प्रतिनिधिमंडलों का प्रभाव
पहलगाम में हुए दु:खद घटनाक्रम के बाद जिस तरह से देश भावुक तौर पर इकट्ठा हुआ है, वह अपने आप में एक मिसाल है। लगभग सभी विपक्षी दलों ने इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सरकार के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता दिखाई है। इस संदर्भ में विपक्षी दलों के नेताओं के साथ हुई केन्द्रीय मंत्रियों की बैठकों को भी देखा जा सकता है। विपक्षी दलों के नेताओं ने इनमें प्रधानमंत्री के अनुपस्थित होने पर एतराज ज़रूर उठाया था। हम इस एतराज़ को बिल्कुल सही समझते हैं। यदि श्री मोदी इन बैठकों में शामिल होते तो यह और भी प्रभावशाली बन जाती, परन्तु विपक्षी दलों ने इसके प्रति अच्छा प्रोत्साहन देकर एक सार्थक संदेश ही दिया था। उसके बाद दोनों देशों में चार दिन युद्ध चलता रहा।
भारत ने आतंकवादियों को कड़ा संदेश देने के लिए निश्चित लक्ष्यों पर बड़ी कार्रवाई की, जिसमें वहां जानी नुकसान होने के साथ-साथ आतंकी ठिकानों को भी तबाह कर दिया गया। पाकिस्तान को यह सीधी चुनौती और सख्त संदेश था कि आगामी समय में भारत पाकिस्तान द्वारा खेले जा रहे इस छद्म युद्ध को सहन नहीं करेगा। सरकारी तौर पर भी यह बयान दिये गये कि अब आतंकवाद के प्रति भारत सख्त नीति अपनाएगा और इसको दुश्मन का हमला मानकर उचित जवाब देगा। इसके साथ-साथ यह भी संदेश दिया गया कि इस युद्ध को अब प्रत्येक रूप में और हर मुहाज़ पर लड़ा जाएगा।
इसी कड़ी में पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए अब सरकार द्वारा लगभग 32 अहम देशों में संसदीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया गया है। इसका उद्देश्य भी भारत की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ के बारे में विश्व को अवगत करवाना है और यह भी कि विगत लम्बे समय से पाकिस्तान किस तरह आतंकवादियों को आगे करके भारत के विरुद्ध छद्म रक्तिम युद्ध लड़ रहा है। इसलिए 7 साझे प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजने की घोषणा की गई है, जिनमें 7 से 8 प्रतिनिधि शामिल होंगे। उनमें अलग-अलग पार्टियों के सांसद तथा परिपक्व राजनीतिज्ञ भी शामिल होंगे। चाहे कांग्रेस द्वारा सुझाए गए नामों के अतिरिक्त तिरुवनंतमपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर को भी एक समिति के प्रमुख के रूप में शामिल करने पर कांग्रेस ने आपत्ति की है और इस पूरी कवायद बारे उनकी कुछ आलोचना भी सामने आई है, परन्तु इसके बावजूद भाजपा के अतिरिक्त कांग्रेस, जनता दल (यू), डी.एम.के., राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा शिवसेना (शिंदे गुट) आदि को प्रतिनिधिमंडलों में शामिल किया जाना इन प्रतिनिधिमंडलों के प्रभाव को और बढ़ाने में ही सहायक होगा।
आज विश्व भर के देश पाकिस्तान की स्थिति से अवगत हैं। इसलिए भारत के प्रतिनिधिमंडलों द्वारा अलग-अलग देशों के प्रतिनिधियों के साथ इस अहम मुद्दे पर विचार-विमर्श करने से भारत की स्थिति और भी स्पष्ट हो सकेगी। कुछ एक-दो देशों को छोड़ कर आज पाकिस्तान के साथ अन्य कोई ज़्यादा देश खड़े दिखाई नहीं देते, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में उसकी स्थिति और भी कमज़ोर हो गई नज़र आती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द