चंद्रयान-2 की सफल उड़ान भारत की एक बड़ी उपलब्धि

चंद्रयान-2 का सफलता से छोड़ा जाना निश्चय ही भारत की एक बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि है, जिस पर गर्व किया जा सकता है। नि:संदेह अंतरिक्ष की खोज शुरू करने का श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जाता है, जिन्होंने चांद-सितारों का पता लगाने के लिए ऐसे संस्थानों की स्थापना करवाई। आज़ादी मिलने के एकदम बाद उन्होंने इस क्षेत्र में खोज करने का सपना लिया और इसको व्यवहारिक रूप दिया। अंतरिक्ष की खोज के प्रयासों की इस आधार पर अक्सर आलोचना भी की जाती रही है कि भारत जैसे गरीब देश के लिए इस समय ऐसी खोज जायज़ है? हमारे बड़े और जटिलताओं वाले देश में निचले स्तर पर जी जा रही ज़िंदगी को देखकर ऐसा प्रभाव अवश्य परिपक्व होता है परन्तु अंतरिक्ष संस्था इसरो ने अपने इस क्षेत्र में इतनी बड़ी सफलताएं और उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसके सामने यह प्रभाव बड़ी सीमा तक कम हो जाता है। इसके दो अन्य भी अहम कारण हैं। पहला तो यह कि इस संस्था के वैज्ञानिकों ने कम से कम पूंजी लगाकर अधिक से अधिक उपलब्धियां हासिल की हैं, दूसरा कभी ऐसे खोज कार्यों में बड़े देशों से प्राप्त की टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था। आज इस उद्देश्य के लिए भारतीय टैक्नोलॉजी का ही प्रयोग किया जा रहा है। तीसरा यह संस्था अब बड़ी कमाई भी करने लगी है। इस कमाई का पैसा ही अंतरिक्ष खोज पर लगाया जाने लगा है। अब तो बड़े विकसित देश भी आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्टेशन से अंतरिक्ष में अपने उपग्रह स्थापित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की सेवाएं लेने लगे हैं। इसरो के श्रीहरिकोटा स्टेशन से अब तक दूसरे देशों के अनेक उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किए जा चुके हैं, इसलिए इन बड़ी खोजों को अब किसी भी तरह आर्थिक घाटे वाला सौदा नहीं कहा जा सकता। यदि कुछ दशकों में अंतरिक्ष टैक्नोलॉजी से दुनिया बदल गई है, तो इसमें भारत का भी बड़ा योगदान माना जाने लगा है। चंद्रयान-2 की सफल उड़ान से भारत चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन जायेगा। इससे पूर्व अमरीका, तत्कालीन सोवियत यूनियन (अब रूस) तथा चीन आदि देश यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। आज से 11 वर्ष पूर्व भारत ने चंद्रयान-1 छोड़ा था, जो चांद की धरती पर तो नहीं उतरा था परन्तु इसने चांद के आसपास चक्कर लगाकर बड़ी और उपयोगी खोजें की थीं। चंद्रयान-1 ने ही दुनिया को यह सूचना दी थी कि चांद पर पानी की बड़ी सम्भावनाएं हैं। ऐसा चंद्रयान-1 द्वारा खींची गई तस्वीरों से प्रकट होता था। अब चंद्रयान-2 की बड़ी उपलब्धि यह है कि यह चांद की धरती पर उतरेगा। वहां के पर्यावरण, भूमि, जल, पहाड़ों और खनिज पदार्थों की खोज करेगा। नि:संदेह अमरीका चांद की खोज में प्रथम स्थान पर रहा है। आज से 50 वर्ष पूर्व अर्थात् 20 जुलाई, 1969 को चांद पर उसके अंतरिक्ष यात्रियों ने कदम रखे थे, जिसने दुनिया को एक बार तो हैरान करके रख दिया था। सोवियत यूनियन (रूस) पहला ऐसा देश था, जिसने अंतरिक्ष में अपने यात्री भेजे थे। अक्तूबर 1957 में उसने अपना पहला उपग्रह स्पूतनिक-1 अंतरिक्ष में भेजने में सफलता प्राप्त की थी। अपने अंतरिक्ष यात्री यूरी गै्रगरिन को अप्रैल, 1961 में अंतरिक्ष की यात्रा करवाकर उसने दुनिया को हैरान कर दिया था। उसके बाद दोनों देशों में चांद पर जाने की एक दौड़ लग गई थी। 1959 में रूस ने चांद पर अपना पहला उपग्रह लूना-1 उतार दिया था। उसके बाद उसने लगातार अपने उपग्रह वहां भेजकर वहां की तस्वीरें प्राप्त की थीं। उसके बाद अमरीका ने अपोलो उपग्रहों का सिलसिला शुरू कर दिया था और ‘मून मिशन’ के तहत अपोलो-11 द्वारा एयरफोर्स के पायलट नील आर्मस्ट्रांग तथा एडविन एर्ल्डन को चांद पर उतारा गया था। बाद में दोनों देशों की अंतरिक्ष खोज तो जारी रही, परन्तु चांद पर जाने के लिए उन्होंने कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। परन्तु चीन चांद पर उपग्रह भेजने वाला तीसरा देश अवश्य बन गया था और अब जिस तरह भारत ने अपने स्वदेशी उपग्रह चंद्रयान-2 को अपने ही अति भारी रॉकेट द्वारा सफलता से अंतरिक्ष में भेजा है, उससे यह विश्वास पैदा हुआ कि भारत निकट भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त कर सकेगा। अंतरिक्ष में अपना स्थायी स्टेशन बनाकर वह अन्य ग्रहों और सितारों की भी खोज कर सकेगा। क्रम अनुसार चंद्रयान चांद के दक्षिणी हिस्से पर 48 दिनों के बाद पहुंचेगा और फिर उसमें से रोवर अर्थात् 6 पहियों वाला रोबोट निकलेगा, जिसके शक्तिशाली कैमरे चांद के इस क्षेत्र के प्रत्येक पक्ष को खंगालने में सक्षम होंगे। भारत की इस बड़ी सफलता को हमेशा याद रखा जायेगा। तब भी जब मनुष्य चांद पर बस्तियां बनाने में सफल हो जायेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द