नाटो के बारे में जानना ज़रूरी

नाटो (नार्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) काफी शक्तिशाली गठबंधन है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रभावशाली भी माना जाता है। यह गैर-मामूली इसलिए है कि यह एक सैनिक संगठन है। संयुक्त राष्ट्र संघ से भी ज्यादा। संयुक्त राष्ट्र संघ जिस तरह विश्व भर में युद्ध रोकने और शांति स्थापित करने में असफल हो रहा है उससे उसको दंत विहीन भी कहा जाने लगा है, लेकिन यह संगठन (नाटो) यह मान कर चलता है कि इसके सदस्यों में से किसी पर भी कोई दूसरा देश हमला करता है तो इसे इसके सभी सदस्य राष्ट्रों पर हमला माना जाएगा और सभी सदस्य राष्ट्र मिलकर उसको जवाब देंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ के पास अपनी कोई सैनिक व्यवस्था नहीं है। शक्तिशाली देश यू.एन. की किसी बात को गम्भीरता से लें या न लें परन्तु नाटो एक सैनिक गठबंधन है। दोनों को एक पलड़े में नहीं रखा जा सकता। इसलिए इस गठबंधन की भाषा प्रेम भरी न होकर ललकार भरी होती है। कहने को यह संगठन डैमोक्रेसी का समर्थक है और किसी भी विवाद का शांतिपूर्ण हल चाहता है परन्तु अगर हल न निकलता हो तो उसके पास डील करने के लिए भारी सैनिक शक्ति है, जिसके  डर से हल अपने आप प्रस्तुत हो जाते हैं।
आपने अक्सर सुना ही होगा कि नाटो की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ की शक्ति का सामना करने के लिए ही हुई थी। जो लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कहेंगे कि यूरोपियन राष्ट्रों की अमरीका के साथ मिलकर सुरक्षा और राजनीतिक एकत्व ही इसका मूल उद्देश्य रहा है। शुरुआती दौर में इसके 12 राष्ट्र ही सदस्य थे, लेकिन अब 28 राष्ट्र इसके सदस्य बताये जाते हैं। इन राष्ट्रों की जनसंख्या 96 करोड़ बताई जाती है।  क्योंकि यह सैन्य संगठन है और सम्पन्न भी। विश्व भर में सैन्य संगठनों पर जितना खर्च होता है उसका 70 प्रतिशत इन्हीं राष्ट्रों में होता है। मई 1955 में जब पश्चिमी जर्मनी नाटो में शामिल हुआ तो सोवियत रूस ने इसके दस दिनों को भीतर ही एक समांतर सैन्य संगठन ‘वारसा पैक्ट’ खड़ा कर दिया था। वारसा पैक्ट में सोवियत यूनियन, हंगरी, चैकोस्लोवालिया, पोलैंड, बुलगारिया, रोमानिया, अलबानिया और पूर्व जर्मनी शामिल थे। शीत युद्ध के दिनों वारसा पैक्ट का उद्देश्य था कि नाटो राष्ट्रों के सैनिक गठबंधन से संतुलन स्थापित किया जाये। वारसा पैक्ट 1991 तक छत्तीस साल चला। इसी साल के अंत में सोवियत यूनियन में बिखराव की स्थिति देखी गई। 
आज जो रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है इसमें नाटो की भूमिका आपको साफ-साफ नज़र आएगी। रूस नहीं चाहता था कि यूक्रेन नाटो के समर्थन में जाये। अमरीका का यूक्रेन को समर्थन भी स्पष्ट होता चला गया।
11 सितम्बर, 2001 की घटना ऐतिहासिक सिद्ध हुई। अलकायदा ने वर्ल्ड ट्रेड सैंटर की दोनों गगनचुम्बी इमारतों को हवाई जहाज़ से टकरा कर ध्वस्त कर दिया। अमरीका का आग्रह था कि इसे नाटो राष्ट्रों पर हमला माना जाना चाहिए। नाटो ने अमरीकी सैन्य कार्यवाही के तत्वाधान में अ़फगानिस्तान पर हमला कर दिया। इस हमले के लिए पाकिस्तान की मदद ज़रूरी हो गई थी। जनरल परवेज़ मुशर्रफ की आत्मकथा को साक्षी माना जा सकता है। उसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति बुश का फोन आया जिसमें पूछा गया कि आप हमारे दोस्त हैं या दुश्मन और अगर आपने कहा कि हम तटस्थ हैं तो इसे दुश्मनी ही समझा जाएगा। अगर आप हमारे दुश्मन हुए तो पाकिस्तान को पाषाण युग में बदल कर रख देंगे। मुशर्रफ ने माना कि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था।