राजनीतिज्ञों की बढ़ती दबंगता

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में सामूहिक दुष्कर्म की पीड़ित एक युवती की कार को एक ट्रैक्टर-ट्राले की टक्कर से पेश आई भीषण दुर्घटना ने देश के राजनीतिक चेहरे की कुरूपता एवं भयावहता को एक बार फिर उजागर किया है। इस दुर्घटना में दुष्कर्म पीड़िता और उसका वकील बेशक बच गये हैं, परन्तु पीड़िता की चाची, मौसी और कार का ड्राइवर मारे गये हैं। यह भी इस दुर्घटना का एक त्रासद पक्ष है कि इस घटना के बाद से अब तक चार जानें जा चुकी हैं, और दो लोग गम्भीर रूप से घायल होकर जीवन-रक्षक प्रणाली पर अटके हुए हैं। नि:संदेह इस सम्पूर्ण घटना के पीछे राजनीतिक दबंग शक्ति का दंश उभर कर सामने आता है।  इस कांड की पृष्ठभूमि वर्ष 2017 में शुरू होती है जब 11 जून को उन्नाव की एक युवती ने ज़िला से बांगरमऊ क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक पर आरोप लगाया कि नौकरी दिलाने की आड़ में उससे सामूहिक रूप से दुष्कर्म किया गया है। इस आरोप में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर एवं एक महिला शशि सिंह समेत शुभम, नरेश तिवाड़ी और ब्रजेश यादव को गिरफ्तार कर लिया गया। शशि सिंह पर आरोप है कि वह महिला पीड़ित युवती को नौकरी का झांसा देकर विधायक के पास लेकर गई थी। शुभम इस महिला का बेटा है और नरेश तिवाड़ी विधायक की कार का चालक है। ब्रजेश यादव वह पात्र है जिसके घर से दुष्कर्म के बाद पीड़ित किशोरी को बरामद किया गया था। मामला सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक से जुड़ा होने के कारण इसे केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया था और सी.बी.आई. की प्राथमिक जांच के बाद ही इन दोषियों के विरुद्ध विधिवत मुकद्दमा दर्ज किया गया। 
देश की राजनीति आज जिस नाज़ुक एवं हिंसा-जनित मोड़ पर पहुंच गई है, वहां इस प्रकार की दबंगता एवं निर्लज्जता आम बात हो गई प्रतीत होती है। पहले सुना करते थे कभी, कि राजनीतिक सत्ता मनुष्य को भ्रष्ट करती है, और पूर्ण सत्ता पूर्णतया भ्रष्ट कर देती है, परन्तु आज तो जैसे सत्ता का नशा राजनीतिज्ञों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है। विगत पांच-सात वर्षों में तो ऐसी घटनाओं की बाढ़-सी आई है। गोवा के एक पूर्व मंत्री पर एक अवस्यक युवती से दुष्कर्म कर उसे गुम कर देने के आरोप लगे। कठूआ दुष्कर्म कांड में भी राजनीति और राजनीतिज्ञ सिर चढ़ कर बोलते रहे। अलवर दुष्कर्म कांड पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राम विलास पासवान, बसपा की मायावती सभी आपस में उलझते रहे। राजनीतिक परिदृश्य पर उभरने वाले द़ागी नेताओं की बात करें, तो 16वीं लोकसभा में हर तीसरे निर्वाचित सांसद पर आपराधिक केस दर्ज थे। 17वीं लोकसभा में भी लगभग इतने ही सांसद आपराधिक मानसिकता वाले हैं। ऐसी आपराधिक मानसिकता वाले सांसदों/विधायकों के आचरण से किसी स्वस्थ समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है।
मौजूदा मामले की बात करें, तो प्रारम्भ से ही किसी साज़िश की बू आने लगी थी। आरोपित विधायक सेंगर दबंगता के धरातल पर पहले से चर्चित रहा है। दोषी महिला द्वारा लड़की को स्वयं छल-़फरेब करके विधायक के पास लेकर जाना और फिर विधायक के बाद महिला के पुत्र द्वारा भी युवती से दुराचार करना आखिर कैसी सभ्यता की तस्वीर प्रस्तुत करता है। तिस पर तुर्रा यह कि विधायक ने अपनी सत्ता और दबंगता का खुल कर प्रदर्शन किया। उसकी नज़रों में एक निरीह प्राणी मात्र रही युवती द्वारा विधायक की करतूतों के विरुद्ध मैदान में उतर आना उसे कैसे स्वीकार हो सकता था। बहुत स्वाभाविक है कि इससे इस दबंग विधायक के सातों कपड़ों को आग लग गई, और उसने इस युवती एवं उसके परिवार को धमकाने और आरोप वापिस लेने का दबाव बनाने हेतु हर किस्म का हथकण्डा अपनाया। इसके बावजूद दबंग विधायक की बात जब नहीं बनी तो पुलिस एवं प्रशासनिक तंत्र के तहत पीड़िता के पिता को निराधार आरोपों के तहत जेल भिजवा कर मरवा दिया गया। पीड़ित परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि विधायक के इशारे पर दबाव बनाने हेतु उसकी हत्या कर दी गई। यहां भी विधायक ने मामले पर मिट्टी डालने की हरचन्द कोशिश की, लेकिन पीड़ित युवती द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के बाहर आत्म-दाह की धमकी देकर धरने पर बैठ जाने के बाद सरकार हरकत में आई थी। इससे विधायक पर डला शिकंजा और कस गया। इस मृत्यु-कांड के बाद जेल और अस्पताल के कई मुलाजिम भी जांच के दायरे में आ गये। अब जितने अधिक लोग, उतने ही अधिक बनते गये इस मामले के पेंच।
नि:संदेह इस प्रकार की राजनीतिक दबंगता और आपराधिक मानसिकता किसी भी सभ्य राष्ट्र अथवा समाज के लिए उचित अथवा हितकर नहीं हो सकती। इससे भावी पीढ़ियां एक ऐसी दिशा-हीनता का शिकार हो सकती हैं जो पतन की परकाष्ठा की ओर ले जाती है। ऐसी मानसिकता वाले लोग भाजपा एवं कांग्रेस सहित प्राय: सभी दलों में हैं। अत: आवश्यकता है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर और राष्ट्र के व्यापक हितों के दृष्टिगत इस अथवा ऐसा मामलों से निपटा जाए। यहां प्रश्न भाजपा के किसी एक सांसद का नहीं, अपितु उस सामूहिक संस्कारगत चरित्र का है जो सत्ता के मद में चूर कुछ राजनेता इस देश की युवा पीढ़ी को सौंपने जा रहे हैं। हम समझते हैं कि चरित्र-सुधार की इस पहल का बड़ा दायित्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कंधों पर भी आता है। अतीत में ऐसी चारित्रिक दुर्बलताओं के विरुद्ध वह बहुत बेबाक होकर बोलते रहे हैं। अब भी यदि वह भाजपा के भीतर वाली ऐसी काली भेड़ों को रेवड़ से बाहर करेंगे, तो इससे उनकी अपनी और भाजपा की भी छवि अवश्य निखरेगी। यह भी, कि यह काम जितनी जल्दी शुरू होगा, उतना ही देश और भावी युवा पीढ़ियों के लिए अच्छा रहेगा।