एडवोकेट जोगिन्दर सिंह तूर की पुस्तक ‘वंड दी अकथ कथा’ का रिलीज़ समारोह
इन पंक्तियों के लिखे जाते समय इस वर्ष गणतंत्र दिवस मनाने की योजनाबंदी हो रही है। देश का भविष्य कहां से कहां जा रहा है और देश के विभाजन के बाद अविभाजित पंजाब तथा अखंड हिन्दुस्तान जिन हालातों में से गुज़रा और संविधान क्या कहता है, इसका लेखा-जोखा भी हो रहा है। यहां तक कि संसद का शीतकालीन सत्र ही संविधान के 75 वर्षों के शानदार सफर को समर्पित था। यह बात अलग है कि सत्तारूढ़ पार्टी के प्रमुख प्रवक्ताओं ने इस सफर की बुलंदियां मापने की बजाय विपक्ष की आलोचना वाला तवा ही लगाए रखा।
पिछले दिनों चंडीगढ़ में एडवोकेट स. जोगिन्दर सिंह तूर की देश के विभाजन संबंधी पुस्तक ‘वंड दी अकथ कथा’ रिलीज़ की गई है। जहां तक तूर के ग्रमीण जीवन के प्रति मोह एवं विश्वास का संबंध है, उनकी पुस्तक ‘वंड दी अकथ कथा’ (लोकगीत प्रकाशन, पृष्ठ 288, मूल्य : 400 रुपय) इसका दुर्लभ प्रमाण है कि जो 2024 के अंतिम सप्ताह में चंडीगढ़ के लॉ भवन में लोकार्पित हुई। इसमें सेवानिवृत्त प्रोफैसरों, कायम-मुकाम वकीलों तथा साहित्य रसियों तथा बड़े समाचार पत्रों के सम्पादकों की शमूलियत बताती है कि उन्हें तूर की तीन वर्ष पहले वाली किसानोन्मुख भावना भूली नहीं थी। इस समारोह में शामिल होने के लिए ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द का जालन्धर से आना भी कम अर्थ नहीं रखता था। इसलिए भी कि बरजिन्दर सिंह को तूर तथा उनकी जीवन साथी के परिवारों द्वारा 1947 में सहन की मुश्किलों का पूरा ज्ञान था।
उन दोनों से आयु में थोड़ा बड़ा होने के नाते मैं भी उस समय की अकथ कथाओं का चश्मदीद गवाह हूं। यही कारण है कि तूर की यह रचना मुझे भी स्वयं के साथ चलाने वाली है। यदि अंतर है तो सिर्फ इतना कि मैंने इधर से उधर धकेले गए मुसलमानों का दर्द पहचाना है और तूर ने उधर से इधर आए हिन्दु-सिखों का।निजी वारदातों से तूर ने इस घटनाक्रम को वकील की आंख से जानने का यत्न भी किया है। विभाजन क्यों हुआ और इस दौरान हुई घटनाओं की पृष्ठभूमि बताना तो बनता ही था, परन्तु लेखक ने इसे राजाओं, नवाबों तथा महाराजाओं की राजशाही से जोड़ कर इतनी ऐतिहासिक जानकारी दी है कि देश के विभाजन के मामले को वर्तमान संवैधानिक गतिविधियों के साथ जोड़ दिया है।देश विभाजन के समय अखंड हिन्दुस्तान में 565 रियासतें थीं, जिनके अधीन भारत के कुल क्षेत्रफल का तीसरा हिस्सा तथा कुल आबादी का चौथा भाग आता था। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें अपने अधीन रखने के लिए उनके निवासियों को नहरों, रेलगाड़ियों, यातायात के साधनों तथा डाक-तार के ढांचे से ललचाया तथा शासकों को कथित पद एवं रुतबे प्रदान करके लुभा रखा था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उनकी मूल इच्छा यह थी कि ब्रिटिश शासकों की अधीनता प्राप्त करते समय हमने अपनी प्रभुसत्ता ब्रिटेन को सौंप दी थी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें वापिस मिलनी चाहिए। यहां तक कि कई राजाओं ने अपने राज्यों में रेलवे लाइनें तथा डाक-तार के साधन उठाए जाने की पेशकश भी की, जिससे नये भारत की एकता एवं अखंडता भंग होने की स्थिति बन जाती थी। राजा-महाराजाओं के आपस में भिड़ने की पूरी सम्भावना थी और गैर-रियासती क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ सकता था। इन राजाओं एवं नवाबों को डराने, धमकाने तथा लुभाने का काम आसान तो नहीं था, परन्तु उस समय किया गया और वह भी पूरी समर्था से। यह पुस्तक उन शख्सियतों एवं व्यक्तियों का विवरण भी पूरे विस्तार से देती है, जिसके आधार पर यह पुस्तक अप्रत्यक्ष रूप में उन राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शक बना जाती है, जो संसद में बिना सोचे बोलने के आदी हो चुके हैं या हो रहे हैं। मामला बड़ा है। पूरा विस्तार कभी फिर सही।
अंतिका
(आज़ादी तरंग/राम प्रसाद बिसमल/प्रसंग गणतंत्र)
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।