कैसे थमेगा चाइना डोर का खूनी दौर ?

पतंगबाज़ी प्रचीन समय से चली आ रही है। उस समय राजा-महाराजाओं द्वारा स्वयं पतंगबाज़ी के मुकाबले करवाए जाते थे। कच्ची डोर से या फिर इस डोर को कांच के चूरे से तैयार करके  उससे पतंग आसमान में उड़ा कर पतंगबाज़ी का आनन्द लिया जाता था। लोहड़ी, बसंत पंचमी तथा अन्य त्यौहारों पर लोग इतने चाव से पतंग उड़ाते थे कि पूरा आसमान पतंगों से भरा दिखाई देता था। बच्चे-बूढ़े क्या, हर उम्र के लोग पतंग उड़ाते हुए एक-दूसरे के पतंगों को काट कर, शोर मचा कर अपना मनोरंजन करने के साथ-साथ आपसी भाइचारे का संदेश भी देते थे। समय बदलने के साथ इस शौक में भी बदलाव आ गया है। आज के दौर में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए डोर बनाने वालों ने अपने निजी लाभ के लिए कच्चे धागे से उड़ाये जाने वाले पतंगों के लिए एक नई प्रकार की डोर तैयार की, जिसे ‘चाइना डोर’ का नाम दिया गया, जो प्लास्टिक की तरह होती है, जो न टूटती है और न ही जल्द कटती है। यदि डोर का दूसरा नाम ‘खूनी डोर’ भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 
आजकल पतंगबाज़ी का दौर पूरे ज़ोरों पर चल रहा है और पतंगबाज़ी का शौक पूरा करने के लिए इस खूनी डोर का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर हो रहा है। इसके इस्तेमाल से बहुत से लोग घायल हो जाते हैं, यहां तक कि अनेक को तो इसकी चपेट में आकर अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है। इससे आम जन तो प्रभावित होता ही है, साथ ही पशु-पक्षियों को भी इसकी चपेट में आते देखा जा सकता है। कई बार हम देखते हैं कि ये बेचारे पक्षी इस खूनी डोर के साथ लटक कर तड़पते रहते हैं, जो इससे नहीं निकल पाते वे अंत में दम तोड़ देते हैं। अनेक की तो एक या दोनों टांगे ही नकारा हो जाती हैं या फिर पंख कट जाते हैं, जिस कारण वे उड़ने से लाचार होकर दूसरे जानवरों का शिकार बन जाते हैं।
यदि इस चाइना डोर के इस्तेमाल की बात की जाए तो इसके लिए हम सभी ज़िम्मेदार हैं। हमारी क्या मजबूरी है कि हम स्ययं अपने बच्चों को ऐसी घातक डोर खरीद कर देते हैं? जबकि हमें पता है कि यह डोर कितनी खतरनाक है कि रास्ते में किसी राहगीर के लिए फांसी का फंदा बन सकती है। दो पहिया वाहनों, राह चलते राहगीरों के लिए यह बहुत ही खतरनाक सिद्ध होती है। इस डोर को खरीदने वालों को याद रखना चाहिए कि वे स्वयं भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। यदि हम समाज के प्रति कुछ नहीं सोच सकते तो कम से कम अपने तथा अपने बच्चों के बारे सोच कर ही इस डोर को न खरीदें।
विगत वर्षों के दौरान इस डोर ने कितने ही लोगों की जान ले ली है, फिर भी वर्तमान में इस घातक डोर की खरीद-फरोखत का रूझान इसी तरह जारी है। यदि इस प्रति प्रशासन सचेत हो जाए तो ऐसा कोई नियम नहीं है जिसे प्रशानल लागू करना चाहे और वह लागू न हो। यहां पूरी गाज अफसरशाही पर गिर जाती है। यदि हमारी अफसरशाही अपनी ड्यूटी के प्रति ईमानदार हो जाए तो लोग अपने-आप ईमानदार हो जाएंगे। इस डोर के बिकने का कारण भी अफसरशाही की कथित मिलीभुगत ही है। इसके ज़िम्मेदार वे लोग भी हैं, जो इसके घातक प्रभाव के बारे जानते हुए भी डोर की बिक्री करते हैं। उन्हें यह सोचना चाहिए कि वे डोर नहीं, अपितु किसी का कफन बेच रहे हैं, चाहे वह किसी मनुष्य को हो या किसी पशु-पक्षी का। 
हमें प्रतिदिन दो-चार लोगों के इस घातक डोर की चपेट में आने के समाचार पढ़ने-सुनने को मिल जाते हैं। इस संबंधी यदि पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी छापा मारते हैं तो उन्हें दुकानों के अंदर कुछ नहीं मिलता, यदि कुछ मिलता भी है तो कथित तौर पर उनकी जेब गर्म होने से दुकान के भीतर पड़ी चाइना डोर भी अदृश्य हो जाती है।
 हम लोग इतने खुदगज़र् क्यो हो गए हैं? बहुत कम लोग अपने फज़र् के प्रति समर्पित या वफादार रह गए हैं। इस बार पंजाब सरकार ने चाइना डोर बेचने व खरीदने वालों के खिलाफ शिकंजा कसने की कार्रवाई के लिए पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड को यह कार्य सौंपा था, जिन्होंने चाइना डोर बेचने वालों के बारे में सूचना देने वाले को 25,000 रुपए के ईनाम की घोषणा भी की थी, परन्तु इसका कोई अधिर लाभ होता दिखाई नहीं दिया।
हमें भी किसी सरकार या विभाग को दोष देने की बजाय स्वयं अपने भीतर दृष्टिपात करना चाहिए। देखा जाए तो चाइना डोर के प्रसार के लिए हम सभी ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि हम अपने बच्चों का शौक पूरा करने के लिए उन्हें ऐसी चीज़ खरीदने की अनुमति दे देते हैं।अंत में यही कहा जा सकता है कि हम स्वयं अपने ज़मीर को जगाएं। क्यों किसी पर उम्मीद लगा कर बैठे हैं, स्वयं इस पर रोक लगाने हेतु प्रयास करें। इस खूनी डोर के इस्तेमाल से तौबा करें।  

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