पाकिस्तान के लिए क्या है भारत की रणनीति ?
भारत-पाकिस्तान संबंध भारत के किसी भी पड़ोसी देश के साथ सबसे जटिल संबंधों में से एक है। कई विवादास्पद मुद्दों के बावजूद भारत और पाकिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों में ष्विश्वास की कमीष् को कम करने में बड़ी प्रगति की है। भारत पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण व सहयोगात्मक संबंध चाहता है जिसके लिए हिंसा और आतंक से मुक्त वातावरण की आवश्यकता है। दोनों देश भाषाई, सांस्कृतिक, भौगोलिक व आर्थिक संबंध साझा करते हैं लेकिन राजनीतिक और ऐतिहासिक कारणों से दोनों के बीच जटिल संबंध हैं। आपको बता दूं कि पहलगाम हमले की प्रतिक्रिया में पाक से हुए सैन्य संघर्ष के बाद भारत ने अपनी रणनीति में तेजी से बदलाव किया है। आतंकवाद के खिलाफ सतत संघर्ष के लिए सुरक्षाबल तैनात हैं। शीर्ष नेतृत्व लगातार उन जगहों पर जाकर सेना का मनोबल बड़ा और पाकिस्तान के झूठे दावों का पर्दाफाश कर रहा है, जिन पर पाकिस्तान ने हमले की बात कही थी। इसी क्रम में रक्षामंत्री श्रीनगर में सेना के जवानों से मिलने गए। वहां उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया कि पाकिस्तान एक दुष्ट और गैरजिम्मेदार देश है, उसके पास परमाणु हथियार होना खतरे से खाली नहीं हो सकता। वह बार-बार भारत को परमाणु हमले की धमकी देता रहा है। भारत कभी पाकिस्तान की परमाणु धमकी के आगे झुकने वाला नहीं है।
इसके पहले प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि भारत कभी पाक की परमाणु धमकी के आगे झुकने वाला नहीं है। रक्षामंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के परमाणु आयुध पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी होनी चाहिए। भारत इसकी मांग अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाएगा। भारत ने पाकिस्तान के साथ सभी तरह के व्यापारिक संबंध तोड़, सिंधु जल समझौते को निलंबित और उसके आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर उसे काफी कमजोर कर दिया है। अब उसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। अगर उसके परमाणु हथियारों पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी पर सहमति बनती है, तो पाकिस्तान पर दबाव और बड़ जाएगा। पाकिस्तान के परमाणु आयुध को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इसलिए कि वहां आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय मिलता है। वहां के खूंखार दहशतगर्द सेना व खुफिया एजेंसी के संरक्षण में रहते रहे हैं। ऐसे में यह खतरा लगातार बना रहता है कि उसके परमाणु हथियार अगर आतंकियों के हाथ लग गए, तो वे विनाश का कारण बन सकते हैं।
पहलगाम हमले की प्रतिक्रिया में पाक के साथ हुए सैन्य संघर्ष के बाद भारत ने अपनी रणनीति में तेज़ी से बदलाव किया है। आतंकवाद के खिलाफ सतत संघर्ष के लिए सुरक्षाबल तैनात हैं। शीर्ष नेतृत्व लगातार उन जगहों पर जाकर सेना का मनोबल बड़ा और पाकिस्तान के झूठे दावों का पर्दाफाश कर रहा है जिन पर पाकिस्तान ने हमले की बात कही थी। इसी क्रम में रक्षामंत्री श्रीनगर में सेना के जवानों से मिलने गए। भारत के साथ पाकिस्तान के तल्ख रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं पर दूसरे देशों में भी उसके आतंकियों की गतिविधियां उजागर हैं। इसलिए यह न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। भारत ने न सिर्फ उसके नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बना कर उन्हें ध्वस्त कर दिया, बल्कि इसके सबूत भी पूरी दुनिया के सामने पेश कर दिए कि वहां का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व विश्व आतंकवादी की सूची में शामिल संगठनों और आतंकियों के साथ खड़ा है। इतना कुछ हो जाने के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। कश्मीर के त्राल और केल्लर में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 6 आतंकियों का मारा जाना इस बात का सबूत है कि अब भी वह घाटी में दहशतगर्दी को बढ़ावा दे रहा है। मगर विचित्र है कि पाकिस्तान के खिलाफ इतने सबूत होने और उसके लगातार आतंकवाद को पोसने के प्रमाण मिलते रहने के बावजूद चीन और तुर्किए जैसे कुछ देश उसका खुला समर्थन कर रहे हैं। इन दोनों देशों के पाकिस्तान से अपने स्वार्थ जुड़े हैं पर दूसरे देशों से उसकी हकीकत छिपी नहीं है। अगर भारत गंभीरता से उसके परमाणु हथियारों का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाता और कूटनीतिक प्रयासों से इस पर वैश्विक सहमति बनाने में कामयाब हो पाता है, तो नि:संदेह इसकी बड़ी कामयाबी होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदमपुर के दौरे ने, जो सीमा से 100 किलोमीटर दूर और भारत के रूस-निर्मित एस-400 हवाई रक्षा प्रणाली का ठिकाना भी है, पाक का यह दावा खारिज किया कि इस बेस को हालिया सैन्य टकराव में नुकसान पहुंचाया गया। इसके बावजूद रणनीति को लोकप्रिय नारेबाज़ी व प्राइम-टाइम के टीआरपी युद्धों से अछूता रखने की ज़रूरत है। भारत के ज्यादा बड़े हित दांव पर हैं और उन्हें पाकिस्तान के आतंकवादियों के इरादों, जो बेशक अस्वीकार्य हैं, का बंधक नहीं बनने देना चाहिए। खामोश कूटनीति और गुप्त कार्रवाईयां टीआरपी मीडिया युद्धों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती हैं लेकिन देश के रणनीतिक हितों की प्राप्ति में ये बेहद उपयोगी हो सकती हैं। हालांकि भारत को पाकिस्तान की परमाणु धमकियों से विचलित नहीं होना चाहिए, लेकिन अब समय आ गया है कि भारत अन्य साझेदार देशों के साथ मिलकर परमाणु हथियारों के जोखिमों पर नयी वैश्विक बातचीत शुरू करने के लिए पहल करे। परमाणु संघर्ष के खतरे इतने ज्यादा गंभीर हैं कि उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता और यह भारत व दुनिया के भीतर चर्चाओं के संज्ञान में होना चाहिए।