क्यों हो रही हैं इतनी आत्महत्याएं ?

पंजाब सहित देश के अन्य भागों में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थम नहीं पा रहा। कोटा राजस्थान में विद्यार्थियों की आत्महत्या ने नये सवाल खड़े कर दिये हैं। अनेक स्थलों पर छुट्टी न मिलने से या काम के बढ़ते तनाव के कारण कर्मचारी आत्महत्या कर रहे हैं। क्या यह जीवन इसलिए है कि बढ़ते तनाव के कारण या फिर कष्ट और अभाव के कारण आत्महत्या करके जीवन का अंत कर दिया जाये?
विश्व आत्महत्या दिवस के दो दिन बाद इसी वर्ष की 13 सितम्बर को कोचिंग के विशाल केन्द्र कोटा से नौ महीनों में 23वीं आत्महत्या का दुखद समाचार सामने आया। उत्तर प्रदेश  के एक छोटे से ज़िले मऊ की यह लड़की मात्र 16 वर्ष की थी और घर के लोग चाहते थे कि वह वहां से डाक्टर बन कर लौटे। इसी महीने यह आत्महत्या की दूसरी घटना थी। अगस्त माह की पहली आत्महत्या इससे एक सप्ताह पहले एक और लड़की ने ही की थी। इस वर्ष अकेले अप्रैल माह में ही यहां छ: बच्चे आत्महत्या कर गए। इन सभी घटनाओं से पता चलता है कि न तो राज्य सरकार न ही केन्द्र सरकार पर कोई ज्यादा असर हुआ है। इसकी सम्भावना थी कि लोकसभा में इस पर गम्भीरता से प्रश्न उठाये जाते लेकिन एक विशेष अधिवेशन में महिला आरक्षण बिल को एकमत से पास करवा कर अपना दायित्व पूरा कर लिया। क्या कोई भी समाज अपनी युवा पीढ़ी के प्रति इतना लापरवाह हो सकता है? साहित्यकार सम्पादक हेतु भारद्वाज ने इसका विश्लेषण एक लेख में किया है (कोचिंग हब या आत्महत्या शिविर) कोटा राजस्थान का एक पुराना और औद्योगिक नगर रहा है। 20वीं सदी के अंतिम दशकों में कोटा ने कोचिंग को कौशल के उद्योग में बदल कर इंजीनियर, डाक्टर, कुशल प्रबन्धन के रूप में राष्ट्रीय (शायद अन्तर्राष्ट्रीय भी) ख्याति अर्जित की है। इसी राजस्थान में वन स्थली विद्यापीठ ऐसा पवित्र नारी केन्द्र है जहां सभी क्षेत्रों से लड़कियां अध्ययन करने के लिए आती हैं। आज भी नारी शिक्षा के क्षेत्र में वन स्थली विद्यापीठ की साख सर्वश्रेष्ठ शिक्षा केन्द्र के रूप में है। दूसरी तरफ कोटा कोचिंग हब के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका है। जहां हर प्रदेश का युवा अपनी महत्त्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कोटा की सड़कों पर घूमता हुआ मिल जायेगा, लेकिन पिछले कुछ समय से वहां युवक जिस तेजी से आत्महत्या करने की दिशा में सक्रिय हुए हैं, उससे कोटा की स्थितियां सन्देह में आ गई हैं। युवा वर्ग में आत्महत्या की प्रवृत्ति बेहद दुखद और ़खतरनाक है। युवा वर्ग की यह आत्महत्या-शृंखला माता-पिता के लिए बेहद दुखद है ही, शिक्षाविद, सरकार आदि के लिए भी चिंता का विषय हो चुकी है। लोगों ने कोचिंग सेंटर के मालिकों पर सवाल खड़े किये हैं। सरकार ने जयपुर के प्रतापनगर में करोड़ों रुपया लगा कर विशाल कोचिंग हब का निर्माण किया है। शायद इसमें कोचिंग केन्द्रों का आवंटन भी आरम्भ हो गया है। जिसका अर्थ यह हुआ कि सरकार का इस विधा को संरक्षण प्राप्त है। शिक्षा का व्यापारीकरण इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है कि कोटा की तरह सीकर और जयपुर में भी कोचिंग हब का केन्द्र बनना शुरू हो चुका है। इन कोचिंग केन्द्रों की ताकतें अनेक रूपों में हमारे सामने प्रगट हो रही हैं। प्रदेश में नकल तथा पेपर आऊट माफिया की जड़ें इन्हीं केन्द्रों में मिलती हैं। इन केन्द्रों के मालिक साधारण नहीं है। मंत्रियों से लेकर अफसरों तक इस व्यवसाय में लगे हैं। इस व्यवस्था के संजाल का करिश्मा है कि राजस्थान के एक गांव से 10-10, 15-15 थानेदार एक साथ चुने जा रहे हैं। युवा वर्ग को एक बहुत बोझ वाली मानसिक उत्तेजना से गुज़रना होता है। असफलता का डर उन्हें बेचैन किये रहता है। अभिभावकों का खर्च भी उनको तनाव देता है जिसका परिणाम निराशा और फिर आत्महत्या में आता है।