आश्चर्यजनक है चीन का विकास

भारत वासी जब ऐसा सोचते और कहते हैं कि चीन हमारा शत्रु है या फिर पाकिस्तान के साथ खड़ा होता और उसकी मदद करता है तो बहुत-से भारतीय न तो चीन जाना चाहते हैं और न ही उसे अहमियत देते हैं। चीन 40-50 वर्षों में इतना शक्तिशाली हो चुका है कि अमरीका तक को चुनौती दे रहा है। हमारी और उसकी अर्थव्यवस्था में अंतर इस बात की पुष्टि करता है कि संसार में योग्यता और कर्मठता से ही शक्तिशाली बन सकते हैं। 
चीन की यात्रा : इसे देखने और समझने के इरादे से चीन जाने का विचार बना और वहां जाकर जो देखा और लोगों से बातचीत की तो चीन के बारे में विचार बदलने लगे। इसलिए नहीं कि वह विश्व में तेज़ी से उभर रहा है, बल्कि इसलिए कि इसके कारण सामान्य हैं न कि विशेष, तो बात यह है कि कोई भी देश तरक्की तब करता है जब उसकी इच्छाशक्ति प्रबल और नेतृत्व में क्षमता हो। 
शंघाई पहुंचते ही बदलाव का एहसास होने लगा था। सड़कों का जाल, हमारे लगभग दो लाख पुलों के मुकाबले वहां दस लाख से अधिक होना, साफ-सफाई, शानदार घर, बहुमंज़िला इमारतों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त फ्लैट और इनमे रहने वाले लोग, मेट्रो और बुलेटिन ट्रेन एक अलग दुनिया का आभास दे रहे थे। हालाकि शंघाई की तर्ज पर मुम्बई सहित अनेक भारतीय शहरों को बनाने की बात अक्सर सुनाई देती रहती है लेकिन उसमें सफलता नहीं मिलती। यहां जीवन इतना आसान कि शहर देखते ही बनता है। 
सप्ताह के सातों दिन काम होता है लेकिन एक से आठ अक्तूबर तक सभी दफ्तरों की छुट्टी रहती है। इन दिनों सड़कें खाली-सी लगती हैं। इसके बाद वही भागमभाग और भीड़भाड़ देखने की मिलती है। हमारे साथ जो गाइड महिला थीं उन्होंने कुछ ऐसी बाते बतायीं जो आश्चर्यचकित करने जैसी थीं। 
चीन क्यों आगे है : उदाहरण के लिए एक मेट्रो स्टेशन को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करना था। हमारे देश में यह काम असंभव या अनेक वर्षों में किया जाने वाला हो सकता है लेकिन यहां केवल दो दिन यानी 48 घंटे और पंद्रह सौ कर्मचारियों ने यह काम पूरा कर दिया। इसी तरह वांग कियोंग शहर में एक रिहाइशी बस्ती के बीच से मेट्रो ट्रेन ले जानी थी और स्टेशन बनाना था। इसके लिए दो मंज़िलों पर रहने वालों से घर खाली करवाए और स्टेशन बना दिया। प्रश्न था कि मकानों के बीच से ट्रेन निकलने का मतलब निवासियों के लिए हर वक्त घरों के हिलने से सभी के जीवन में एक नई मुसीबत का होना था। उसके लिए रिहायशी बस्ती की नींव से पिलर या खंभे अलग उठाये गए और ट्रेन के लिए अलग जिससे ट्रेन बड़े मज़े से किसी को परेशान किए बिना सैंकड़ों बार आती जाती है। यह पर्यटन की जगह और शॉपिंग सेंटर बन गया है। यह काम बहुत कम समय में पूरा हो गया। 
सरकार ने तीस साल पहले लोगों के लिए घर बनाने का फैसला किया तो आज यहां कोई बेघर नहीं। पक्के और विभिन्न साइज के तथा हैसियत और ज़रूरत के अनुसार हरेक का अपना घर है। यहां कोई बेरोज़गार नहीं है बल्कि कामगारों की कमी है। तरक्की के अवसर बहुत ज़्यादा होने से पद खाली होते रहते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आई.टी. जैसे क्षेत्रों में इतनी मांग है कि भारत सहित अनेक देशों के प्रतिभाशाली युवक यहां आ रहे हैं। एक बच्चे के पैदा करने की नीति को तीन बच्चों तक करना पड़ा ताकि देश को कर्मचारी बराबर मिलते रहें। तीन बच्चे होने से परिवार बढ़ा तो साथ में भी रहते हैं और अपने अलग अलग घरों में भी। भिखारी नहीं हैं, काम करना ज़रूरी है। सभी सुविधाएं सरकार देती है तो शिक्षा और योग्यता के आधार पर नौकरी मिल जाएगी और वेतन भी इतना कि अपने स्टेटस के अनुसार जीवन यापन कर सकते हैं। 
यहां कोई भी कहीं भी पुरुष हो या महिला किसी संकोच या चोरी-चकारी के डर के बिना किसी भी समय आ जा सकता है। सामान कहीं भूल गए तो वह आप तक पुलिस पहुंचा देगी। यदि किसी परेशानी में आप फंस गए हैं तो इमरजेंसी नंबर पर कॉल करने पर तीन मिनट में पुलिस हाज़िर और अगर देर हुई तो पुलिस पर कार्रवाई निश्चित है। प्रशासन ने सभी जगह सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं और हरेक व्यक्ति की पहचान की गई है और उस पर हर वक्त नज़र रखी जाती है। देश के खिलाफ बोलना या चर्चा करना मुसीबत बन सकता है। आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से देश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। यह देश कुछ भी, कैसा भी, कहीं भी बना दे, इसके लिए असंभव नहीं और दुनिया में सब से आगे निकलना इसका मुख्य उद्देश्य है। यहां एक ही वस्तु सस्ती हो सकती है और बहुत महंगी भी, बस उसकी क्वालिटी अलग होती है, दुकानदार यह बात बता देता है और आप अपने हिसाब से ख़रीद सकते हैं। कुछ भी छिपा कर बेचना विक्रेता के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। मिलावट के लिए कड़ा कानून है। 
संस्कृति और इतिहास का शो : सन् 2016 से प्रतिदिन, केवल वार्षिक अवकाश को छोड़कर, रोमांस ऑफ द किंगडम शो का मंचन झोंग शिआन में हो रहा है जो अद्भुत है। थ्री डी होलोग्राफिक लेज़र प्रोजेक्शन कमाल का है। बारह सौ कलाकार और पचास घोड़ों द्वारा कलाबाज़ी, नृत्य, युद्ध कला से लेकर दर्शक दीर्घा को दूसरी जगह ले जाना और प्राचीन इतिहास का प्रदर्शन अनोखा है। इस शो को तैयार करने में आठ साल लगे और बहुत पसंदीदा कार्यक्रम है। 
भारत की तरह यहां भी साठ-सत्तर से अधिक उम्र की पीढ़ी जब आज बीस तीस साल के युवा वर्ग को पुरानी बातें याद दिलाती है तो ज़मीन आसमान का अंतर होता है। भारत में भी यह स्थिति आ रही है। हमारे यहां सबसे बड़ी परेशानी भ्रष्टाचार और रिश्वत है।  ये समस्याएं समाप्त हो जाएं तो भारत के चीन से आगे निकल जाने की प्रबल संभावना है। 

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