मानवता के लिए वैश्विक त्रासदी है भगदड़

गत 28 जनवरी की देर रात 1:30 बजे के करीब संगम तट पर भगदड़ की घटनायें हुईं। इस दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ को लेकर कई अलग-अलग दावे किये जा रहे हैं। स्वयं को प्रत्यक्षदर्शी बताने वाले कुछ लोगों का दावा है कि उस रात एक नहीं बल्कि 3 स्थानों पर भगदड़ हुई। इनमें दो जगहें संगम मेला क्षेत्र में थीं और एक भगदड़ जी.टी. रोड पर भी हुई बताई जा रही है। इसी तरह मृतकों के आंकड़ों को लेकर भी अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है। सैकड़ों लोग अपने बिछड़े परिजनों को तलाश रहे हैं। हज़ारों लोगों के जुते चप्पल व अन्य सामान लावारिस पड़े दिखाई दे रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिनकी फोटो योग गुरु रामदेव के साथ भगदड़ से दो दिन पहले ही नृत्यासन जैसी मुद्रा में वायरल हो रही थी, भगदड़ के बाद भी कई वेबसाईट व अखबारों ने उसी फोटो को प्रकाशित किया गया है। दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इस भगदड़ को लेकर इसलिये भी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है क्योंकि सरकार इस पूरे महाकुंभ आयोजन को अपनी सरकार की सफलता के रूप में काफी बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रही थी। ज़ाहिर है जो सरकार अपनी सफलता के लिये अपनी पीठ स्वयं थपथपाने में माहिर हो कम से कम उसकी कमियों को उजागर करने का काम ईमानदार मीडिया व आलोचकों को तो करना ही चाहिये?
जबकि भगदड़ न तो कुंभ मेले में पहली बार हुई है न ही केवल कुंभ में ही भगदड़ होती है। और ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत में ही भगदड़ होती हो। सऊदी अरब के मक्का में 1990 में हज यात्रा के दौरान एक बड़ी भगदड़ मचने से लगभग 1400 लोगों की मौत हो गई थी। यह हादसा तब हुआ जब एक तंग मार्ग पर भीड़ जमा हो गई थी और लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे थे। इसी तरह सऊदी अरब में ही 2006 में हज के दौरान बड़ी भगदड़ में लगभग 360 हज यात्रियों की मौत हो गई थी। इसी तरह 2015 के हज में हुई बड़ी भगदड़ हज यात्रा के दौरान का अब तक का सबसे बड़ा हादसा था जिसमें लगभग 2300 लोगों की जान चली गई थी। यह हादसा भीड़ की असंतुलित स्थिति के कारण हुआ था, जब हज यात्रियों का एक समूह शैतान पर पत्थर फेंकने के लिए इकट्ठा हो रहा था। इसी तरह कुंभ मेलों के दौरान भी भगदड़ मचने के पूर्व में इससे भी बड़े व भयानक हादसे हुए हैं। कई देशों में फुटबाल मैच या अन्य खेल अथवा मनोरंजक आयोजनों के दौरान भगदड़ मचने की घटनायें हो चुकी हैं।
दरअसल भीड़ को कम कर या उसे विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित कर ऐसे हादसों को टाला जा सकता है। परन्तु सरकार तो स्वयं भीड़ के आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करती है। ऐसे में जो श्रद्धालु रोज़ाना करोड़ों श्रद्धालुओं के संगम तट पर पहुंचने की खबर घर बैठे सुनता रहता है और मीडिया के माध्यम से वहां उपलब्ध ‘सुविधाओं’ के सब्ज़ ब़ाग देखता रहता है वह ज़रूर सोचता होगा कि कहीं वही इस पावन अवसर पर पुण्य कमाने से महरूम न रह जाये। और यह सोचकर आम भक्तजन तरह-तरह की दु:ख तकल़ीफ उठाते हुये भी चल पड़ते हैं। परन्तु जब वह ऐसे विशाल आयोजनों में पहुंचते हैं फिर उन्हें पता चलता है कि गोदी मीडिया द्वारा टी.