प्रवासी भारतीयों के लिए और मुश्किलें खड़ी करेंगे भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंध

भारत-कनाडा के तनाव के केन्द्र में सिर्फ सिख हैं, चाहे इसका प्रभाव कनाडा में रहते प्रत्येक भारतीय पर पड़ना आवश्यक है। इस समय कनाडा में एक अनुमान के अनुसार 20 लाख भारतीय हैं, जिनमें लगभग 6 लाख सिख भी हैं। यह अनुमान गैर-कानूनी प्रवासियों सहित है। दोनों देशों को एक-दूसरे के 6-6 डिप्लोमेटों (राजनयिकों) को एक प्रकार से देश-निकाला दे दिया है। यह ठीक है कि कनाडा तथा भारत में कभी भी पाकिस्तान तथा भारत की भांति सशस्त्र लड़ाई नहीं हो सकती, परन्तु ये हालात भारत-पाक संबंधों से अधिक बुरे होते दिखाई दे रहे हैं, जो सांस्कृतिक, व्यापारिक तथा अन्य संबंधों के लिए बड़े विनाशक सिद्ध हो सकते हैं। भारत ने जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को राजनीति से प्रेरित तथा वोट बैंक के लिए राजनीति हित साधने वाले कहा है। भारत ने तो यहां तक कह दिया है कि ट्रूडो सरकार अपने रजनीतिक हितों के लिए सिख समुदाय की ‘चापलूसी’ कर रही है। स्पष्ट है कि मामला मुख्य रूप में सिखों से जुड़ा हुआ है। यह सिखों की एक और काली सूची बनने की ओर भी बड़ा सकता है। यदि यह मामला अधिक बढ़ा तो यह सिख हितों के लिए घातक होगा, चाहे शेष भारतीयों को भी इसका नुकसान सहन करना पड़ेगा।
नि:संदेह यह समझा जाता है कि मामला खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या तथा कैनेडियन संसद में जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों से शुरू हुआ, परन्तु कनाडा में प्रसिद्ध पंजाबी पत्रकार जसवीर सिंह शमील की बी.बी.सी. के पास की गई टिप्पणी दृष्टिविगत नहीं की जा सकती कि कनाडा में विदेशी हस्तक्षेप बारे एक सार्वजनिक जांच चल रही है। इस संबंधी जांच आयोग के समक्ष जस्टिन ट्रूडो की पेशी है कि उन्होंने भारत सहित अन्य देशों के हस्तक्षेप को रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं? (नोट-बाद में हुई इस पेशी में जस्टिन ट्रूडो ने यह मान लिया है कि अभी तक कनाडा सरकार के पास निज्जर मामले में भारतीय हस्तक्षेप संबंधी ठोस सबूत नहीं हैं। इससे यह मामला और भी जटिल एवं अविश्वास वाला हो जाता है-सम्पादक)। दूसरी ओर कैनेडियन पुलिस ने बाकायदा रूप में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के संगठित अपराधों के मामलों से जोड़ते हुए भारतीय राजनयिकों की ओर अंगुली उठाई है। इसलिए यह कारण भी इस मामले के पुन: तूल पकड़ने का कारण बना दिखाई दे रहा है।
खैर, यदि मामला जल्दी न सुलझा तो इस बात की सम्भावना बहुत अधिक है कि कनाडा इस मामले को अपने समर्थक देशों के संगठन जिसे पहले ‘फाइव आईस’ कहा जाता था तथा अब यह ‘नाईन आईस’ बन चुका है। इस समूह में पहले 5 देश अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा कनाडा शामिल थे जबकि अब 4 और देश डैनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड तथा नार्वे भी शामिल हो चके हैं, जो अपनी गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं। कनाडा इन देशों को भी भारत के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कह सकता है। बेशक इस मामले पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक