आत्महत्या मुक्ति का साधन नहीं

रोज़ाना समाचार-पत्रों में आत्महत्याओं के समाचार पढ़ने को मिलते हैं। मन को गहरा आघात लगता है। हृदय दुखी हो उठता है। आखिर क्या कारण है इन आत्महत्याओं का? क्यों विशेषकर युवा पीढ़ी आत्मघाती रास्ते को चुन रही है? असंख्य लोग रोज़ाना अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं।
गत 3-4 दशकों में ऐसा देखने-सुनने को नहीं मिलता था। अब कैसा घोर कलयुग आ गया है? इन्सान अपने आप से ही संतुष्ट नहीं। बेटा अपने पिता से, पिता अपने पुत्र से, बेटा अपनी मां से, भाई अपने भाई से खुश नहीं। संबंध बिगड़ रहे हैं। परिवार सीमित होते जा रहे हैं। हर एक एकान्तवास चाहता है। बस यहीं से निराशा, उदासी, अवसाद व खिन्नता एवं क्रोध उपजता है जो आत्महत्याओं की बढ़ रही प्रवृत्ति का कारण बनता है। इन अवस्थाओं पर अंकुश लगाना अत्यावश्यक है। 
नशा और बेरोज़गारी भी इन घटनाओं का प्रमुख कारण है। प्रशासन की अपेक्षा समाज सेवी संस्थाएं इस बढ़ती प्रवृत्ति को रोक पाने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं। युवा पीढ़ी को जीने का सही ढंग बतलाया जाये। ज़िन्दगी अनमोल है। इसे व्यर्थ न गवाएं। आत्महत्या मुक्ति या मोक्ष का साधन नहीं।