भारत में आलू का पौधा कैसे आया ?
आलू जो सभी उम्र के लोगों के लिए सर्वोत्तम आहार है जिसमें कार्बोहाइड्रेट और विशेष रुप से विटामिन-सी विद्यमान है। उसने अपनी भारत तक आने की यात्रा कैसे तय की? इसकी यात्रा काफी मनोरंजक है। सन् 1531 में स्पेन ने पेरु को जीता तो लगभग बीस वर्ष तक उन्हें आलू की जानकारी नहीं थी। पेरु में यह सब्जी दो हजार वर्ष से बोई जा रही थी। वहां के लोग इसे ‘बताता’ कहते थे। 1553 ई. में स्पेन का एक सैनिक जब पेरु से अपने देश लौटा तो उसने इस सब्जी के बारे में लोगों को जानकारी दी। इस जानकारी ने लोगों में कौतूहल जगा दिया। 1570 ई. में इस सब्जी का एक पौधा स्पेन पहुंचा। लाने वाले ने इसे ‘पताता’ नाम बताया। 1578 ई. में ड्रेक ने पेरु के समुद्र तट पर बसी हुई बस्तियों में लूटपाट की। वहां उसे आलू के पौधे हाथ लगे। यह पौधा ड्रेक द्वारा यूरोप लाया गया। जर्मनी के एक नगर अफानवर्ग में ड्रेक की एक मूर्ति स्थापित है जिसके एक हाथ में आलू है और मूर्ति के नीचे लिखा हुआ है-यूरोप में आलू लाने वाला।
1580 में बताता (आलू) सब्जी पेरुवासियों के बीच इतना महत्वपूर्ण हो गया कि यह उनके धर्म से जुड़ गया। बरकत के लिए वहां के निवासी अपने घरों की दीवारों पर बताता की तस्वीर बनाते और बताता देवता के नाम पर मनुष्यों और जानवरों का बलिदान करते थे। युद्ध के बाद जख्मी और मुर्दो के खून बताता के खेतों में डाला जाता था। यूरोप में इस पौधे को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था। यहां के लोगों ने यह अफवाह उड़ा दी कि बताता खाने को वाले कोड़ हो जाती है। 18वीं शताब्दी के अंत में फ्रांस के विद्वान पारमेते ने बताता के पक्ष में अभियान चलाया और पुस्तकों का प्रकाशन कर उसकी विशेषताएं बतायी। फ्रांस के सम्राट लुई ने आलू के फूल को अपने कोट में लगाया। इससे लोगों में इसके प्रति घृणा दूर हुई और धीरे-धीरे लोग इसे पकाकर खाने लगे। यह यूरोप से एशिया और अफ्रीका में आया। भारत में इसे अंग्रेज लेकर आये और इसे ‘पोटोटो’ कहा। भारतवासियों ने आलूचे और आलू बुखारे के आकार के जैसा होने के कारण इसका नाम ‘आलू’ रखा।
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