दृढ़ इरादे वाले प्रधानमंत्री हैं और वह शायद ही इसकी परवाह करें, परन्तु इससे यदि यह स्थिति बिगड़ती है तो इन देशों में रहते भारतीयों के लिए ज़रूर अनेक प्रकार की मुश्किलें अवश्य खड़ी हो सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ कनाडा, अमरीका, ब्रिटेन तथा आस्टे्रलिया में कानूनी तथा गैर-कानूनी मिला कर लगभग एक करोड़ भारतीय रहते हैं और इनमें लगभग 20 लाख सिख हैं। यह मामला अधिक बिगड़ा तो यह समूचे भारतीय समुदाय के लिए तथा विशेषकर सिख समुदाय के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी करेगा, परन्तु अफसोस की बात है कि भारतीय सिख नेताओं जिनमें धार्मिक नेतृत्व भी शामिल है, को आपसी लड़ाई से भी फुर्सत नहीं है। इसलिए हम अमरीका, कनाडा तथा ब्रिटेन जहां भारतीय तथा सिख बहुत अच्छी स्थिति में हैं और उनका वहां की राजनीति में भी अच्छा प्रभाव है, को कहना चाहते हैं कि वे प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रूडो तथा भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के बीच सेतु बनने का कार्य करें। इस उद्देश्य में धनाढ्य भारतीय तथा सिख, राजनीतिक नेता तथा कई बड़ी कम्पनियों में बड़े पदों पर बैठे सिख तथा भारतीय बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इस समय अमरीका तथा कनाडा में चुनावों का मौसम है और भारत-पक्षीय तथा सिख-पक्षीय लाबी भी इन देशों में काफी मज़बूत है। इस लिए ज़रूरी है कि इन देशों के समर्थ भारतीय तथा सिख भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने की ओर विशेष एवं समयानुकूल यत्न करें। वैसे कनाडा तथा अमरीका के चुनावों के बाद बनने वाली नई सरकारों का भारत के प्रति व्यवहार क्या होगा, यह भी इस मामले को सुलझाने या और उलझाने का कार्य करेगा। 
मैं नादानी पे अपनी आज तक हैरान हूं ‘दाना’
कि दुनिया को समझने की समझदारी नहीं आती।
-अब्बास दाना 
सिख कौम का गम्भीर होता संकट
़िखरद-मंदों से क्या पूछूं कि मेरी इब्तदा क्या है,
कि मैं इस फिक्र में रहता हूं, मेरी इन्तहा क्या है।
अल्लामा इकबाल का उपरोक्त शे’अर कि मैं अकलमंदों से अपनी शुरुआत के बारे में क्या पूछूं। मुझे तो अपने भविष्य की चिन्ता लगी हुई है। इस भांति ही मुझे जिस प्रकार के हालात में से इस समय सिख कौम गुज़र रही है, उसके भविष्य की चिन्ता खाये जा रही है। इस समय सिख कौम जिन हालात में से गुज़र रही है, ऐसे संगीन हालात शायद इतिहास के किसी भी दौर में नहीं आए। मिसलों के समय भी सिख चाहे एक दूसरी मिसल से लड़ते थे, परन्तु वे कौमी मुश्किल के समय दुश्मनी भुला कर साझे दुश्मन के खिलाफ एक हो जाते थे, परन्तु जो स्थिति इस समय है, वह अभी इतनी अस्पष्ट है कि सब कुछ दिखता हुआ भी नहीं दिखाई दे रहा। इसलिए यह मामला सबसे अधिक चिन्ताजनक होने के बावजूद अभी इस बारे विस्तार में लिखना न तो संभव प्रतीत होता है और न ही उचित। हालात किधर को जाएंगे, अभी स्पष्ट रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता। 
