आखिर कब तक पाकिस्तान को एकताबद्ध रखेगा इस्लामिक सीमेंट
पाकिस्तान का आरोप है कि भारत उसके भीतर चल रहे अलगाववादी आंदोलनों को न केवल उकसा रहा है, बल्कि उसके जासूस अपनी साजिशों से कई तरह की विघटनकारी परिस्थितियां पैदा कर रहे हैं। यह अलग बात है कि इस तरह के आरोपों का आज तक कोई प़ुख्ता प्रमाण नहीं दिया गया है। हालांकि इस तरह के इलज़ाम उल्टे पाकिस्तान की स्थापना के वैचारिक आधार पर ही सवालिया निशान लगा देते हैं। पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा भेजे गए आंतकवादियों के हाथों हुए निर्दोष पर्यटकों के रक्तपात के ठीक पहले वहां के थलसेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने अपने विवादित भाषण में इस वैचारिक आधार का खुलासा किया था। यह था दो राष्ट्रों का सिद्धांत यानी पाकिस्तान की इस्लामिक बुनियाद। क्या पाकिस्तान की इस्लामिक बुनियाद हिलने लगी है? पाकिस्तान भारत पर जिन बलूच, सिंधी और पख्तून राष्ट्रवादियों को भड़काने और मदद देने का आरोप लगा रहा है, वे भी तो मुसलमान हैं। उसे अपने आप से सवाल पूछना चाहिए कि यहां इस्लामिक भाईचारा काम क्यों नहीं कर रहा है। ध्यान रहे कि ये आंदोलन कोई नये नहीं हैं। मैं तो पचास साल पहले भी सिंध में चल रहे जिये सिंध आंदोलन का नाम सुना करता था। पाकिस्तानी सत्ता मुख्य रूप से पंजाबी हुक्मरानों, राजनेताओं, जनरलों, उनके पैरोकारों और उनके साथ गठजोड़ में शासन कर रही शक्तियों के हाथ में रहती है। पाकिस्तान की अन्य राष्ट्रीयताएं हमेशा उत्पीड़ित मानस के एहसास से गुज़रती रहती हैं। पाकिस्तान की राष्ट्रीय एकता जिस इस्लामिक सीमेंट से मज़बूत होनी चाहिए थी, वह उसे एकजुट रखने में पहले भी विफल हो चुका है।
पाकिस्तान 1971 में बांग्लादेश के रूप में एक बार विभाजित हो चुका है। पचास साल बाद उसके दूसरे विभाजन के अंदेशों को पूरी तरह से ़खारिज नहीं किया जा सकता। अगर पाकिस्तान इस बार टूटा तो कई टुकड़ों में बंट जाएगा। इस मसले में पहला सवाल यह है कि क्या पिछली बार हुए विभाजन का माडल फिर से दोहराया जा सकता है? पिछले माडल में तीन बातें ़खास थीं। भारत के सैनिक हस्तक्षेप ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। सत्तर के दशक में चल रहे शीतयुद्ध के हालात में अमरीका की पाकिस्तानपरस्ती को सोवियत संघ के भारत-समर्थन ने पूरी तरह से प्रभावहीन कर दिया था। और, उस समय का पाकिस्तान पहले से ही बेहद अस्वाभाविक दो दूरदराज़ भौगोलिक हिस्सों में बंटा हुआ था। पाकिस्तान के विभाजन का एक दूसरा संभावित माडल भी है जो वहां की भीतरी राजनीति की विकृतियों के कारण हो सकने वाले अंत: विस्फोटों से जुड़ा है। इन भीतरी विस्फोटों के अंदेशे सबसे पहले 2022 में प्रबलता से सामने आए थे, जब पाकिस्तान के एक बड़े नेता ने खुलेआम सिलसिलेवार बताया था कि पाकिस्तान अगर टूटेगा तो कैसे और क्यों टूटेगा। यह वक्तव्य इमरान खान का था, जो प्रधानमंत्री रह चुके थे और मांग कर रहे थे कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाये जाएं ताकि पाकिस्तान को टूट के ़खतरे से बचाया जा सके। मैं यहां इमरान का वह वक्तव्य बिना किसी तब्दीली के उद्धृत कर रहा हूँ ताकि उसके अर्थ और तासीर को ठीक से समझा जा सके।
