इस बार नरमे की अच्छी फसल से बदलेगी किसानों की किस्मत

श्री मुक्तसर साहिब, 18 सितम्बर (अ.स.): इस बार नरमे की भरपूर फसल देख कर किसानों की सांस में सांस आई है और यदि नरमे की फसल का भाव भी अच्छा मिलता है तो यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि आने वाले समय में पंजाब के किसानों  का धान से मुंह मोड़ना लाजमी हो जाएगा। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष गत वर्ष के मुकाबले 20 हज़ार हैक्टेयर नरमे की फसल की अधिक बिजाई हुई है। वर्ष 2018 में ज़िले में नरमे की बिजाई 52 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में हुई थी और धान की बिजाई 107 हज़ार हैक्टेयर रकबे में, जबकि बासमति की बिजाई 51 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में हुई थी। वर्ष 2019 की खरीफ दौरान नरमे की काश्त का क्षेत्रफल बढ़ कर 72 हज़ार हैक्टेयर हो गया है, जबकि धान का 29 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल घट कर महज 78 हज़ार हैक्टेयर रकबा ही रह गया है। धान के विपरीत बासमति की फसल की बिजाई में 9 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल ही रह गया है। धान के विपरीत  बासमती की फसल की बिजाई में 9 हज़ार हैक्टेयर रकबे की  बढ़ौतरी हुई है और इस वर्ष बासमति की फसल की बिजाई 60 हज़ार हैक्टेयर रकबे में हुई है, जबकि वर्ष 2018 दौरान बासमति की फसल की बिजाई 51 हज़ार हैक्टेयर रकबे में हुई थी। पिछले वर्ष दौरान गवारे की फसल की बिजाई 1.2 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में हुई थी, जबकि इस वर्ष गवारे की फसल की बिजाई में भी बढ़ौतरी हुई है और वर्ष 2019 दौरान 1.5 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में गवारे की बिजाई हुई है। जिन कोशिशों में राज्य का कृषि विभाग लगा हुआ है कि धान का क्षेत्रफल घटा कर , नरमे के तहत क्षेत्रफल बढ़ाया जाए, उन कोशिशों को बूर पड़ता दिखाई दे रहा है, जिसमें आत्महत्याएं करती हुई किसानी के साथ-साथ, कृषि की मज़दूरी करते मज़दूरों और उनके परिवारों की भलाई के साथ-साथ पूरे पंजाब राज्य की भलाई समझा जाना चाहिए, क्योंकि धान की फसल का गरीब परिवारों के लिए सीज़न 2025 दिन ही होता है, जबकि नरमें की फसल से गरीब परिवारों को भी लगातार 6 महीने काम और चूल्हों के लिए बालन मिलता रहता है। पिछले समय दौरान नरमे की फसल की कम बिजाई और पैदावार करके कपड़े और धागे के व्यापार को भी ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इस करके इस वर्ष नरमे की भरपूर फसल, पैदावार और सरकार द्वारा तैय किए गए अच्छे भाव ने आने वाले समय में नरमे, किसानों, मज़दूरों, पंजाब और धरती के निचले पानी के लगातार नीचे जा रहे स्तर का भाव तय करना है, जिसमें सरकार का बहुत बड़ा योगदान है।