खैर, इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि हमारे सिखों के लिए श्री अकाल तख्त साहिब तथा अन्य तख्त साहिबान सर्वोच्च हैं। इसलिए हम समझते हैं कि जत्थेदार साहिबान को कौम को नेतृत्व करते समय इस मुश्किल समय में उन पर निजी सवाल खड़े करने वालों को दृष्टिविगत कर देना चाहिए। यदि सिंह साहिब प्रत्येक प्रश्न का उत्तर प्रैस में आकर देने लगे तो यह तख्त साहिबान के सम्मान एवं प्रतिष्ठा के अनुरूप उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि हम पांच तख्तों के जत्थेदारों को ही सर्वोच्च मानते हैं। धार्मिक मामलों में वे हमारे सुप्रीम कोर्ट के जज भी हैं और हमारे ‘राष्ट्रपति’ भी हैं। कोई भी ‘राष्ट्रपति’ या सुप्रीम कोर्ट का जज कभी अपने फैसलों के बारे में उनकी व्याख्या प्रैस में आकर करने के लिए जवाबदेह नहीं होता। हां, जत्थेदारों से बड़ी संगत है। सिख संगत में संगत का रुतबा तो गुरु साहिबान से भी बड़ा माना गया है, परन्तु जत्थेदार साहिब को किसी व्यक्ति की ओर से लगाए गये निजी आरोपों के प्रति जवाबदेह होने की ज़रूरत नहीं। यहां यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि विरसा सिंह वल्टोहा के रवैये का समर्थक आम सिख नहीं हो सकता। उल्लेखनीय है कि इस समय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी की यह आशंका दृष्टिविगत नहीं की जा सकती कि तख्त श्री हुज़ूर साहिब से लेकर तख्त श्री पटना साहिब, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी तथा हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी और लगभग प्रत्येक स्थान पर भाजपा समर्थित काबिज़ हो चुके हैं, परन्तु अब तक अकाली दल भी तो भाजपा के नियंत्रण में ही रहा? बेशक भाजपा से सचेत होने की ज़रूरत है, परन्तु इसका अर्थ यह हरगिज़ नहीं कि शिरोमणि कमेटी या अकाली दल को यह अधिकार है कि वह मर्यादा का उल्लंघन करे या वह सिख कौम के प्रति अपने किये कार्यों के लिए जवाबदेह न हो, परन्तु अकाली दल के विरेधी भी दूध के धुले नहीं। बहुत-से तो उस समय प्रत्येक फैसले के साथ ही खड़े दिखाई देते रहे हैं। 
परन्तु जिस प्रकार हम एक-दूसरे के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं, वह अपनी कमीज़ उठा कर अपना ही पेट दिखाने वाली बात है। इसलिए सभी पक्षों को निवेदन है कि वे सिख कौम के सामने पेश मामले पर बनायबाज़ी बंद करें तथा इस मामले को संबंधित पक्षों को बुला कर कोई सर्व-स्वीकार्य मार्ग ढूंढने की कोशिश करें। इसलिए श्री अकाल तख्त साहिब तथा शेष तख्त साहिबान के सभी पांच जत्थेदार आपस में विचार करें। हां, यह भी ठीक है कि मामला सुखबीर सिंह बादल के मामले में फैसला देने में हुई देरी के कारण ही विगड़ा है। वैसे कोई भी अदालत जब फैसला देर से लेती है, तो उसे ठीक नहीं माना जाता। इस स्थिति का एक और पक्ष यह है कि अकाली दल (बादल) शायद पंजाब विधानसभा के आगामी उप-चुनावों में उम्मीदवार खड़े करने से मुंह मोड़ने से भी मजबूर हो जाए। इस दौरान शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष द्वारा जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का त्याग-पत्र स्वीकार न करना एक अच्छी बात है। इस स्थिति में अल्लामा इकबाल का एक शे’अर ‘वतन की ़िफक्र’ के स्थान पर ‘तू ़िफक्र-ए-कौम’ लफ्ज़ इस्तेमाल करके पेश करने से रहा नहीं जा रहा : 
तू ़िफक्र-ए-कौम कर नादां, 
मुसीबत आने वाली है, 
तेरी बर्बादियों के, 
मशविरे हैं आसमानों में।
-मो. 92168-60000