नाकामी के बावजूद इसरो करेगा धमाकेदार वापसी

इसरो का वर्कहॉर्स राकेट पीएसएलवी बीच उड़ान में खराब हो गया और रविवार 18 मई, 2025 की सुबह को लांच मिशन के दौरान सैटेलाइट को उसकी ऑर्बिट में पहुंचाने में असफल रहा। यह दुर्लभ असफलता पिछले 8 वर्षों के दौरान पहली बार हुई है। हालांकि पीएसएलवी-सी61 बिना किसी देरी के लांच हुआ और अपने पहले दो चरणों में उसने मज़बूती से काम किया, लेकिन तीसरे चरण में ठोस मोटर के चैम्बर में आवश्यक दबाव न बन सका। इस व्यवधान ने 1,696.24 किलोग्राम के ईओएस-09 उपग्रह की प्रगति को रोक दिया, जिसे सभी मौसमों में दिन-रात पृथ्वी के अवलोकन के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह इसरो की 101वीं लांच थी, जिसका उद्देश्य उपग्रह को सूर्य-समकालिक कक्षा (एसएसओ) में पहुंचाना था, जोकि एक ग्रह के चारों ओर एक लगभग ध्रुवीय कक्षा है, जिसमें सैटेलाइट ग्रह के किसी भी बिंदु पर उसी स्थानीय औसत सौर समय पर गुज़रती है। 
पिछले 32 वर्षों के दौरान 63 उड़ानों में पीएसएलवी चार बार असफल हुआ है। पहली बार इस राकेट की 20 सितम्बर 1993 को पहली उड़ान पीएसएलवी-डीएल असफल रही। दूसरी बार 31 अगस्त, 2017 को पीएसएलवी-सी39 आईआरएनएसएस-1एच को हीट शील्ड में खराबी आने के कारण लांच न कर सकी थी। इन दोनों के बीच में एक अन्य मिशन पीएसएलवी-सी1 29 सितम्बर 1997 को आंशिक रूप से असफल रहा था, जब चौथे चरण में उचित प्रदर्शन न करने के कारण आईआरएस-1डी को उस कक्षा में न रखा जा सका था, जिसका इरादा था। पीएसएलवी-सी61 18 मई 2025 को सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लांच पैड से लिफ्ट ऑ़फ हुई। उड़ान के छह मिनट बाद ही राकेट अपनी राह से भटक गया। इसरो के प्रमुख वी. नारायणन के अनुसार दूसरे चरण तक राकेट का प्रदर्शन सामान्य था, लेकिन तीसरे चरण में ठोस मोटर सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है, उसके चैम्बर प्रेशर में कमी आ गई और मिशन पूर्ण न हो सका। पूरे प्रदर्शन की समीक्षा की जा रही है। साल 2025 में इसरो के लिए यह लगातार दूसरी नाकामी है। जनवरी में एनवीएस-02 नव सैट अपनी अंतिम कक्षा तक न पहुंच सकी थी। ईओएस-09 राडार इमेजिंग सैटेलाइट को 529-किमी कक्षा में पहुंचाने का इरादा था। इसमें सिंथेटिक अपर्चर राडार पेलोड था ताकि बादलों में से व रात को भी रिमोट सेंसिंग की जा सके, जिससे कृषि, वन, मिट्टी की नमी, आपदा प्रतिक्रिया व निगरानी को मॉनिटर किया जा सके। 
पीएसएलवी-सी61 63वीं पीएसएलवी उड़ान थी और अपने एक्सएल विन्यास में 27वीं, जिसे भारी पेलोड ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। पीएसएलवी ने 34 देशों के लिए 345 सैटेलाइट्स लांच की हैं और इसका प्रयोग इसरो के प्रमुख मिशनों में भी किया गया है जैसे चन्द्रयान-1, मार्स ऑर्बिटर मिशन व एस्ट्रोसैट। पीएसएलवी ने अक्तूबर 1994 में अपने पहले सफल मिशन के बाद से अपनी कोर टेक्नोलॉजी में कोई समस्या प्रदर्शित नहीं की है और इसलिए ही इसे इसरो के लांच वाहनों में शामिल किया गया और यह कमर्शियल व अंतर्राष्ट्रीय सैटेलाइट लांच करने के लिए प्रमुख व भरोसेमंद वाहन बन गया। लेकिन रविवार की इस ‘दुर्लभ असफलता’ के बाद इसकी नये सिरे से समीक्षा की जायेगी।
बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले तीन दशक से अधिक के दौरान अपनी 93.7 प्रतिशत सफलता दर के कारण इसरो के वर्कहॉर्स पीएसएलवी की लांचपैड पर जल्द व कामयाब वापसी होगी। पीएसएलवी ने मंगल व चांद तक उपग्रह पहुंचाने में मदद की है। इसने भारत के कमर्शियल स्पेस व्यापार को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है। इसकी सफलता दर विश्व में सर्वश्रेष्ठ का मुकाबला करती है या उनसे भी बेहतर है। यही वजह है कि पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल) को इसरो का ‘वर्कहॉर्स’ कहा जाता है। यह एक ऐसा राकेट है, जिसने निरंतर दोहरायी जाने वाली इस कहावत को नियमितता से गलत साबित किया है कि ‘राकेट विज्ञान कठिन है और राकेटो को गिरने की आदत होती है’। पीएसएलवी का असफल होना दुर्लभ है और उसके सिस्टम में सबसे मज़बूत ठोस मोटर में खराबी का आ जाना तो दुर्लभ में भी अतिदुर्लभ है। रविवार से पहले उसकी सफलता दर 95.2 प्रतिशत थी, जो अब गिरकर 93.7 प्रतिशत रह गई है, जोकि किसी भी अन्य राकेट से बेहतर है, जिसने पीएसएलवी जितने लांच अंजाम दिए हों। 
जैसा कि ऊपर बताया गया पीएसएलवी के 63 मिशन में एक आंशिक असफलता के साथ 4 नाकामी रही हैं। लेकिन स्पेस एक ऐसा क्षेत्र है, जो लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करता है और रविवार की नाकामी कितनी ही दुर्लभ क्यों न हो भारत के लिए धक्का है, जिसका प्रभाव आंकड़ों से अधिक हो सकता है। पीएसएलवी की बहुमुखी क्षमता (उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा, सूर्य-समकालिक कक्षा व भू-समकालिक कक्षा में पहुंचाना) भारत के महत्वाकांक्षी स्पेस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसरो ने पिछले तीन दशक से अधिक के समय में जो कुल लांच मिशन अंजाम दिए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा पीएसएलवी के ज़रिये अंजाम दिए गये हैं। पीएसएलवी भरोसेमंद है व इसमें लचीलापन भी है, जिसकी वजह से इसे ग्लोबल पहचान मिली है। इसने लगभग 400 कमर्शियल सैटेलाइट लांच की हैं, जिनमें से अधिकतर विदेशी पेलोड हैं, जिन्हें भारत ने लांच किया है। हालांकि हाल के दिनों में कुछ उपग्रह जीएसएलवी परिवार के राकेटो व एसएसएलवी से लांच किये गये हैं, लेकिन ग्लोबल स्पेस बाज़ार में भारत की पहचान भरोसेमंद पीएसएलवी की वजह से ही बनी है। गौरतलब है कि एसएसएलवी अभी अपने प्रारंभिक चरणों में ही है और जीएसएलवी व एलवीएम-3 का अभी कमर्शियल गति पकड़ना शेष है। इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि पीएसएलवी में जो कमी आयी है, उसे तुरंत दूर किया जाये। राकेट के तीसरे चरण में जो खराबी आयी उससे ईओएस-09 (रीसैट-1बी) उपग्रह का भी नुकसान हुआ, जोकि स्ट्रेटेजिक एप्लीकेशंस के लिए डिज़ाइन किया गया था। भारत की रक्षा व्यवस्था के लिए यह बड़ा नुकसान है। ईओएस-09 भारत की रिमोट सेंसिंग क्षमता को बढ़ा देता और विभिन्न एप्लीकेशंस के लिए डाटा उपलब्ध कराता, जिसमें रक्षा व सुरक्षा निगरानी भी शामिल थी। ध्यान रहे कि भारतीय सशस्त्र बल अब भी ऑपरेशंस के लिए विदेशी कमर्शियल स्पेस एसेट्स पर निर्भर करते हैं, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी देखा गया। हालांकि इतना तय है कि इसरो धमाकेदार वापसी करेगी और पीएसएलवी एक बार फिर उपग्रह खला (स्पेस) में भेजेगा।              
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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