वी. पर किया जाने वाला प्रचार या विज्ञापनों से भरे पड़े अखबार केवल सरकार द्वारा प्रचारित उजले पक्ष को ही रखते हैं। और इस तरह का हादसा हो जाने के बाद केवल लाशों की संख्या छुपाने या कम बताने की बात तो पूर्व में भी होती ही रही है। परन्तु यह पहली बार सुनने में आ रहा है कि इस बार तो सरकार पूरी भगदड़ पर ही पर्दा डालने की कोशिश कर रहे है। अन्यथा क्या कारण है कि अलग-अलग सूत्रों से प्राप्त होने वाली तीन अलग-अलग भगदड़ की खबरों के बीच सरकार अभी तक यह क्यों नहीं बता पाई कि 28 जनवरी को प्रयागराज कुंभ में भगदड़ के हादसों की वास्तविक संख्या क्या थी। भगदड़ के अतिरिक्त आगज़नी की भी कई घटनाएं इसी मेला क्षेत्र में हो चुकी हैं। कभी साधुओं व कल्पवासियों के टेंट जल गये तो कभी गीता प्रैस के 180 टेंट कॉटेज जलकर राख हो गये।
ऐसे हादसों से क्या हम वास्तव में कोई सबक लेने को तैयार भी हैं? क्या भीड़ को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने वाली सरकारें अपने इस आमंत्रित ‘वोट बैंक’ की जान व माल की सुरक्षा की गारंटी भी ऐसे आयोजनों में दे सकती हैं? क्या वजह है कि ऐसी भगदड़ों में प्राय: वही लोग अपने जान माल से हाथ धो बैठते हैं जो सरकार की ‘लाभार्थियों’ की सूची में शामिल हैं। जबकि सत्ता व शासन-प्रशासन के निकटस्थ या फिर सम्पन्न व विशिष्ट लोग ऐसे हादसों में मरते कुचलते नहीं सुनाई देते। क्योंकि ऐसे विशिष्ट लोग अपने धन या प्रोटोकाल की बदौलत स्वयं को कहीं भी सुरक्षित कर लेते हैं जबकि आम आदमी के तो नसीब में ही भीड़ और भगदड़ का शिकार होना लिखा है। कई जगहों पर वीआईपी की आवाजाही के चलते भी भगदड़ जैसे हादसे होते रहे हैं। 
गत 28 जनवरी के हादसे को भी कथित तौर पर वीआईपी मूवमेंट से जोड़कर देखा जा रहा है। शायद यही वजह थी कि इस घटना के फौरन बाद ही सभी वीआईपी पास निरस्त कर दिए गये। बताया जाता है कि 3 फरवरी, 1954 को भी इलाहबाद में लगे कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के लिए लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। यहां कुछ अ़फवाहें फैलने के बाद भगदड़ मच गई। 45 मिनट तक चली इस भगदड़ में लगभग 800 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि उस कुंभ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आए थे। 
इसी तरह सऊदी अरब में हज के दौरान जहां टेंटों में आग लगने व हाजियों के ज़िंदा जलने की खबरें आ चुकी हैं वहीं कहीं शैतान पर पत्थर फेंकने या तंग रास्ते में अत्याधिक लोगों के इकट्ठा होने के कारण भी भगदड़ मच चुकी है। वहीं हज के दौरान सऊदी किंग के आवागमन व उनके प्रोटोकाल पर अमल करने के कारण भी भगदड़ के हादसे हो चुके हैं। कहा जा सकता है कि भगदड़ एक मानव जनित वैश्विक त्रासदी है और जब जब जहां जहां इस तरह की अनियंत्रित भीड़ इकट्ठी होती रहेगी ऐसे हादसों की संभावना हमेशा बनी रहेगी।

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