दम तोड़ती स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस योजना

पंजाब की भगवंत मान सरकार के गठन के बाद से अब तक के लगभग दो वर्ष के कार्यकाल में उसकी अनेकानेक योजनाओं एवं क्रिया-कलापों के क्रियान्वयन के धरातल पर विफल होने की संख्या वाली गठरी में तब एक और विफलता की वृद्धि जुड़ गई जब इस सरकार की एक और महत्त्वपूर्ण स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस योजना की हवा उसके परिवहन और यातायात धरातल पर निकल गई। नि:संदेह यह योजना अपने प्रारम्भिक काल से ही अपनी विफलताओं के कारण आलोचनाओं के दायरे में रही है। ‘आप’ नीत भगवंत मान की सरकार की ओर से ऐमीनैंस स्कूलों वाली यह योजना प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने और इनकी कार्य-प्रणाली को निजी स्कूलों के शिक्षा-पाठ्यक्रम के समानांतर ले जाए जाने हेतु शुरू की गई थी। इस योजना का मंतव्य यह भी था कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों में से होनहार एवं प्रतिभाशाली बच्चों का चयन करके उन्हें शिक्षित एवं प्रशिक्षित अध्यापकों के संरक्षण और निर्देशन में उच्च-स्तरीय शिक्षा प्रदान कराई जाए ताकि वे भविष्य में देश और प्रदेश के अच्छे नागरिक बन सकें, और प्रदेश की उन्नति, विकास एवं बेहतरी में योगदान दे सकें। इस हेतु सरकार की ओर से जहां शिक्षकों की नई भर्ती के बड़े-बड़े दावे किये गये, वहीं इस हेतु करोड़ों रुपये विज्ञापनबाज़ी और प्रचार तंत्र पर खर्च कर दिये गये। इन स्कूलों में पढ़ाई कराने के लिए दूसरे स्कूलों का स्टाफ लिये जाने से, प्रदेश के शिक्षा ढांचे को जो नुक्सान हुआ, वो अलग से रहा। 
इस योजना के तहत बच्चों को घरों से स्कूल तक लाने-ले जाने हेतु बेहतर परिवहन व्यवस्था संचालित करने के दावे और वायदे भी बहुत किये गये थे, और इस हेतु अतिरिक्त धन की भारी व्यवस्था भी की गई, किन्तु इन स्कूलों की विधिवत शुरुआत के कुछ ही मास बाद, स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस की हवा इसी परिवहन मुद्दे पर सरे-राह निकल गई। नि:संदेह इस योजना को लेकर यह सरकार शुरू से ही विवादों और आलोचनाओं के केन्द्र में रही है। इन स्कूलों हेतु नये सैशन की घोषणा तो कर दी गई, किन्तु इनके लिए नये स्टाफ और नये भवनों की व्यवस्था नहीं की गई। इनके लिए शिक्षकों की व्यवस्था भी अधिकतर, इधर-उधर से लेकर की गई, और स्कूलों के पुराने भवनों में थोड़ी-बहुत रद्दो-ओ-बदल करके नई इमारतों का रूप दे दिया गया। कई इमारतों के द्वार पर तो रंग-रोगन-पुताई के बाद केवल नाम-पट्ट ही बदले गये। भीतर से सब कुछ वैसे ही बना रहा। इन स्कूलों की  विज्ञापनबाजी के दौरान बच्चों को लाने-ले जाने हेतु स्कूलों की अपनी परिवहन व्यवस्था होने का प्रचार भी बड़े ज़ोर-शोर से किया गया, किन्तु आज यह व्यवस्था पूर्णतया चरमरा कर रह गई है। इन स्कूलों के पास न तो आज अपनी परिवहन व्यवस्था है, और न ही पर्याप्त संख्या में बसों की खरीद की गई है। जहां कहीं बसें हैं भी, वहां चालकों और उप-चालकों की समुचित भर्ती नहीं हुई। जिन स्कूलों ने इस हेतु निजी बस-संचालकों से वाहनों का प्रबन्ध किया था, उनके लिए सरकार की ओर से अतिरिक्त राशि भी नहीं भेजी गई। इस कारण निजी बस मालिकों ने अपने वाहन वापिस बुला लिये हैं।
इस प्रकार मौजूदा ‘आप’ सरकार की ऐमीनैंस स्कूल योजना सफेद हाथी बन कर रह गई है। इस कारण बच्चों को उच्चतर योग्य बनाये जाने की अपेक्षा उनकी शिक्षा का भारी नुक्सान हो रहा है। नतीजतन इस योजना को लेकर सरकार को भी लेने के देने पड़ रहे हैं, और इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी शिक्षा-ग्रहण के बदले अपने समय की बड़ी कुर्बानी देनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में उनकी शिक्षा का स्तर और ऊंचा होने की बजाय नीचे की ओर जाने की आशंका बलवती हो गई है। स्थिति यह भी हो गई है कि मालवा के कई ज़िलों में इस योजना के तहत सहयोगी बने निजी वाहन-संचालकों को अपने वाहन बेचने तक के लिए विवश होना पड़ रहा है। हम समझते हैं कि सरकार स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस योजना की अनियोजित शुरुआत करके दुविधा की दल-दल में फंस गई है। 
सरकार के पास इस योजना के नवीनीकरण हेतु पर्याप्त पैसा नहीं है, और कज़र् की गठरी पहले से कई गुणा भारी होती चली गई है। ऐसी स्थिति में भगवंत मान की ‘आप’ सरकार की यह महती योजना पर्याप्त ईंधन के अभाव में, कितने कोस और चल सकेगी, यह अभी देखने वाली बात होगी।