चुनावों के प्रति बढ़ता उत्साह
लोकसभा के 11 अप्रैल को हुए प्रथम चरण के मतदान में बड़ा उत्साह देखने को मिला था। हिंसा की घटनाएं भी ज्यादा नहीं हुई थीं। देश भर के अलग-अलग राज्यों में 91 सीटों पर हुए इन चुनावों में 66 प्रतिशत के लगभग मतदान हुआ था। चुनाव आयोग द्वारा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव करवाने की कवायद बेहद कठिन कार्य है, इसलिए इसे 7 चरणों में बांटा गया है। अब 18 अप्रैल को अलग-अलग राज्यों की 95 सीटों पर हुए मतदान के बाद 23 और 29 अप्रैल को तीसरे तथा चौथे चरण के मतदान करवाए जायेंगे। नि:संदेह वर्ष 1951-52 से शुरू हुए इन चुनावों ने बहुत लम्बा सफर तय किया है। सामने आती रही बहुत सारी कमियों के बावजूद लोगों का उत्साह बढ़ता रहा है। पहले लोकसभा चुनावों में 47 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट पड़े थे और वर्ष 2014 के चुनावों में मत प्रतिशत 66 प्रतिशत से अधिक रहा था। इस बार यह प्रतिशत और भी बढ़ने की सम्भावना बनी नज़र आती है। गत दशकों में क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है। आज भी अपने-अपने क्षेत्रों में इनका बोलबाला है और इनके बड़े प्रभाव से ही केन्द्र सरकार बनेगी, परन्तु इसके बावजूद भाजपा तथा कांग्रेस में ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। जहां उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का बड़ा प्रभाव है, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी का बोलबाला माना जाता है। देश की आज़ादी के बाद गरीबी के फैले जाल को काटा नहीं जा सका और समय बीतने से बेरोज़गारी और कृषि का संकट भी बढ़ता ही गया है। इस बार के चुनावों में इन मामलों के केन्द्र बिन्दु बनने की उम्मीद भी की जा रही थी। परन्तु जातिवादी और साम्प्रदायिक राजनीति को किसी न किसी रूप में अधिक उभारा गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान की धरती से चलते आ रहे आतंकवाद और इसके विरुद्ध भारतीय सेना की कार्रवाई को अधिक उछालने का प्रयास किया गया है। बालाकोट में किए गए हवाई हमले से भी सत्ता पक्ष ने अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयास किया है। पूर्व चुनावों में और हो रहे इन चुनावों में राजनीतिज्ञों द्वारा परिवारों के किए जाते संरक्षण का मुद्दा भी अधिक उभर कर सामने आया है। चुनाव आयोग द्वारा लाख प्रयास करने के बावजूद बड़े स्तर पर धन के इस्तेमाल को रोका नहीं जा सका, परन्तु इस सब कुछ के बावजूद दूसरे चरण में लोगों का वोट डालने के लिए बड़ा उत्साह अवश्य महसूस किया गया है। चाहे विभिन्न क्षेत्रों में मत प्रतिशत में बड़ा अन्तर भी देखा गया है। उदाहरण के तौर पर जहां मणिपुर में लगभग 78 प्रतिशत मतदान हुआ है, वहीं जम्मू-कश्मीर में मतदान के प्रतिशत में गिरावट आई है। नैशनल कान्फ्रैंस के नेता फारूख अब्दुल्ला श्रीनगर की सीट से खड़े हैं। वहां सिर्फ 14.08 प्रतिशत मतदान ही हुआ है। जबकि असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु तथा पुड्डूचेरी में यह प्रतिशत बढ़ा है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां नक्सलियों ने लोगों को वोट न डालने की धमकियां दी हुईं थी, जहां चुनावों से पूर्व और चुनावों के दौरान भी हिंसा की घटनाएं भी होती रही थीं, के बावजूद छत्तीसगढ़ में 72 प्रतिशत के लगभग मतदान होना एक बड़ी उम्मीद पैदा करता है। दो चरणों के मतदान के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि आगामी चरणों में भी मतदाताओं द्वारा ऐसा ही उत्साह दिखाया जाता रहेगा, जो स्वयं में लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाता है। इससे यह भी उम्मीद बंधती है कि निकट भविष्य में बनने वाली नई सरकार लोगों के प्रति समर्पित होकर कार्य करेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द