ट्रम्प का अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव
विगत दिवस डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से अमरीका के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के बाद अन्तर्राष्ट्रीय दृश्य बड़ी तेज़ी से बदल रहा प्रतीत होता है। चाहे इज़रायल और हमास का युद्ध रुकने संबंधी समझौते की ट्रम्प के शपथ ग्रहण करने से पहले ही घोषणा कर दी गई थी, परन्तु ट्रम्प के चुनाव जीतने के बाद ही यह बात शुरू हो गई थी कि यह युद्ध शीघ्र ही खत्म हो जाएगा। अब ट्रम्प ने रूस को भी कहा है कि वह यूक्रेन के साथ युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत करे। चाहे अभी निकट भविष्य में इसकी उम्मीद नहीं है, परन्तु आगामी दिनों में इस युद्ध पर भी ट्रम्प का प्रभाव देखा जा सकेगा। शपथ ग्रहण के शीघ्र बाद ट्रम्प की ओर से अनेक कार्यकारी आदेश जारी किए गए हैं, जो ज्यादातर स्थानों पर बड़ा प्रभाव डालने वाले सिद्ध हो सकते हैं। इनमें पिछले दशकों में विश्व भर से अनाधिकृत रूप से अमरीका में दाखिल हुए लाखों लोगों संबंधी निर्देश भी शामिल हैं, जिन पर नया अमरीकी प्रशासन शिकंजा कसने की पूरी तैयारी में है। भारत को भी इस संबंध में पहली सूची भेज दी गई है, जिसमें लगभग 18 हज़ार अनधिकृत भारतीय शामिल हैं। सूचना के अनुसार आगामी दिनों में लाखों ही ऐसे भारतीयों पर शिकंजा कसा जा सकता है, इनमें ज्यादातर पंजाबी, हरियाणवी और गुजराती लोग शामिल बताए जा रहे हैं।
समूची दुनिया को हिलाने वाला एक समाचार यह भी है कि ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र की एक अहम कड़ी विश्व स्वास्थ्य संस्था को अमरीकी सहायता रोकने संबंधी निर्देश जारी कर दिए हैं। अपनी पहली पारी में उन्होंने ऐसा करने की ओर कदम बढ़ाए थे, परन्तु उस समय यह सम्भव नहीं हो सका था। अमरीका विश्व की इस संस्था को सबसे अधिक पैसा देता है। यह सहायता बंद होने से इस संस्था का भविष्य भी लड़खड़ाता दिखाई दे रहा है। इस शपथ ग्रहण समारोह के बाद एक अहम बात यह भी हुई है कि वाशिंगटन में ही ‘क्वाड’ के चार सदस्य देशों के विदेश सचिवों की एक बैठक हुई है, जिसमें भारतीय विदेश मंत्री के अतिरिक्त अमरीका, जापान और आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी भाग लिया है। ‘क्वाड’ संगठन के ये चार ही सदस्य हैं, जिन्होंने पिछली लम्बी अवधि से हिन्द-प्रशांत महासागर में चीन की ओर से बढ़ाए जा रहे हस्तक्षेप पर निरन्तर चिन्ता व्यक्त की है।
चाहे संयुक्त राष्ट्र ने अन्तर्राष्ट्रीय मार्गों पर स्पष्ट रूप में यह फैसला सुनाया था कि प्रत्येक देश के साथ लगते समुद्र पर एक निश्चित सीमा तक उसका अधिकार होगा, जिसे चीन ने मानने से हमेशा इन्कार किया है तथा समुद्र में भी अपनी विस्तारवादी गतिविधयों को वह जारी रख रहा है। विशेष तौर पर दक्षिण चीन सागर के ज्यादातर भाग को वह अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिए तत्पर रहा है। दक्षिण चीन सागर के साथ चीन के अतिरिक्त फिलीपाइन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया तथा ब्रुनेई आदि देश लगते हैं, जो अपने साथ लगते पानी पर अन्तर्राष्ट्रीय कानून अनुसार अपना दावा पेश करते रहे हैं, परन्तु चीन ने उन देशों के अधिकारों को मानने से हमेशा इन्कार किया है। उसके समुद्री जहाज़ लगातार इन देशों से संबंधित जहाज़ों को धमकाते रहते हैं, जिस कारण अक्सर उनका चीन के सुरक्षा बलों के साथ टकराव भी हो जाता है। चीन ने इस समुद्र में कृत्रिम द्वीप भी बना लिए हैं, जिन पर वह लगातार अपने हथियार जमा कर रहा है। इस कारण इस क्षेत्र में बेहद तनाव बढ़ चुका है।
‘क्वाड’ यह चाहता है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार ही तटवर्ती देशों का समुद्र पर अधिकार होना चाहिए तथा नियमित अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अब वाशिंगटन में हुई इन विदेश मंत्रियों की बैठक में एक बार फिर यह कहा गया है कि अलग-अलग देशों के साथ लगते समुद्र पर उनके अधिकारों संबंधी निश्चित किए गए नियमों में किसी भी देश को ताकत के बल पर बदलाव करने का अधिकार नहीं है। अब अमरीका में राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद इस नई स्थिति से कैसे निपटा जाएगा तथा यदि यह मामला हल नहीं होता तो इसके क्या गम्भीर परिणाम निकल सकते हैं, इस संबंध में नई चिन्ता पैदा होनी शुरू हो गई है। संबंधित देशों के मध्य नया छिड़ा कोई टकराव अन्तर्राष्ट्रीय तौर पर विनाशकारी सिद्ध हो सकता है, इसलिए इसका कोई सार्थक समाधान ढूंढा जाना बेहद ज़रूरी है तथा इस टकराव से हर स्थिति में बच कर रहने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द