे तथा विवादित क्षेत्रों में खड़े किए गए अस्थायी सैनिक ढांचे भी हटा दिए गए थे। इस सकारात्मक घटनाक्रम के बाद 23 अक्तूबर, 2024 को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रूस के शहर कज़ान में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 50 मिनट तक बातचीत हुई तथा दोनों देशों के राष्ट्र-प्रमुखों ने सीमांत तनाव कम करने तथा आपसी संबंधों को विभिन्न क्षेत्रों में और बढ़ाने संबंधी सहमति प्रकट की। इसके बाद तेज़ी से भारत और चीन के मध्य अलग-अलग स्तर पर बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा। भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन का दौरा करके चीन के विदेश मंत्री वांग ची के साथ सीमांत विवाद और अन्य कई पहलुओं पर लम्बी बातचीत की थी। अब इस सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री द्वारा 26 और 27 जनवरी को चीन का दो दिवसीय दौरा किया जा रहा है, जिस दौरान वह चीन के अपने समकक्ष अधिकारी के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और आगे बढ़ाने और लद्दाख सहित अन्य क्षेत्रों में हालात को और अधिक बेहतर बनाने आदि अहम मुद्दों पर बातचीत करेंगे। कहा जा रहा है कि दोनों देशों के मध्य सीधी हवाई उड़ानें पुन: शुरू करने, कैलाश मानसरोवर की यात्रा पुन: आरम्भ करने तथा चीनी एवं भारतीय नागरिकों को दोनों देशों में आने-जाने के लिए वीज़ा देना तथा अन्य सुविधाएं देने संबंधी विचार-विमर्श हो सकता है और निकट भविष्य में इस संबंध में अहम फैसले भी लिए जा सकते हैं।
जहां तक भारत का संबंध है, वह चाहता है कि चीन भारत के साथ अपने सीमांत विवाद को सार्थक दृष्टिकोण से हल करने के लिए आगे बढ़े और प्रतिदिन भारतीय क्षेत्रों पर नये-नये दावे पेश करने बंद करे। इसके साथ ही चीन द्वारा अपने क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर जो विशाल बांध बनाने का फैसला किया गया है, उस संबंधी भी भारत में चिंताएं बढ़ रही हैं। भारत यह चाहेगा कि इस संबंध में चीन अपनी सारी योजना का प्रकटावा करे और भारत को इस बात के लिए आश्वासन दे कि  ब्रह्मपुत्र नदी का निचला रिपेरियन होने के कारण उसके हित इस बांध के बनने से किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होंगे। भारत यह भी चाहेगा कि चीन से उसका जो व्यापारिक घाटा बढ़ रहा है, उसमें संतुलन लाने के लिए चीन लचीला दृष्टिकोण अपनाए। इस समय दोनों देशों के बीच 118 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा है। चीन भारत को 100 अरब डॉलर का सामान भेजता है, जबकि भारत सिर्फ 16.6 अरब डालर का सामान ही चीन को भेजता है। नि:संदेह दोनों देशों को अपने व्यापार में संतुलन बनाने की ज़रूरत है।
परन्तु यदि विश्व की वर्तमान परिस्थितियों की बात करें और विशेषकर अमरीका के नये चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लागू की जा रहीं कई प्रकार की विवादित नीतियां, जिनमें चीन तथा भारत द्वारा अमरीका को भेजी जाने वाली वस्तुओं पर व्यापक स्तर पर टैक्स लगाना भी शामिल है, का संज्ञान लें तो यह बात और भी ज़ोरदार ढंग से उभरती है कि दोनों देशों को आपसी हितों के लिए सीमाओं पर शांति बनाए रखने के साथ-साथ व्यापार तथा तकनीकी क्षेत्रों में भी बड़े सहयोग की ज़रूरत है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व में शांति एवं स्थिरता बहाल करने के लिए भी दोनों देश मज़बूत योगदान डाल सकते हैं। यह आने वाला समय ही बताएगा कि दोनों देश अपने इन सरोकारों के दृष्टिगत किस सीमा तक आगे बढ़ते हैं। 

#भारत-चीन संबंध - सकारात्मक पहलकदमी की ज़रूरत