अमरीकी टैरिफ पर भारी पड़ रही भारत की कूटनीति

अमरीका और भारत के बीच लम्बे समय से चले आ रहा टैरिफ युद्ध के बीच भारत ने जो कूटनीति की रणनीति अपनाई, उसका असर दिखने लगा है। दूसरी बार सत्ता में लौटने के बाद ट्रम्प का रुख पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक रहा है। टैरिफ उनका सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। कई बार उन्होंने विरोधियों के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया, जो शायद ही किसी और वैश्विक नेता से सुनी जाती हो। 
भारत भी उनकी इस आक्रामकता से अछूता नहीं रहा। कभी वह पाकिस्तान के साथ खड़े नज़र आए, तो कभी भारत के खिलाफ सख्त बयान दिए, लेकिन दिलचस्प यह रहा कि भारत ने ज्यादातर मौकों पर संयमित चुप्पी साधी। जब ज़रूरत हुई, तभी संतुलित जवाब दिया। शायद इसकी वजह है कि ट्रम्प सुबह कुछ कहते और शाम को कुछ और, ऐसे में भारत ने हर बार प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत नहीं समझी। इसी कूटनीति और संयम के चलते अमरीकी राष्टपति की धमकी को दरकिनार करते हुए भारत ने रूस से तेल खरीदने का फैसला जारी रखा। इसका परिणाम यह रहा कि रूस के राष्टपति ने भारत के प्रधानमंत्री की अडिगता की कई जगह सार्वजनिक तारीफ की है। गत दिवस रूस के सोची शहर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर आधिक टैरिफ वैश्विक कीमतों में वृद्धि करेंगे और अमरीकी फेडरल रिज़र्व को ब्याज दरें ऊंची रखने के लिए मज़बूर करेंगे, जिससे अमरीकी आर्थिक विकास धीमा हो जाएगा। एक अन्य बयान में  रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि भारत के खिलाफ अमरीकी टैरिफ विफल होंगे। यूरोप के विपरीत, भारत और चीन ऐसे देश हैं जो खुद का सम्मान करते हैं। भारत खुद को कभी अपमानित नहीं होने देगा। पुतिन ने आगे इस बात पर ज़ोर दिया कि रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद सकारात्मक आर्थिक विकास को बनाए रखने का लक्ष्य रखता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना मित्र बताते हुए कहा कि वह उनके साथ भरोसेमंद संबंधों को लेकर सहज महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए रूस भारत से अधिक कृषि उत्पाद और दवाइयां खरीद सकता है। पुतिन ने कहा, ‘भारत से अधिक कृषि उत्पाद खरीदे जा सकते हैं। औषधीय उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स के लिए हमारी ओर से कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। यही नहीं दिसम्बर में उनके भारत आने तथा भारत हित में कई बड़े फैसले लेने से अमरीकी राष्टपति का परेशान होना तय है। 
सवाल है कि क्या अमरीका की ओर से पहले पच्चीस और फिर पचास फीसदी तक शुल्क लगाने की घोषणा का कारण यह था कि व्यापार वार्ता में भारत को अपनी शर्तों पर सहमत किया जाए। यह बेवजह नहीं है कि भारत ने अमरीका के इस रवैये के सामने समर्पण करने के बजाय सख्त विकल्प चुना और अब इसके नतीजे सामने आने लगे हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सरकार को निर्देश दिया कि वह कच्चे तेल के भारी आयात की वजह से भारत के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए तत्काल उपाय करे। अमल के स्तर पर यह फैसला भारत से अधिक कृषि उत्पाद और दवाओं की खरीद के स्तर पर सामने आ सकता है। 
यह विचित्र है कि अमरीका ने इस मसले पर सहयोग और साझेदारी को केंद्र में रख कर नए विकल्प तलाशने, द्विपक्षीय हित और सम्मान आधारित आर्थिक संबंध पर विचार करने का रास्ता अख्तियार की बजाय दबाव की रणनीति का सहारा लिया। तेज़ी से बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अमरीका के हर फैसले को मानने की बजाय भारत के लिए अपने हित को प्राथमिकता देना ज्यादा ज़रूरी है। ज़ाहिर है, भारत की यह दृढ़ता रूस की नज़र में महत्वपूर्ण होगी और इसीलिए उसने व्यापार संतुलन कायम करने की पृष्ठभूमि में द्विपक्षीय संबंधों को नए सिरे से आकार देने की ओर कदम बढ़ाया है। भारत और रूस के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों का एक लम्बा दौर रहा है। विकट स्थितियों में भी दोनों देशों के बीच कभी कोई समस्या या तनावपूर्ण स्थिति नहीं आई, जिसमें किसी पक्ष के भीतर संबंधों को लेकर कोई दुविधा हुई हो, बल्कि कूटनीतिक से लेकर सांस्कृतिक या आर्थिक मोर्चे पर दोनों देशों ने एक-दूसरे की प्राथमिकताओं, ज़रूरत पर आधारित नीतिगत फैसलों की संवेदनशीलता का हमेशा ध्यान रखा और अपनी सीमा के भीतर हर स्तर पर सहयोग किया। 
अमरीका की ओर से दबाव बनाए जाने के बावजूद रूस से कच्चे तेल के आयात को भारत द्वारा बंद न किया जाना अमरीका को सीधा जवाब था। रूस ने भारत के इस फैसले की अहमियत को समझा है और व्यापार संतुलन के लिए पुतिन के निर्देश को इसका संकेत माना जा सकता है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक सहयोग के नए अध्याय शुरू होंगे। कुल मिलाकर लबोलुआब यह कि भारत किसी भी दशा में बेवजह किसी देश के सामने झुकने वाला नहीं बल्कि वह अब डट कर मुकाबला करने वाला है।

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