अपनी हार के लिए खुद भी ज़िम्मेदार है कांग्रेस

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के आए परिणामों के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी में जश्न का माहौल है, वहीं कांग्रेस पार्टी और उसके साथ ही इंडिया गठबंधन में निराशा का आलम है। इसका बड़ा कारण यह है कि बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के सामने आए परिणाम, जिनमें भाजपा 240 सीटों तक सिकुड़ गई थी और अपने तौर पर बहुमत हासिल करने में असफल रही थी, के बाद ये भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी थीं कि भाजपा का ग्राफ अब नीचे की तरफ जा रहा है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों संबंधी भी राजनीतिक विश्लेषकों और यहां तक कि चुनाव सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों ने भी ये अंदाजे लगाए थे कि दोनों उपरोक्त राज्यों में भाजपा की कारगुजारी अच्छी नहीं रहेगी। हरियाणा के बारे में तो बहुत ही बेबाकी के साथ यह कहा जा रहा था कि इस बार राज्य में कांग्रेस की ही सरकार बनेगी, लेकिन हुआ यह है कि हरियाणा में भाजपा पिछले 10 वर्ष के सत्तारूढ़ रुझान के बावजूद 90 में से 48 सीटें जीतकर तीसरी बार सरकार बनाने में सफल हो गई है, जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस सिर्फ 37 सीटें ही जीत सकी है। यदि जम्मू-कश्मीर के परिणामों की बात करें तो वहां पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं और इस बार वह 29 सीटें जीतने में कामयाब हुई है। चाहे वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई लेकिन फिर भी उसकी पहले से 4 सीटें बढ़ी हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनावों में 12 सीटें जीती थीं। इस बार वह सिर्फ 6 सीटें ही जीत सकी है। नेशनल कांफ्रैंस ने बड़ी जीत हासिल करके 42 सीटें जीती हैं। कुल मिलाकर भाजपा के लिए उपरोक्त दोनों राज्यों के चुनाव ज्यादा बुरे नहीं रहे।
यदि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के सामने आए परिणामों की गहराई में विश्लेषण करें तो इन दोनों राज्यों के चुनावों में कांग्रेस की कारगुजारी कोई अधिक अच्छी नहीं रही। कांग्रेस के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि हरियाणा में बड़ी हद तक वह अपनी हार के लिए खुद भी ज़िम्मेदार रही है। कांग्रेस हाईकमान प्रभावशाली ढंग से हरियाणा के चुनावों पर नज़र नहीं रख सका। कुछ कांग्रेसी नेताओं का यह भी आरोप है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, जिनकी कांग्रेस हाईकमान द्वारा हरियाणा में कांग्रेस के चुनाव प्रचार पर नज़र रखने के लिए और क्षेत्रीय नेताओं के साथ तालमेल रखने की मुख्य ज़िम्मेदारी थी, वह तालमेल के लिए बहुत बार उपलब्ध ही नहीं होते थे। वैसे भी दक्षिणी भारत के होने के कारण उत्तर भारत के कांग्रेसी नेताओं के साथ उनका तालमेल ठीक नहीं बैठता। इसके अलावा हरियाणा में कांग्रेस के चुनाव इंचार्ज दीपक बाबरिया चुनावों के समय जब बीमार होकर अस्पताल पहुंच गये तो उनके स्थान पर किसी अन्य नेता की ज़िम्मेदारी नहीं लगाई गई। इससे भी आगे हरियाणा कांग्रेस पार्टी के प्रधान उदयभान सिंह खुद चुनाव लड़ रहे थे। इस कारण राज्य में समूचे कांग्रेस चुनाव प्रचार के लिए न ही वह समय निकाल सके और न ही अलग-अलग क्षेत्रों में उम्मीदवारों की किसी भी ढंग के साथ मदद कर सके। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भी बहुत देर के बाद ही हरियाणा में सक्रिय हुए। कांग्रेस की हार के लिए हरियाणा के स्थानीय नेताओं की आपसी फूट को भी बड़ी हद तक जिम्मेदार बताया जा रहा है। कांग्रेस हाईकमान ने चुनाव जीतने के लिए अधिक टेक भूपिन्द्र सिंह हुड्डा पर रखी हुई थी और उनकी सलाह को मानते हुए लगभग 70 टिकटें उनके समर्थकों को दी गई थीं। इसका कांग्रेस के दूसरे गुटों के नेताओं रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुमारी शैलजा पर उलटा असर पड़ा। शायद इसी कारण कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भूपिन्द्र सिंह हुड्डा बहुत से मंच साझे नहीं किए। कुमारी शैलजा तो कम से कम पहले 13 दिन तक कांग्रेस के चुनाव प्रचार में नज़र ही नहीं आई। कांग्रेस हाईकमान के कहने पर ही उसने पिछले दिनों में कुछ रैलियों में हिस्सा लिया। विधानसभा चुनाव लड़ने की उसको हाईकमान