मीटर नीति लटकने के कारण बढ़ रहा जल संकट

जालन्धर, 23 जून (शिव शर्मा): आगामी 15 से 20 वर्ष तक भूमिगत जल समाप्त होने बारे आ रही रिपोर्टों के बाद अब केन्द्र सहित राज्य सरकारों व आम लोगों की भी चिंता बढ़ने लगी है जिस कारण अब भूमिगत जल को बचाने के लिए केन्द्र, राज्य सरकाराें की गतिविधि बढ़ गई है परंतु साथ ही अब पानी के उपयोग का एक कारण राज्य में पानी के मीटरों का न लगना है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के निर्देशों पर कई वर्ष पहले स्थानीय निकाय विभाग ने पानी के मीटर लगाने की नीति तैयार कर ली थी परंतु इसके बावजूद इस नीति को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है। पानी के मीटर लगाने बारे हाईकोर्ट ने इसी कारण हिदायत दी थी कि ताकि लोगों से मीटरों की खपत मुताबिक ही पानी बिल लिया जाए। पानी के मीटर न लगने के कारण ही राज्य में नलों से पानी का दुरुपयोग होता आम देखा जा सकता है। प्रदेश में 5 मरले मकानों वालों को पानी बिलों से छूट है और पानी के मीटर केवल व्यापारिक संस्थानों पर लगाने की हिदायत है। देश में निगमाें, कमेटियों द्वारा लोगों को पानी सप्लाई  की सुविधा देने के लिए जो बजट खर्च किया जाता है, उसकी आधी राशि भी निगमों, कमेटियों के पास नहीं आती है। प्रदेश में निगमों व कमेटियों में 500 करोड़ के करीब बकाया राशि लेनी है। निगमों या कमेटियों के अधिकारी वह लम्बे समय से स्थानीय निकाय विभाग से यह मांग कर चुके हैं कि उन्हें बकाया राशि बारे कोई फैसला करना चाहिए कि उसे माफ करना है या फिर वसूल करना है। इस बारे निगमों, कमेटियों को आज तक फैसले का इंतज़ार है जिस कारण अमृतसर जैसे शहर में पानी से 13 से लेकर 15 करोड़ तक वसूली ही हुई थी, इसी तरह बाकी निगमों का भी यही हाल है कि पानी सप्लाई का खर्च उनका तीन गुणा है परंतु पानी बिलों से उसे आधी राशि भी प्राप्त नहीं होती। बड़े शहरों में जहां पहले 100 से 150 ट्यूबवैलों की संख्या होती थी जबकि अब प्रदेश के बड़े शहरों में ट्यूबवैलोें की संख्या 500 से ज्यादा हो गई है। प्रदेश सरकार ने शहरों मेें भूमिगत जल को बड़ी मात्रा में निकालने की जानकारियां मिलने के बाद जालन्धर, पटियाला, अमृतसर में दरियाओं के पानी को पाइपों के ज़रिये लाकर शहरों में सप्लाई करने का फैसला किया था। कुछ वर्ष पहले इस प्रोजैक्ट के लिए जालन्धर में जल आपूर्ति के लिए सर्वेक्षण किया गया था परंतु अभी ऐसे प्रोजैक्टों को वर्षों का समय लगने की सम्भावना है