इमरान ने कहा था कि अगर उनकी मांग न मानी गई तो देश में गृहयुद्ध छिड़ जाएगा : ‘ये जो बोतल से जिन्न निकला है, वो वापिस नहीं जाने वाला। हमें ये देखना है कि आईनी तौर पर हमें ये लोग उस तरफ जाने देंगे, या नहीं, वरना मुल्खाना जंगी की तरफ चला जाएगा .... अगर ये लोग कानूनी दरवाज़े बंद कर देंगे तो भाईचारा इन लोगों को स्वीकार ही नहीं करेगा। .... अगर इस्टेब्लिशमेंट सही फैसले नहीं करेगा, तो मैं आपको राइटिंग में देता हूँ कि ये भी तबाह होंगे, ़फौज सबसे पहले तबाह होगी, क्योंकि देश दिवालिया हो जाएगा, फिर देश किधर जाएगा? मैं आपको सीक्वेंस बता देता हूं। ये जबसे आये हैं रुपया गिर रहा है, स्टॉक मार्किट, चीज़ें महंगी, अगर हम डिफाल्ट कर जाते हैं तो सबसे बड़ा इदारा कौन सा है जो हिट होगा? पाकिस्तानी फौज। जब फौज हिट होगी तो उसके बाद हमारे से कंसेशन क्या ली जाएगी, जो कि यूक्रेन से ली गई है डिन्युकलराइज़ करने की। सबसे बड़ा मसला तो यह है कि हमारा वाहिद मुसलमान देश है जिसके पास परमाणु शक्ति है। वो चलाया गया तो क्या होगा? मैं आपको आज कहता हूँ कि पाकिस्तान के तीन हिस्से होंगे।’ यहां इमरान अलग सिंघ राष्ट्र, प़ख्तून राष्ट्र और बलूच राष्ट्र की तरफ इशारा करते सुनाई दे रहे हैं। बाकी रह जाएगा केवल पंजाब वाला पाकिस्तान। जिस समय का यह वक्तव्य है, उस समय सिंध में बार-बार कर्फ्यू लगाया जा रहा था। ़खैबरप़ख्तूनवा के नेता अपनी प्रादेशिक फौज के इस्लामाबाद के खिलाफ इस्तेमाल करने की धमकी दे रहे थे। बलूचिस्तान में हथियारबंद ब़ागी सेना पर हमले कर रहे थे।
आज इमरान खान जेल में हैं। उनकी पार्टी राजनीतिक रूप से तकरीबन निष्क्रिय कर दी गई है। शहबाज़ शरीफ फौज के प्यादे की तरह हुकूमत कर रहे हैं। इस बात को अमरीका जानता है और इसीलिए विदेश मंत्र मार्को रूबियो ने भारत से संघर्षविराम करवाने के लिए शरीफ से भी पहले जनरल आसिम मुनीर से बात की थी। अगर अमरीका ने मेहरबानी करके अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से करीब सवा दो अरब डालर न दिलवाये होते, तो वही डिफाल्ट वाली हालत बन जाती जिसका इमरान ने ज़िक्र किया था।
ज़ाहिर है कि पाकिस्तान को विभाजन से तीन त़ाकतें रोके हुए हैं। उसकी फौज, अमरीका और चीन। ़फौज ने वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया को स्थगित करके एक पूरी तरह से फर्जी राजनीतिक प्रक्रिया थोप कर रखी है। इमरान जेल में ज़रूर हैं, लेकिन वे पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। अगर आज ईमानदारी से चुनाव हो जाएं तो उन्हें इकतरफा जीत हासिल होगी। अमरीका पाकिस्तान की दरकती हुई अर्थव्यवस्था को किसी तरह से टिकाये हुए है। पाकिस्तान के ऊपर अनापशनाप विदेशी ऋण है, और उसका 5वां हिस्सा चीन का दिया हुआ है। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमरीका और उसके बराबर आने की कोशिश कर रहा चीन, दोनों ही चाहते हैं कि पाकिस्तान चार हिस्सों में टूट कर नष्ट न हो। वे चाहते हैं कि दक्षिण एशिया में भारत के उभार को रोकने के लिए पाकिस्तान उसकी टांग खींचने के लिए हमेशा बना रह। सोवियत संघ की नामौजूदगी पाकिस्तान को जीवनदान दे रही है। जो 50 साल पहले हुआ था, वह अब नहीं हो सकता। जो हो सकता है उसे फिलहाल अस्थायी रूप से रोक लिया गया है। लेकिन यह स्थिति देर तक नहीं चल सकती। अगर पाकिस्तान को स्थायी रूप से टिकना है तो वहां राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करनी होगी। चुनी हुई लोकप्रिय सरकार को बलूच, सिंध और प़ख्तून उपराष्ट्रीयता के नुमाइंदों को वार्ता की मेज़ पर बैठाना होगा। उन्हें सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वायतता देनी होगी। भारत ने 1947 के बंटवारे के बाद नागालैंड, मिज़ोरम, पंजाब, कश्मीर और शुरुआती दौर में तमिलनाडु की अलगावादी राजनीति को विभिन्न रणनीतियों का इस्तेमाल करके निष्प्रभावी किया, और अपनी राष्ट्रीय एकता की रक्षा करके दिखायी। अगर पाकिस्तानी चाहें तो इस मामले में भारत से सीख सकते हैं। पूरे देश का मुसलमान होना उनकी एकता की गारंटी न पहले कर पाया था, न अब कर सकता है।
लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।