द्वारा इजाज़त न दिए जाने के कारण शुरू से ही उसने नाराज़गी भरे ब्यान देने शुरू कर दिये थे। वह मुख्यमंत्री के पद पर भी दावेदारी पेश करती रही। अंत: कहा जा सकता है कि हरियाणा में कांग्रेस के तीन बड़े नेता भूपिन्द्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला द्वारा आपस में अधिक तालमेल करके प्रभावशाली चुनाव मुहिम न चलाने के कारण भी कांग्रेस को बड़ा खमियाज़ा भुगतना पड़ा। कांग्रेस के उम्मीदवारों को कम से कम 16 सीटों पर कांग्रेस के ही ब़ागी उम्मीदवारों ने हराने का काम किया। कई सीटों पर तो कांग्रेस के एक उम्मीदवार के मुकाबले 2-2 ब़ागी उम्मीदवार खड़े थे। इन 16 सीटों पर कांग्रेस के ब़ागी उम्मीदवारों ने प्रति सीट जितनी-जितनी कुल वोटें प्राप्त कीं, उससे कहीं कम वोटों पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के उम्मीदवारों की हार हुई। यदि कांग्रेस के उम्मीदवारों के मुकाबले इतनी बड़ी संख्या में ब़ागी उम्मीदवार इन 16 सीटों पर खड़े न होते तो कांग्रेस ये सीटें जीत सकती थी।
इसी प्रकार आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस को हरियाणा में हराने में बड़ा रोल अदा किया। चाहे हरियाणा में आम आदमी पार्टी का कोई बड़ा सार्वजनिक आधार नहीं था, फिर भी उसने सभी 89 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए और इन चुनावों से एकदम पहले केजरीवाल के जेल में से रिहा होने के कारण उसको अपनी चुनाव मुहिम बढ़ाने का पूरा-पूरा मौका भी मिला। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को 5 सीटें देने की पेशकश की थी, परन्तु वह 10 सीटें लेने पर अड़ी रही। चाहे केजरीवाल आम आदमी पार्टी के एक भी सीट न जिता सके, लेकिन उसकी पार्टी ने कांग्रेस को 17 सीटों से चुनाव ज़रूर हरा दिया। इन 17 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार प्रति सीट एक हज़ार से भी कम वोट से हारे हैं, जबकि इस कारण भाजपा को ये 17 सीटें जीतने में सफलता मिली। समूचे तौर पर आम आदमी पार्टी ने राज्य में सिर्फ 1.79 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। दूसरी तरफ भाजपा का चुनाव प्रचार नीचे तक कहीं अधिक प्रभावशाली था। पार्टी के हाईकमान तथा भाजपा के स्थानीय नेताओं के बीच पूरा-पूरा तालमेल था। उसने 48 सीटें जीतीं। 39.09 प्रतिशत वोट प्राप्त किए जबकि कांग्रेस ने 39.01 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। चाहे कांग्रेस और भाजपा के वोट प्रतिशत में सिर्फ एक प्रतिशत का फर्क रहा लेकिन भाजपा 11 अधिक सीटें जीतने में सफल रही। हरियाणा के अहीर इलाके ने भी कांग्रेस को हराने में बड़ा योगदान डाला। उस क्षेत्र की 11 सीटों में से कांग्रेस कोई भी सीट न जीत सकी। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस के क्षेत्रीय नेतृत्व और राष्ट्रीय नेतृत्व में उस क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं को उपयुक्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया जिसका परिणाम इस क्षेत्र में कांग्रेस की बुरी कारगुजारी के रूप में निकला।
कांग्रेस चाहे हरियाणा में अपनी हार के लिए ई.वी.एम. में गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहरा रही है। उसके द्वारा विशेष तौर पर यह मुद्दा उभारा गया है कि वोट गिनते समय 20 से 25 ऐसी ई.वी.एम. मशीनें थीं, जिनकी बैटरियां 99 प्रतिशत तक चार्ज पाई गईं। कांग्रेस का मत है कि 5 अक्तूबर को मतदान के समय जब इन मशीनों का पूरा दिन उपयोग किया गया, तो इनकी इनकी बैटरियां 99 प्रतिशत तक चार्ज कैसे रही थीं, जबकि मतदान के बाद मशीनें सील कर दी जाती हैं? जबकि दूसरी मशीनों की बैटरियां 80 प्रतिशत से नीचे ही चार्ज पाई गई थीं। कांग्रेस का आरोप है कि जिन 20 से 25 मशीनों की बैटरियां 99 प्रतिशत चार्ज थीं, उनमें ही कांग्रेस की वोटें कम निकली हैं। इस संबंधी कांग्रेस ने चुनाव आयोग के पास लिखित रूप में शिकायत भी की है। इस चरण पर तो इस संबंधी कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन यह बात स्पष्ट रूप में सामने आ रही है कि अन्य तथ्यों से अलावा कांग्रेस हरियाणा में बड़ी हद तक अपनी हार के लिए खुद भी जिम्मेदार रही है। इन सभी पहलुओं का आने वाले समय में कांग्रेस को विश्लेषण करने की ज़रूरत होगी। (शेष कल)
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