दवा उद्योग के लिए नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है ज़हरीला सिरप
सरकार का लक्ष्य 2030 तक अपने दवा बाज़ार को 130 अरब डॉलर से अधिक का बनाने का है। सरकार सक्रिय रूप से फार्मास्युटिकल अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दे रही है, जिसमें नवाचार के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना शामिल है, लेकिन यदि दवा कंपनियां इसी तरह दवा निर्माण के क्षेत्र में अपनी साख गिराती रहीं तो बेशक निर्यात घटेगा, यह लक्ष्य कैसे संभव होगा? साल 2022 में गैम्बिया में एक आयातित कफ सिरप पीने से वहां के 70 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी। इसकी वजह उसमें इंडस्ट्रियल ग्रेड के डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की भारी मात्रा थी। यह कफ सिरप एक भारतीय दवा कंपनी का बनाया हुआ था। दो साल पहले एक देशी कंपनी के बने सिरप के इस्तेमाल से जम्मू-कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी। सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा काफी ज्यादा थी। तब भारत सरकार ने डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल मिले कफ सिरप के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।
हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में जिस कफ सिरप के पीने से बच्चों की मौत हुई है, वह भी स्वदेशी है और बच्चों की मौत का कारण वही इंडस्ट्रियल ग्रेड का डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल है। मतलब यह कि तीन बरसों में कुछ बदला नहीं है। दवा के नाम पर दर्द बांटने का खुला खेल पहले की तरह बदस्तूर जारी है। गैम्बिया के बच्चों को मौत देने वाली हरियाणा की दवा कंपनी ने तब कहा था कि वह उत्पादन प्रक्रिया में ‘स्वास्थ्य अधिकारियों के प्रोटोकॉल का सही पालन कर रही थी’। उसने इस घटना पर हैरानी और गहरा दुख भी जताया था। परंतु जांच के दौरान दवा निर्माण प्रक्रिया में भयंकर अनियमितताएं पायी गईं। इसके बावजूद कंपनी को अस्थायी तौरपर मैन्युफ्रैक्चरिंग रोक का दंड देकर छोड़ दिया गया।
दवा बनाने के नियंत्रण में इसी ढिलाई के चलते आज भारतीय बाज़ार में बिकने वाले दवा उत्पादों में से 20 फीसदी से अधिक नकली हैं और लगभग इसी अनुपात में अमानक भी। 5 फीसदी जेनेरिक दवाएं बेकार बताई जाती हैं। कफ सिरप कांड के बाद केवल एक राज्य की फौरी जांच में पैरासिटामोल, ओआरएस घोल, सामान्य आई-ड्रॉप्स और फेसवॉश जैसी सैकड़ों सामान्य उपयोग की दवाएं संदूषित या अमानक पायी गईं। कुछ वर्ष पहले भारत के मात्र तीन राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए दवा नमूनों में से 7,500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गई थीं। बेशक हमारे पास अच्छी गुणवत्ता वाली सक्षम दवाएं निर्मित करने के सारे साधन, संसाधन, तकनीक और ज्ञान मौजूद हैं, लेकिन दवा निर्माता अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए उनमें मिलावट करते हैं, कभी-कभी इस हद तक कि दवा ज़हर बन जाती है।
टीका बनाने के मामले में दुनिया का यह अग्रणी देश ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहलाता है। देश में तीन हज़ार से अधिक दवा कंपनियां और लगभग 13,000 क्रियाशील दवा उत्पादन इकाइयां हैं। भारत 190 से अधिक देशों को दवाएं निर्यात करता है। वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं की 20 फीसदी से अधिक आपूर्ति हम ही करते हैं और 2030 तक अपने दवा बाज़ार को 130 अरब डॉलर से अधिक का बनाने का लक्ष्य भी रखते हैं। सरकार सक्रिय रूप से फार्मास्युटिकल अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दे रही है, जिसमें नवाचार के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना शामिल है, लेकिन यदि दवा कंपनियां इसी तरह दवा निर्माण के क्षेत्र में अपनी साख गिराती रहीं तो यह लक्ष्य कैसे संभव होगा? बिना इन पर नियंत्रण के बाकी उपलब्धियां बेमानी लगती हैं। हालिया घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि हमारी दवा नियंत्रण प्रणाली में गहरी खामियां हैं। यदि इन्हें समय रहते दुरुस्त नहीं किया गया तो कहीं भी अत्यंत दारुण स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दवा सीधे सेहत और जीवन से जुड़ी भरोसे की चीज़ है। यदि इसकी विश्वसनीयता यूं ही गिरती रही तो यह आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक तौर पर भी नुकसानदेह साबित होगी। घटना के बाद कुछ राज्यों ने संदिग्ध कफ सिरप पर रोक लगाई, तो कई प्रमुख राज्यों में दवा उत्पादों की सघन जांच शुरू हुई।
सच तो यह है कि हमें दवा से जुड़ी प्रणालियों को मज़बूत करने की ज़रूरत है। नकली, अमानक और मिलावटी जानलेवा दवाओं के लिए कड़े जुर्माने और सीधे जेल का प्रावधान होना चाहिए, न कि किसी ढील या माफी का। देश में आए दिन लाखों-करोड़ों की नकली दवाओं की बरामदगी होना और विदेश में भारतीय दवा उद्योग की हालिया बदनामी से उबरने तथा ‘दुनिया के दवाखाने’ की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हमें इस क्षेत्र में सख्त नियामकीय ढांचे का विकास करना होगा। भारत को सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लिए दवा उत्पादन प्रक्रिया और अंतिम उत्पाद की समान गुणवत्ता हेतु कड़ी नियंत्रण प्रणाली और संहिता अनिवार्य करनी होगी। दवा निर्माण और वितरण से जुड़े नियमों का पालन कराने की ज़िम्मेदारी जिस नौकरशाही पर है, वह अक्षम और भ्रष्ट न हो, इसकी निगरानी राज्य और केंद्र सरकारों दोनों को रखनी होगी।
सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है—दवा उद्योग को राहत देना और उसकी विश्वसनीयता बनाए रखना, साथ ही आम नागरिकों की सेहत और जान की सुरक्षा भी सुनिश्चित करना। ऐसे में सख्त नियमों के साथ प्रत्येक राज्य में आधुनिक प्रयोगशालाएं और त्वरित परीक्षण व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर