भयावह हैं भुखमरी के वैश्विक आंकड़े

भुखमरी के आंकड़े न सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर में भयावह हैं। इस विषय पर हकीकत वाली तस्वीर निश्चित रूप से रोंगटे खड़ी कर देने वाली है। संसार में 11 में से एक व्यक्ति आज भी रात में भूखे पेट सोने को मजबूर है। दुनिया की 73 करोड़ आबादी अब भी रोज़ाना भूखे पेट हैं। इनमें वे देश भी शामिल हैं जो तरक्की की दिन रात डींगे हांगते हैं। बहरहाल, 2024 की भूख सूचकांक रिपोर्ट के बीच विश्व खाद्य दिवस को मनाना अपने-आप में बहुत मायने रखता है। मायने इसलिए ताकि भुखमरी संबंधी रिपोर्ट के बहाने आज भुखमरी जैसे गम्भीर विषय पर गंभीरता से विमर्श किया जा सकता है। संसार मेें 45 वर्षों से विश्व खाद्य दिवस मनाता आया है जिसकी शुरुआत वर्ष 1979 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की सालाना बैठक में सदस्य देशों की आम सहमति से 16 अक्तूबर को यह दिवस तय हुआ था। वह ऐसा वक्त था जब आधी दुनिया भूख से कराहने को मजबूर थी। दरअसल, उस समय करीब 45 देश ऐसे थे जो गुलामी की बेड़ियों से नए-नए आज़ाद हुए थे। तब उनके सामने जनता का पेट भरने की सबसे बड़ी चुनौती थी। क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे, सभी भूख-प्यास से बिलखते थे। हालांकि भारत को आज़ाद हुए तब कबीव तीन दशक हो चुके थे। बिगड़ी स्थिति को भारत में काबू कर लिया गया था। स्थित ऐसी बन गई थी कि भारत भुखमरी से प्रभावित अन्य देशों की सहायता भी करने लगा था। विश्व खाद्य दिवस अपने शुरूआती दिनों से ही बहुत खास दिन रहा है। खाद्य पदार्थों की कमी का आज भी कई देश सामना कर रहे हैं। मौजूदा वक्त में कई देशों में जंग चल रह हैं जिससे वहां की स्थिति भयावह बनी हुई है। 
गत सप्ताह आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट-2024 उन देशों को सतर्क करती है जिनकी स्थिति भूख को लेकर अब भी ज्यादा अच्छी नहीं बताई गई है। रिपोर्ट में भारत का स्थान 127 देशों में 105वां है। हालांकि पिछले सालों की तुलना में रैंक में मामूली-सा सुधार हुआ है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2023 में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर था। बावजूद इसके गंभीरता से मंथन करने की ज़रूरत है। रिपोर्ट का इशारा इस ओर भी है कि विभिन्न देशों की सरकारें निजी क्षेत्र, किसानों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज यह सुनिश्चित करें कि सभी लोगों को पर्याप्त विविध, पौष्टिक और सुरक्षित खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों। 
असमानता और गरीबी से निपटने, पौष्टिक भोजन विकल्प चुनने, भोजन की बर्बादी को कम करने और पर्यावरण की रक्षा करने में सभी की भूमिका होती है। भोजन की बर्बादी बड़ा मुद्दा उभर कर सामने आया है। इसे तत्काल प्रभाव से रोके जाने की ज़रूरत है। इसमें सिर्फ  सरकारें ही ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों की ज़रूरत है क्योंकि भोजन की उपलब्धता पर सभी का एक समान अधिकार होता है।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संदेह है कि क्या अगली पीढ़ी तक भुखमरी को मिटाने का लक्ष्य पूरा हो पाएगा या नहीं? दरअसल यह ऐसा यक्ष प्रश्न है जो सभी को सोचने पर मजबूर करता है। फिलहाल खाद्य दिवस भूख और खाद्य सुरक्षा से संबंधित कई अन्य संगठनों द्वारा व्यापक रूप से भी मनाया जाता है जिसमें विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन और कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष शामिल रहते हैं। खाद पदार्थों में अब मिलावट का होना कोई नई बात नहीं। दूषित खाने से लोगों का बीमार होना भी अब आम बात हो गई है। ऐसे लोग खाद्य संबंधी अधिकारों को इस्तेमाल करें, उसके लिए भी विश्व खाद्य दिवस सभी को प्रेरित करता है। सभी के लिए स्वस्थ आहार सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी आज प्रकाश डाला जाता है। 
जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है, कृषि उत्पादन को स्थायी रूप से बढ़ाने, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार करने, खाद्य हानि और बर्बादी को कम करने की ज़रूरत है। भूख से पीड़ित लोगों को पौष्टिक भोजन मिले, साथ ही अधिक प्रयास और नवाचार की ओर सभी सरकारों को अपना ध्यानाकर्षण करना होगा। इसके अलावा सामूहिक स्तर पर ऐसे वैश्विक प्रयास हों कि कोई भी व्यक्ति भूखा न सो पाए। हालाकि इन आंकड़ों में बीते दो वर्षों में सुधार हुआ है। केंद्र सरकार की मुफ्त अनाज वितरण योजना ने इन आंकड़ों को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस योजना को बीते सप्ताह 2028 तक जारी रखने का निर्णय लिया गया है। भुखमरी से लड़ाई लम्बी है, इसे कम करने के लिए समूचे संसार को ईमानदारी से प्रयास करने होंगे। (अदिति)