जान-लेवा बनती माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ने की होड़

माऊंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है, जिसकी ऊंचाई 8,850 मीटर है। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 से.मी. के हिसाब से बढ़ रही है। नेपाल में इसे स्थानीय लोग सागरमाथा अर्थात् ‘स्वर्ग का शीर्ष’ नाम से जानते हैं, जो नाम नेपाल के इतिहासविद बाबुराम आचार्य ने सन् 1930 के दशक में रखा था, आकाश का भाल। तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलंगमा अर्थात् पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता है। 1953 में सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग शेरपा के पहली बार माऊंट एवरेस्ट फतह करने के बाद पर्वतारोहण एक आकर्षण का केंद्र बन गया है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है माऊंट एवरेस्ट ,जहां चढ़ना कभी असम्भव सा माना जाता था परंतु मानव के जज्बे और हौसलों को ऊंची से ऊंची चोटी भी पस्त नहीं कर सकती। जिस चोटी पर मुश्किल से कुछ लोग चढ़ते थे आज वहीं और उसी एवरेस्ट की चोटी पर जबरदस्त जाम जैसे हालात हैं। हालांकि इसके कई कारण हैं जिनमें से मनुष्य की जोखिमों से खेलने की अभिलाषा एक है तो दूसरी तरफ एक होड़ है और एक भेड़चाल है कि सभी यहां चढ़ना चाहते हैं । दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ भी अब शहरों की सड़कों की तरह ट्रैफिक जाम से बच नहीं पा रहा। यहां पर भी ट्रैफिक जाम के चलते मौत होने लगी हैं। इस ट्रैफि क जाम से इस साल 11 पर्वतारोहियों की मौत हो गई है। इससे बचकर आई एक भारतीय पर्वतारोही ने बताया है कि ये जाम क्यों लग रहा है। इस ट्रैफिक जाम की वजह है खराब मौसम में पर्वतारोहियों का रास्ते में अटक जाना, लंबे समय तक ठंड में एक जगह खड़े रहना और ऑक्सीजन की कमी से पर्वतारोही मौत के शिकार हुए हैं। कई पर्वतारोहियों ने ये शिकायत भी की है कि उनके ऑक्सीजन के सिलेंडर चोरी तक हो जाते हैं। नेपाल की ओर से  चोटी के पहले का रास्ता बहुत संकरा है, जहां कतार लग जाती है। एक रस्सी पर ही सब लटके रहते हैं, इस पूरी चढ़ाई के दौरान जो सबसे कठिन है वह इसकी उतराई है। पर्वतारोही रॉल्स का कहना है कि उतरना काफी खतरनाक होता है। अधिकांश हादसे इसी दौरान होते हैं क्योंकि लंबी चढ़ाई के बाद ध्यान केंद्रित नहीं रह पाता। दिन-प्रतिदिन युवाओं में एवरेस्ट फतह करने का जुनून परवान चढ़ रहा है। अब बड़ी तादात में युवा यहां जाने को लेकर उत्साही हो रहे हैं। इसकी लोकप्रियता ही है कि एवरेस्ट जैसी जोखिम भरी जगह पर भी जाम दिख रहा है। 2016 में चोटी चढ़ चुकी  एक पर्वतारोही का कहना है कि नौसिखिए पर्वतारोहियों की वजह से ये जाम लग जाता है। नेपाल पर एक आरोप ये लगता है कि नेपाल की ओर से मिलने वाले पास चीन के मुकाबले ज्यादा संख्या में हैं। हालांकि नेपाल की ओर से इसका खंडन किया गया है। नेपाल सरकार ने सागर माथा पर जाने के लिए इस साल अभी तक 381 परमिट जारी किए हैं और अभी यह सीजन बाकी है। नेपाल के लिए यह शिखर काफी अरसे से डॉलर की खान बना हुआ है। एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों को 25,000 डॉलर (करीब 15 लाख से लेकर 25 लाख रुपए) फीस चुकानी पड़ती है और इस परमिट व्यवस्था में यह शर्त कहीं नहीं जुड़ी है कि आप में पर्वतारोहण की आधारभूत कुशलता है भी या नहीं। अब यह मांग भी उठने लगी है कि न्यूनतम योग्यता वालों को ही परमिट दिया जाए, लेकिन नेपाल सरकार अपनी यह कमाई भला क्यों खोना चाहेगी। वह भी तब, जब चीन कहीं कम फीस में ‘एवरेस्ट पर्यटन’ के नाम पर लोगों को बुलाने में लगा है। पर्वतारोहण के दौरान सबसे ज्यादा जो नजर रहती है वह मौसम पर ही रहती है। पर्वतारोही अच्छे मौसम का इंतजार करते हैं और यदि मौसम अनुकूल न हो तो इंतजार करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं है। कई बार खराब मौसम भी भीड़ का सबब बन जाती है। कुदरत ने पर्वतों की रचना इस तरह की थी कि वहां प्राणी कम रहें और हर तरफ  कुदरत ही कुदरत हो। मनुष्य और जीव जंतुओं के रहने को मैदानी इलाके और प्राणियों के अनुकूल ही जगह बनाई, पर मानव की चाह ऐसी कि कुदरत से भी छेड़छाड़ करने से पीछे नहीं हटता। एवरेस्ट पर इस संख्या में अगर इन्सान अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे तो प्रकृति का क्या होगा, क्या वो अपने मूल स्वरूप में रह पाएगी। क्या माऊंट एवरेस्ट पर सालों से मौजूद बर्फ  पिघलने नहीं लगेगी। वैश्विक तापमान का खतरा पहले ही कम नहीं है कि इस तरह हम उस खतरे को और भी बढ़ा रहे हैं। इस मामले में नेपाल सरकार को संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि चीन के मुकाबले नेपाल से ज्यादा परमिट दिए जाते हैं। हालांकि नेपाल ने इस आरोप को मानने से इन्कार किया है फिर भी मनुष्य जाति का भला हो सके इसके लिए कुछ सोचना ही होगा। ग्लोबल वार्मिंग के इस युग में पर्वत पर जाम की स्थिति वास्तव में सोचने को मजबूर करती है। इसे चेतावनी समझकर मिलकर इस ओर समझदारी और लोक कल्याण के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए, तभी मनुष्य जाति का भला होगा और प्रकृति से छेड़छाड़ न करके हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं। कुदरत के भी अपने नियम हैं और हमें चाहिए कि एक समझदार प्राणी होने के नाते महज अपने स्वार्थ और शौक के लिए कुदरत से खिलवाड़ न करें।