पंचायत चुनावों के लिए उत्साह

पंजाब में पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पूर्ण हो गई है। इन चुनावों से पहले इनके संबंध में अनिश्चितता बनी रही थी। मौजूदा सरकार की समय से पहले इन्हें भंग करने को लेकर कड़ी आलोचना हुई थी। बाद में अदालती हस्तक्षेप से उस फैसले को वापिस ले लिया गया था। उसके बाद हालात के दृष्टिगत प्रदेश सरकार चुनाव करवाने से हिचकिचाती दिखाई दी थी परन्तु बाद में दोबारा अदालती हस्तक्षेप के कारण सरकार को चुनाव करवाने की घोषणा करनी पड़ी। 30 वर्ष पूर्व प्राथमिक स्तर की लोकतांत्रिक इकाइयों पंचायतों के चुनावों एवं उन्हें अधिकार देने संबंधी संविधान के 73वें संशोधन के तहत कानून बनाया गया था। उससे पहले सरकार ने 1957 में बलवंत राय मेहता समिति की स्थापना की थी, जिसने तीन स्तरीय पंचायती राज की स्थापना करने की सिफारिश की थी। अब ये चुनाव गांव, ब्लाक एवं ज़िला स्तर और पंचायतों, पंचायत समितियों तथा ज़िला परिषदों के रूप में निर्धारित समय अनुसार होते हैं।
पंचायती राज की स्थापना निचले स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के लिए थी तथा इसके द्वारा प्राथमिक स्तर पर ही लोग अपने गांव एवं क्षेत्र के निश्चित विकास कार्यों में भाग ले सकते हैं, परन्तु जैसे आम तौर पर देखा जाता रहा है कि ज्यादातर ये चुनाव पार्टीबाज़ी, लड़ाई-झगड़े एवं दुश्मनियों का कारण ही बनते रहे हैं। ऐसे माहौल में पंचायती चुनावों की मूल भावना ही खत्म हो जाती है। प्रदेश सरकारों को इन चुनावों के प्रति एक उत्तम नीति बना कर एक त्योहार की भांति इनमें सभी लोगों को शामिल करवाने का यत्न करना चाहिए, परन्तु ज्यादातर प्रदेश सरकारें ऐसी गतिविधियों से अपना राजनीतिक लाभ लेने का यत्न करती हैं, जिससे गांवों के विकास पर प्रभाव पड़ता है। हम इस बात को बेहतर मानते हैं कि मौजूदा सरकार ने इन चुनावों में भिन्न-भिन्न पार्टियों के राजनीतिक चिन्हों का इस्तेमाल करने पर कानूनी तौर पर रोक लगा दी थी। ऐसी व्यवस्था के तहत हुए चुनावों के बेहतर परिणामों की उम्मीद होती है। पंचायत चुनावों की घोषणा के बाद प्रदेश भर में जिस तरह का माहौल बना रहा था तथा जिस तरह का भिन्न-भिन्न गुटों में आपसी तनाव पैदा हो रहा था, उसके दृष्टिगत चिन्ता पैदा हो रही थी। इन्हें लेकर ज्यादातर स्थानों पर झगड़े, पत्थरबाज़ी एवं हिंसा तक की घटनाएं भी घटित हुई थीं। विपक्षी पार्टियां प्रमाण सहित सरकार पर यह आरोप लगाती रहीं कि सरकार की शह पर सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों की ओर से चुनाव प्रक्रिया में किए जा रहे हस्तक्षेप को रोका जाये। इस संबंध में अदालतों में याचिकाएं भी दायर की गईं तथा राज्यपाल तक को भी ज्ञापन (मैमोरंडम) दिये जाते रहे थे। ज्यादातर पार्टियों की ऐसी शिकायतें अंत तक जारी रहीं।
फिर भी यह सन्तोषजनक बात ही कही जा सकती है कि शिकवे-शिकायतों के बावजूद ये चुनाव बड़ी सीमा तक अमन-शांति से पूर्ण हो गए हैं। इनके प्रति लोगों के बड़े वर्गों में विशेष उत्साह भी देखा गया है। खास तौर पर महिलाओं ने इन चुनावों में उत्साह के साथ बढ़-चढ़ कर योगदान डाला। इसके अतिरिक्त बहुत-से गांवों में ये चुनाव सर्वसम्मति से किए जाने के समाचार भी मिले हैं, जिसे हम रचनात्मक बात समझते हैं। इससे यह प्रभाव मिलता है कि यदि कम से कम इन प्राथमिक चुनावों के लिए समय का प्रशासन एवं पार्टियां अपने भीतर संकुचित सोच से ऊपर उठने की भावना पैदा कर सकें तो इससे एक अच्छा एवं उत्साह भरपूर माहौल बनाया जा सकता है, जो समूचे रूप में पंजाब की पारम्परिक एवं भाईचारक भावना को मज़बूत करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द