बनावटी सभ्याचार और सामाजिक कुरीतियों पर चोट है फिल्म ‘छड़ा’

जालन्धर, 21 जून (हरविंदर सिंह फुल्ल) : आई.टी. के युग और पैसे की चकाचौंध में पंजाबियों को भूलते जा रहे अपने अमीर सामाजिक सभ्याचार, बहम और भ्रम में ग्रस्त हो रहे लोगों और सामाजिक कुरीतियों पर चोट है। जालन्धर अमृतसर रोड स्थित सरब मल्टीप्लैक्स में प्रदर्शित फिल्म ‘छड़ा’ में दिखाया गया है कि एक ज़मीदार परिवार का 29 वर्ष का लड़का चढ़त सिंह (दिलजीत दुसांझ) है जो पढ़ लिख कर फोटोग्राफी का काम करता है और अक्सर ब्याह-शादियों में फोटोग्राफी के लिए जाने के लिए वह सपनों की दुनियां में जीता है पर है बड़ा बड़बोला। दूसरी और चंडीगढ़ की लड़की वंजली (नीरू बाजवा) है। जो वैडिंग प्लैनर का काम करती है और 31 वर्ष की कुंवारी लड़की है। एक शादी समारोह दौरान दोनों की मुलाकात होती है वंजली को देख कर चढ़त के दिल के तार हिलते हैं और वह भी ब्याह के बारे में सोचने लगता है। पर वंजली अपनी मज़बूरियों के कारण चढ़त से दूरी बनाये रखने में अपना भला समझती है क्योंकि उसके घर वालों को घर जवाई चाहिए। चढ़त सिंह वंजली की ओर से अरेंज किये ब्याह में बड़बोलेपन में ही शादियों में अपनाए जा रहे बनाबटी सभ्याचार और अन्य सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य करता है और शादियों में किये जाने वाले शगनों को सही रंगत देता है। पर इस सबकुछ के बावजूद उसको पता ही नहीं चलता कि उसकी अपनी उम्र बीत गई और वह छड़ा रह गया। वह बहमों, भ्रमों से दूर एक सच्चे इन्सान और रब की बात करता है। फिल्म में दिखाया गया है कि छड़े की जून कितनी बुरी होती है, उसको शादी करवाने के लिए कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं, छड़े की अपने ही घर में कितनी इज्जत रहती है, कि 29 वर्षीय छड़ा 31 वर्ष की कुंवारी लड़की को ब्याह लेता है कि नहीं यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलता है। लेखक और निर्देशक जगदीप संधू ने बहुत ही व्यंग्यमय ढंग से दहेज की लानत, घर जवाई और रिश्तों की अहमियत न समझने वालों पर करारी चोट की है। फिल्म में अनीता देवगन, परमिंदर गिल्ल, जगजीत संधू, रूपिंदर रूपी, हरदीप गिल्ल, मलकीत रौनी, सीमा कौशल, प्रिंस कंवलजीत सिंह और बनइन्द्रजीत सिंह बन्नी ने भी अपने किरदारों से पूरा-पूरा इन्साफ किया है। फिल्म हर वर्ग के दर्शकों का मनोरंजन करती है। फिल्म में हंसी कहानी में उपजती है और इसका संगीत दर्शकों को पसंद आता है। फिल्म साफ-सुथरी सभ्यक और मारधाड़ से रहित है।